मुंडेश्वरी देवी मंदिर
बिहार की राजधानी पटना से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर मां मुंडेश्वरी का मंदिर है। यह मंदिर पंवरा पहाड़ी के शिखर पर स्थित है I जिसकी ऊँचाई लगभग 600 फीट है I मुण्डेश्वरी भवानीके मंदिर के नक्काशी और मूर्तियों उतरगुप्तकालीन है I यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है I इस मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुण्डेश्वरी की पत्थर से भव्य व प्राचीन मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है I माँ वाराही रूप में विराजमान है, जिनका वाहन महिष है I मंदिर में प्रवेश के चार द्वार हैं I इस मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है I
कैमूर (बिहार) में देवी मुंडेश्वरी के मंदिर में दी जाती है रक्तहीन बलि !
यहां के मुंडेश्वरी देवी मंदिर में नवरात्रि में मनोव्रत (मनोकामनाएं अथवा मन्नतें) पूर्ण करने के लिए रक्तहीन बलि दी जाती है । अर्थात बलि की प्रक्रिया बकरे को मारे बिना पूरी हो जाती है। यह मंदिर ५ वीं शताब्दी का माना जाता है । मंदिर ६०० फीट ऊंची पहाडी पर स्थित है । इसविषय में मंदिर के पुजारी पिंटू तिवारी ने बताया कि बकरे को मंदिर के गर्भगृह में ले जाया जाता है ।
गर्भगृह में बकरे को मुंडेश्वरी देवी की मूर्ति के चरणों के पास रखा जाता है । वहां मंत्रों का पठन किया जाता है, तत्पश्चात बकरा मूच्छित (बेहोश) हो जाता है । देवी की पूजा होने के पश्चात बकरा अपने आप जाग जाता है । तदुपरांत वह बकरा उस भक्त को वापस कर दिया जाता है । केवल इतनी ही विधि बलि के रूप में की जाती है, अर्थात बकरे की हत्या नहीं की जाती । कई श्रध्दालु बकरे की इसप्रकार बली देने के पश्चात उसे छोड देते हैं, तो कई श्रद्धालु घर ले जाकर बलि देते हैं और फिर इसे प्रसाद के रूप में खाते हैं । यह बलि की प्रथा कबसे शुरू हुई इसकी जानकारी यहां किसी को नहीं है ।
देवी ने पहाड़ी पर किया था असुर का वध
मान्यता के अनुसार, यहां चंड और मुंड नाम के दो असुर रहा करते थे। ये लोगों को प्रताड़ित करते थे, जिनकी पुकार सुन मां धरती पर आयी और दोनों असुरों का वध किया। माता ने सबसे पहले चंड का वध किया। यह देख मुंड मां से युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया। पर देवी मां ने इस पहाड़ी पर पहुंच कर मुंड का भी वध किया। इसी के बाद से यह जगह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।