अनुक्रमणिका
१. नियमित व्यायाम करें ही !
‘नियमित व्यायाम करने से शारीरिक क्षमता में वृद्धि होती है । इसके साथ ही मन की भी क्षमता बढती है । नियमित व्यायाम करने से मन तनाव सहन करने में सक्षम होता है । व्यायाम करनेवाले को वातावरण में अथवा आहार में परिवर्तन सहसा बाधा नहीं उत्पन्न करता । व्यायाम करके शरीर सुदृढ रखने पर संक्रमक रोगों का भी प्रतिकार करने में सहायता होती है । व्यायाम करने के लिए कुछ भी व्यय (खर्च) नहीं होता । रोगनिवारण का ऐसा नि:शुल्क उपचार प्रत्येक के लिए करना सहज संभव होते हुए भी केवल ‘आलस’ इस एक स्वभावदोष के कारण वह नियमित नहीं किया जाता । तो चलिए ! आज से नियमित व्यायाम करेंगे !’
२. शरीर निरोगी रखने के लिए केवल इतना ही करें !
‘केवल ‘प्रतिदिन नियमितरूप से व्यायाम करना’ एवं ‘दिन में केवल २ बार ही आहार लेना’, केवल ये दो बातें ही नित्य आचरण में लाने से शरीर निरोगी रहता है । अन्य कुछ भी करने की आवश्यकता ही नहीं रहती । इतना इन २ कृतियों का महत्त्व है ।’
३. प्रतिदिन न्यूनतम आधा घंटा व्यायाम करें !
‘आयुर्वेद में वात, पित्त एवं कफ को ‘दोष’ कहा गया है । वात, पित्त तथा दोष के कार्य में बाधा होना, अर्थात व्याधि ! आयुर्वेद के अनुसार उचित समय पर खाना, जितना पचन (हजम) हो, उतना ही खाना, शरीर के लिए अहितकारक पदार्थ टालना, आदि आहार के नियमों का पालन करने से वातादि दोषों के कार्य में संतुलन होकर स्वास्थ्य प्राप्त होता है; किंतु अधिकतर भोजन संबंधी नियम पालन करना संभव नहीं होता । उस समय शरीर निरोगी रखने का सर्वाेत्तम मार्ग है ‘व्यायाम करना ।’ यदि आहार के नियमों का पालन न करने से वातादि दोष असंतुलित हुए, तो नियतिम व्यायाम करने से पुन: उन्हें संतुलित होने में सहायता प्राप्त होती है । अतः शरीर निरोगी रखने के लिए प्रतिदिन न्यूनतम आधा घंटा व्यायाम करें !’
३ अ. आज से नियमित न्यूनतम ३० मिनट व्यायाम करने का ध्येय रखें !
‘व्यायाम नियमित करने से ही उसके लाभ दिखाई देते हैं । ‘व्यायाम करें और उससे कोई लाभ न हो’, ऐसा हो ही नहीं सकता । ‘किसी भी बात को आत्मसात होने हेतु उसे कम से कम २१ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए’, ऐसा मानसशास्त्र कहता है । इसलिए आज से नियमित व्यायाम करने का ध्येय रखें । ‘सवेरे व्यायाम नहीं किया, तो दोपहर को भोजन नहीं करूंगा’ अथवा शाम को व्यायाम करते हों, तो ‘यदि व्यायाम नहीं किया, तो रात का भोजन नहीं करूंगा’, ऐसा निश्चय करें । आप कितने भी व्यस्त हो, तब भी दिनभर में कम से कम ३० मिनट व्यायाम के लिए अवश्य रखें । एक ही प्रकार का व्यायाम न करते हुए अपनी क्षमतानुसार चलना, दौडना, सूर्यनमस्कार, योगासन, प्राणायाम जैसे विविध प्रकार करें । प्रतिदिन चरण-दर-चरण व्यायाम बढाते जाएं । एक माह के उपरांत निश्चितरूप से आपको अनुभव होगा कि आपकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता में वृद्धि हुई है एवं आप निरोगी जीवन की ओर मार्गक्रमण कर रहे हैं ।’ – वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (६.९.२०२२)
४. आराम से चलना व्यायाम नहीं !
