पूज्य भगवंत मेनराय और पूज्य सूरजकांता मेनराय का कुछ महीनों से सनातन के रामनाथी, गोवा आश्रम में निवास रहा है । आश्रम में नए होकर भी वे आश्रमजीवन से शीघ्र एकरूप हो गए हैं । मेनराय पती-पत्नी के अनेक सद्गुणों का हुआ दर्शन इस लेख में शब्दबद्ध किया है ।
१. पू. सूरजकांता मेनरायदादी
१ अ. प्रेमभाव
१ अ १. अत्यंत संवेदनशील होने से अन्यों की वेदनाआें का तुरंत भान होना : नामजप कक्ष में बैठी साधिकाआें में से किसी को ठीक नहीं लग रहा हो, तो यह बात उनके तुरंत ध्यान में आती है और वे बताती है, वातावरण में रज-तम की मात्रा बढने से शारीरिक कष्ट बढ गए हैं । जिन्हें बैठकर नामजप करने में कष्ट हो रहा है, वे लेटकर नामजप करें । ईश्वर को हमारा मन चाहिए ।
१ अ २. रोगी साधकों पर प्रीति की वर्षाव करनेवाली पू. (श्रीमती) मेनरायदादी ! : पूज्य दादी व्याधिपीडित साधकों के स्वास्थ्य की अवश्य पूछताछ करती हैं । उनके औषधि उपचार और खान-पान के बारे में भी पूछती रहती हैं । कभी-कभी प्रेम से पीठ पर हाथ फेरती हैं, तो कभी गले लगाती हैं । जन्माष्टमी के उपरांत ज्वर, खांसी तथा अन्य शारीरिक व्याधियों के कारण मैं अनेक दिनों तक नामजप कक्ष में नहीं जा पाई थी । इसलिए वे मुझे मिलने मेरे कक्ष में आई । प्रेम से मेरी पूछताछ कर मुझे प्रसाद दिया । खांसी ठीक हो, इसलिए सोंठ का चूर्ण लाकर दिया । उनकी इस प्रीति से मुझे उत्साह मिला ।
१ अ ३. पू. मेनराय दादाजी को अधिक विश्राम मिले, इसलिए निर्धारित समय के पहले आकर अधिक समय तक उपाय करना : पू. मेनराय दादाजी और दादीजी साधकों पर प्रतिदिन १० घंटे उपाय करते हैं । पू. मेनरायजी का स्वास्थ्य ठीक न हो अथवा किसी कारण वे थक गए हों, तो पू. मेनराय दादी निर्धारित समय के पहले ही उपायकक्ष में आकर पू. मेनराय दादाजी को विश्राम करने को कहती हैं । वे अधिक काल तक विश्राम कर सके, इसलिए साधकों पर अधिक समय तक उपाय करती हैं ।
१ आ. गुरुसेवा का ध्यास
पू. दादी को मधुमेह (डायबेटिस) की व्याधि है । उनकी आयु भी अधिक है, तब भी वे अनेक घंटे नामजप कर आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधकों पर प्रतिदिन उपाय करती हैं । ज्वर के कारण एक-दो बार उन्हें उपायकक्ष में आना संभव नहीं था; परंतु ऐसी स्थिति में भी वे उपायकक्ष में आईं और पलंग पर लेटकर उन्होंने नामजप एवं प्रार्थना द्वारा साधकों पर उपाय किए ।
१ इ. गुरु पर अटल श्रद्धा और भक्तिभाव
परम पूज्य गुरुदेव को कष्ट न हो और सभी साधक स्वस्थ रहें, इसलिए पू. दादी भगवान श्रीकृष्ण को आर्तता से प्रार्थना करती हैं एवं हम से भी करवा लेती हैं । हमारा नामजप भावपूर्ण हो, इसलिए पूज्य दादी हम से भावजागृति के विविध प्रयोग करवा लेती हैं । परम पूज्य गुरुदेव उपायकक्ष में सूक्ष्मरूप से आए हैं और हमारे सामने आसंदी में (कुर्सी में) बैठे हैं, ऐसा भाव रखकर वे हमें नामजप करने को बताती हैं । साथ ही गुरुदेव के चरणों का मानसदर्शन कर उन पर नतमस्तक होकर, उन्हें आलिंगन देने को कहती हैं । वे बताती हैं, गुरुचरणों के आश्रय में जाने पर सर्व चिंताएं दूर हो जाती हैं । गुरुचरणों के सुरक्षा-कवच को कोई तोड नहीं सकता ।
