‘कोकोपीट’का उपयोग, हाट से सेंद्रिय खाद खरीदकर लाना एवं पौधों को डालना, कंपोस्ट खाद बनाना, ये बातें सेंद्रिय खेती में आती हैं; प्राकृतिक खेती में नहीं । ‘रासायनिक खाद के स्थान पर सेंद्रिय खाद का उपयोग’ अर्थात सेंद्रिय खेती । यह अत्यंत खर्चीला है । उसमें उत्पन्न भी अल्प है । इसके विपरीत प्राकृतिक खेती में जीवामृत एवं बीजामृत का उपयोग करना, पेड से गिरे सूखे पत्तों इत्यादि का आच्छादन करना, आवश्यक उतना ही पानी देना इत्यादि बातें आती हैं । प्राकृतिक खेती में पौधों के लिए उपयुक्त सूक्ष्म जीवाणुओं का संवर्धन करने पर बल देते हैं । इस पद्धति में खर्च नगण्य एवं उत्पन्न भरपूर होती है । इसके लिए सनातन का ‘घर-घर रोपण’ अभियान में प्राकृतिक खेती के विषय में जानकारी दी जाती है ।’ – श्रीमती राघवी मयूरेश कोनेकर, ढवळी, फोंडा, गोवा. (३०.७.२०२२)