‘मेरे एक वैद्यमित्र द्वारा बताया एक प्रसंग उन्हीं के शब्दों में यहां दे रहे हैं ।
‘एक बार मुझे बहुत निराशा आई थी । दैनंदिन जीवन की भागदौड से मैं इतना ऊब गया था कि मुझे लगने लगा, ‘घर छोडकर मैं कहीं दूर चला जाऊं ।’ तब मैंने अनायास अपने आयुर्वेद के गुरु वैद्य अनंत धर्माधिकारी से संपर्क कर, अपनी मनःस्थिति बताई । इस पर वे बोले, ‘‘तुम्हें कुछ नहीं हुआ है ! केवल अग्नि मंद हो गई है । एक बार उपवास करो ।’’ आश्चर्य की बात है कि वैसा करने से मेरे मन के वे विचार पूर्णरूप से निकल गए और मुझे उत्साह लगने लगा ।’ इससे जठराग्नि की (पचनशक्ति का) महत्त्व ध्यान में आता है ।’
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.