‘आजकल अनेक लोग चलना, यह व्यायाम स्वरूप करते हैं; परंतु कुछ का चलना आराम से होता है । अनेक लोग चलते समय एक-दूसरे से बात करते हुए चलते हैं । इससे व्यायाम का लाभ नहीं होता । ‘शरीर-आयास-जनकं कर्म व्यायामः ।’ अर्थात ‘शरीर को श्रम हो, ऐसा कर्म करना, अर्थात व्यायाम’, ऐसी व्यायाम की व्याख्या है । श्रम करने से ही शरीर के तनाव सहन करने की क्षमता बढती है । इसलिए प्रत्येक को अपनी क्षमता अनुसार थोडा-बहुत श्रम हो, ऐसी पद्धति से व्यायाम करना चाहिए । ऐसा करते समय एकाएक अधिक व्यायाम करना टालें । हृदयसंबंधी विकार जिन्हें हैं वे अपने वैद्यों से परामर्श करें एवं उनके बताए अनुसार व्यायाम करें ।’
५. व्यायाम कौन सा करें ?
‘व्यायाम करते समय शरीर के मेटाबॉलिस्म में (चयापचय क्रिया) (ऊर्जा निर्मिति की क्रिया) वृद्धि होनी चाहिए । सर्व जोडों में हलचल होनी चाहिए तथा शरीर के स्नायु खिंचे जाने चाहिए । अत: केवल चलना, सूर्यनमस्कार अथवा केवल प्राणायाम करने की अपेक्षा अपनी कार्यक्षमता के अनुसार अल्प मात्रा में प्रत्येक प्रकार का व्यायाम करें । इस प्रकार नियमित व्यायाम करने से शरीर पर व्यायाम का सुपरिणाम दिखाई देने लगता है । व्यायाम से आतंरिक क्षमता में वृद्धि होने के पश्चात व्यायाम की मात्रा भी धीरे-धीरे बढाएं ।’
६. व्यायाम कब करें ?
‘सवेरे खाली पेट व्यायाम करना आदर्श है । इसलिए संभवत: सवेरे ही व्यायाम करें; परंतु सवेरे समय न मिले तो शाम को व्यायाम करें । भोजन के उपरांत पेट हलका होने तक, अर्थात लगभग ३ घंटों तक व्यायाम न करें । व्यायाम के उपरांत न्यूनतम (कम से कम) १५ मिनटों तक कुछ भी खाएं-पीएं नहीं ।’
अधिक जानकारी के लिए पढिए : सनातन का ग्रंथ ‘आयुर्वेदानुसार आचरण कर बिना औषधियों के निरोगी रहें !’
७. व्यायाम कब न करें ?
‘ज्वर आया हुआ हो, खाए हुए अन्न का पचन न हुआ हो । पेट में वैसे ही हो’, ऐसा लग रहा हो, तो व्यायाम न करें । अन्य समय पर मात्र अपनी क्षमता अनुसार नियमित व्यायाम करें ।’
८. केवल ‘आयुर्वेद की औषधियां खाना’ अर्थात आयुर्वेदानुसार आचरण नहीं !
‘अनेक लोग टीवी पर विज्ञापन देखकर प्रतिदिन आवले का अथवा घृतकुमारी (ग्वारपाठा, एलोवेरा) का रस पीते हैं । अनेक लोग मधुमेह पर औषधि के रूप में किसी को पूछे बिना नीम अथवा करेले का रस पीना, जामुन के बीजों का चूर्ण लेना इत्यादि करते हैं । ‘यह सर्व करते हैं, अर्थात ‘मैं आयुर्वेदानुसार आचरण करता हूं’, ऐसी उनकी समझ है । अपने मन से काफी समय तक औषधि लेते रहना गलत है । निरोगी रहने के लिए आयुर्वेद की औषधियां नियमित खाना नहीं, अपितु केवल पांच पांच मूलभूत परहेज करना आवश्यक होता है । इन पथ्यों के विषय में विस्तृत जानकारी सनातन का ग्रंथ ‘आयुर्वेदानुसार आचरण कर बिना औषधियों के निरोगी रहें !’ ग्रंथ में दी है । निरोगी जीवन की दिशा में मार्गक्रमण करने के लिए इस ग्रंथ का अभ्यास करें !’
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– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.