‘प्रत्येक वर्ष सूर्य के सान्निध्य के कारण मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि ग्रह अस्तंगत होते हैं । उसमें धर्मशास्त्र ने एवं मुहूर्त शास्त्रकारों ने गुरु एवं शुक्र की अस्तंगत कालावधि को विशेष महत्त्व दिया है । ‘गुरु अथवा शुक्र ग्रह के अस्त होने के पूर्व के ३ दिन (वार्ध्यदिन), उनका उदय होने के उपरांत के ३ दिन (बाल्यदिन) एवं अस्तंगत कालावधि, किसी मंगल कार्य के लिए एवं विविध प्रकार के धार्मिक कृत्यों के लिए वर्ज्य करें’, ऐसा धर्मशास्त्र में स्पष्टरूप से बताया है । प्रमुखरूप से उपनयन (मुंज), विवाह, यज्ञयागादि कृत्य, देवप्रतिष्ठा, वास्तुशांति, भूमिपूजन, शांति कर्म, काम्यकर्म का आरंभ एवं समाप्ति, व्रतग्रहण, उद्यापन, नूतन उपाकर्म इत्यादि कर्म न करें; मात्र ‘गुरु अथवा शुक्र, इन दो ग्रहों में केवल एक का अस्त होते समय किसी अडचन के प्रसंग में मंगल कार्य कर सकेंगे’, ऐसा ‘मुहूर्तसिंधु’ नामक ग्रंथ में दिया है । उसका आधार लेकर वर्तमानकाल में मंगल कार्य कर सकते हैं । गंगा, गया एवं गोदावरी, इन तीर्थक्षेत्रों में नारायण-नागबली, त्रिपिंडी जैसे कार्य कर सकते हैं ।
गुरु अथवा शुक्र के अस्त होते समय नित्य, नैमित्तिक कर्म कर सकते हैं, उदा. नवरात्रि में प्रतिवर्ष किए जानेवाले नवचंडी जैसे याग आदि कर्म, इसके साथ ही देवताओं की पुनर्प्रतिष्ठा, पर्जन्ययाग कर सकेंगे; कारण अगतिक कर्म (जो कर्म उस समय करने आवश्यक हैं, ऐसे कर्म) अस्तकाल में करने चाहिए; मात्र सगतिक कर्म, अर्थात जो कर्म आगे अर्थात बाद में कर सकते हैं, वे कर्म अस्तकाल समाप्त होने पर करें, उदा. ६०, ७०, ७५, ८१ वर्ष में शांति, सहस्रचंद्रदर्शन जैसे शांति कर्म सगतिक होने से ऐसे कर्म अस्तकाल समाप्त होने पर करें ।
विवाहनिश्चय, सगाई, गर्भवती महिला के लिए प्रीतिभोज, मुंडन, नए घर में (बिना वास्तुशांति किए) लौकिक गृहप्रवेश कर रहने के लिए जाना, नामकरण, अन्नप्राशन, गोंधल (देवी के प्रीत्यर्थ किया जानेवाला नृत्य-गायन कुलाचार), बोडण (देवी से संबंधित किया जानेवाला कुलाचार) इत्यादि शुभ कर्म, इसके साथ ही भूमि, घर (फ्लैट), वाहन की खरीदी; व्यापार, दुकान, व्यवसाय का शुभारंभ, खेती संबंधी सर्व काम; उपनयन, विवाह के अंगभूत कर्म (नांदीश्राद्ध, ग्रहमख, देवब्राह्मण इत्यादि) अस्तकाल में कर सकते हैं ।
संकटकाल में गुरु अथवा शुक्र के अस्तकाल में उपनयन, विवाह (टिप्पणी), पुनर्प्रतिष्ठा करते हुए उस अस्तंगत ग्रह का १०८ बार जप कर सुवर्णप्रतिमा का पूजन एवं दान करें ।
टिप्पणी – उपनयन अथवा विवाहकार्य के लिए मुख्यकाल के मुहूर्त को प्रधानता दें । तदुपरांत गौणकाल के मुहूर्त को प्रधानता दें एवं अत्यंत आवश्यक होने पर गुरु अथवा शुक्र के अस्तकाल में (आपतकाल के) मुहूर्त का विचार करें ।’
(साभार : दाते पंचांग)
– श्रीमती प्राजक्ता संजय जोशी (ज्योतिष फलित विशारद, वास्तू विशारद, अंक ज्योतिष विशारद, रत्नशास्त्र विशारद, अष्टकवर्ग विशारद, सर्टिफाइड डाऊसर, रमल शास्त्री, हस्ताक्षर मनोविश्लेषण शास्त्र विशारद आणि हस्तसामुद्रिक प्रबोध), गोवा.