‘अपने जठर में पाचक स्राव का रिसाव होता रहता है । इस पाचक स्राव के अन्ननलिका में आने पर, पित्त का कष्ट होता है । खट्टा, नमकीन, तीखा और तैलीय पदार्थ खाने से पित्त बढता है; परंतु ऐसा कुछ न खाते हुए भी कुछ लोगों को गले में और छाती में जलन होती है, अर्थात पित्त का कष्ट होता है । अनेक बार इसका कारण बद्धकोष्ठता भी होता है । बद्धकोष्ठता दूर होने के लिए उपचार करने पर यह कष्ट तुरंत न्यून होता है । आगे दिए गए प्राथमिक उपचार करके देखें ।‘गंधर्व हरीतकी वटी’ इस औषधि की २ से ४ गोलियां रात में सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ लें । बद्धकोष्ठता सहित भूख न लगना, भोजन न जाना, अपचन होना, पेट में वायु (गैस) होना, ऐसे लक्षण हों तो ‘लशुनादी वटी’ औषधि की १ – २ गोलियां दोनों बार के भोजन के १५ मिनट पहले चुभलाकर खाएं । इससे पाचक स्राव भली-भांति निर्माण होता है । बद्धकोष्ठता पर ये उपचार १५ दिन करें ।’