वर्तमान में आपातकाल की तीव्रता बढती जा रही है । इसलिए साधकों को होनेवाले आध्यात्मिक कष्टों में भी वृद्धि हो रही है । साधकों का आध्यात्मिक कष्ट न्यून (कमी) होने हेतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने आध्यात्मिक उपायों की सामग्री उपलब्ध करवाकर साधकों को चैतन्य दिया है । वह सामग्री कितने समय उपयोग में लानी है ?, इस विषय में सूत्र आगे दिए हैं ।
१. तीव्र कष्टवाले साधकों को आध्यात्मिक उपायों के लिए सामग्री दी जाती है । उनके उस सामग्री का सतत उपयोग करने से उस पर कष्टदायक शक्ति का आवरण आता है, इसके साथ ही कुछ सामग्री जीर्ण भी हो जाती है । इसलिए वह सामग्री बदलकर नई सामग्री लेना आवश्यक है ।
२. संतों द्वारा उपयोग में लाए कपडे, उनके द्वारा लिखा कागद, औषधियों के वेष्टन, उनके द्वारा दी गई विभूति इत्यादि सामग्री सामान्यत: २ वर्ष तक उपयोग करें । संतों के कक्ष की फर्श का टुकडा ५ वर्ष तक उपयोग कर सकते हैं । इस अवधि के उपरांत वह सामग्री अग्नि अथवा जल में विसर्जित करें एवं उत्तरदायी साधकों से उपाय के लिए नई सामग्री लें । इन २ वर्षों की अवधि के पहले ही कोई सामग्री खराब हो जाए अथवा उस पर अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण हो जाए, तो उसे विसर्जित करें ।
३. उपायों के लिए उपयोग में लाई जा रही सामग्री २ वर्षों में भी स्थूल से अच्छी स्थिति में हो, तो उसे प्रभारित कर पुन: उपयोग कर सकते हैं । सामग्री प्रभारित करने के लिए आगे दी गई किसी पद्धति का उपयोग करें – सामग्री भगवान के पास रखना, धूप में रखना, सामग्री को नामपट्टियों का मंडल डालना, उसे उदबत्ती से प्रभारित करना इत्यादि । संतों द्वारा उपयुक्त कपडे प्रभारित करने के लिए उन्हें धोकर प्रभारित करने के लिए रखें ।
४. प्रभारित हुई सामग्री देखने पर आंखों को अच्छा लगता है । उसे हाथ में लेने से हलकापन लगता है । सामग्री की गंध लेने पर श्वास लेने में अडचन नहीं आती एवं पूर्ण श्वास ले पाते हैं । इसप्रकार सामग्री प्रभारित हो गई है, यह पहचान सकते हैं ।