१ ई. धर्माचरण करना और दूसरों के आनंद में आनंद अनुभव करना
पूज्य दादी ने ३०.१०.२०१५ को करवा चौथ का व्रत किया । व्रत के पहले उन्होंने मुझे कहा, पू. मेनरायजी को धर्मशास्त्रानुसार त्यौहार, उत्सव मनाना, व्रत का पालन करना इत्यादि अच्छा लगता है; इसलिए मैंने यह व्रत किया । सिर पर चुन्नी ओढकर चंद्रदेवता को जल अर्पित करती पू. दादी को देखने पर लगा कि चंद्र की शीतलता बढ गई है और उसका वर्षाव पृथ्वी पर होने से पृथ्वी पर कष्ट न्यून हो गए है । लगता है कि, पूज्य दादी ने धर्माचरण कर अन्यों के आनंद में अपना आनंद मान लिया, इसलिए उनके इस धार्मिक कृत्य का प्रभाव समष्टि स्तर पर हुआ होगा ।
२. पू. भगवंतकुमार मेनरायजी
२ अ. जिज्ञासा और सीखने की वृत्ति
पू. मेनरायजी में सिखने की वृत्ति है । आश्रम के विविध स्थानों की सुगंध की मात्रा न्यून-अधिक होना, उपायों के समय अचानक थकान लगना अथवा बैठे बैठे चक्कर आना आदि के पीछे क्या कोई आध्यात्मिक कारण है क्या ?, यह जान लेने की उनमें तीव्र जिज्ञासा रहती है । पू. मेनरायजी की बुद्धि प्रगल्भ है । वे वायुदल के निवृत्त अधिकारी और होमिओपॅथी के वैद्य हैं; परंतु साधना के संदर्भ में वे बुद्धि को बाधा नहीं बनने देते । उनके मन में विद्यमान सूक्ष्म-जगत संबंधी जिज्ञासा देखकर लगता है कि वे किसी बालक की भांति सदैव सीखने की स्थिति में हैं । पू. मेनरायजी की जिज्ञासु वृत्ति देखकर सामान्य बुद्धिवादी और बुद्धिमान संत में अंतर स्पष्ट होता है ।
२ आ. सतर्कता
एक बार उपायों के समय पू. मेनरायजी को जलने की गंध आई । कक्ष में नामजप के लिए बैठे कुछ साधकों को भी वैसी ही गंध आई । तब एक साधिका ने बताया, रोग के किटाणु नष्ट करने के लिए आयुर्वेदिक वनस्पतियों का धूप आश्रम में दिखा रहे हैं । तब पू. मेनरायजी ने कहा, हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए ।
३. पूज्य भगवंतकुमार और पूज्य
सूरजकांता मेनराय का बालकप्रेम
आश्रम के छोटे बच्चे अपनी मां को ढूंढते हुए कभी-कभी नामजप कक्ष में आते हैं । उन्हें देखकर पूज्य मेनरायजी और दादी को अत्यानंद होता है । पूज्य दादी के मुख पर वात्सल्यभाव उभर आता है, तो पूज्य मेनरायजी के मुख पर बालकभाव दिखता है । कभी-कभी पूज्य मेनरायजी को हंसते तथा बोलते हुए देखने पर वे बालक समान निर्मल लगते हैं ।
४. सनातन के आदर्श परिवार का
सहवास देने के लिए भगवान के चरणों में कृतज्ञता !
मेनराय परिवार, सनातन का आदर्श परिवार है । उनके आदर्श माता-पिता एवं आदर्श संतदंपति आदि रूप मैं निकट से अनुभव कर पाई । उनके सत्संग से मेरा उत्साह बढ गया और मुझ में साधना की लगन जागृत होने लगी । मेनराय परिवार का सहवास देने के लिए मैं भगवान के चरणों में अनंत कोटि कृतज्ञ हूं । उनके गुणों का संवर्धन हम में शीघ्रता से हो, ऐसी भगवान के चरणों में प्रार्थना !
– कु. मधुरा भोसले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२.११.२०१५)