अनुक्रमणिका
औषधि अपने मन से न लेते हुए वैद्यों के मार्गदर्शनानुसार ही लेनी चाहिए; परंतु कई बार वैद्यों के पास तुरंत ही जाने की स्थिति नहीं रहती । कई बार थोडी-बहुत औषधि लेने पर वैद्यों के पास जाने की आवश्यकता ही नहीं पडती । इसलिए ‘प्राथमिक उपचार’ के रूप में यहां कुछ आयुर्वेद की औषधियां दी हैं । औषधि लेकर ठीक न लग रहा हो, तो स्थानीय वैद्य से अवश्य परामर्श करें ।
१. कारण के अनुरूप उपचार
वर्षा ऋतु में सतत हो रही वर्षा के कारण वातावरण में फैली ठंडी से जितना संभव हो, उससे अपना बचाव करने से इन दिनों में होनेवाली सर्दी, खांसी एवं ज्वर शीघ्र ठीक होने में सहायता होती है ।
१.अ. ज्वर हो तो स्वेटर इत्यादि गरम कपडे पहनें । कानटोपी पहनें । इससे पसीना आता है और ज्वर उतरता है । ‘त्रिभुवनकीर्ति रस’ १ गोली का चूर्ण कर थोडे से मधु (शहद) में मिलाकर चाटें । ज्वर अधिक हो, तो प्रत्येक २ घंटों में १ गोली लें । दिन में ५ – ६ गोलियां भी ले सकते हैं । एक दिन में ज्वर की तीव्रता कम न होने से तुरंत वैद्य से परामर्श करें ।
१.आ. पीने के पानी को उबालकर, उसे गुनगुना पीएं । इन दिनों में निरोगी व्यक्ति को भी गरम अथवा गुनगुना पानी पीने से अन्नपचन अच्छा होगा । यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है ।
१.इ. गला लाल होना, गले में खराश होना अथवा वेदना होने पर गुनगुने पानी में थोडा-सा त्रिफला चूर्ण अथवा हलदी एवं नमक मिलाकर गरारे करें । ‘चंद्रामृत रस’ १ – २ गोलियां चुभलाएं । इससे तुरंत ही अच्छा लगने लगता है । खांसी आ रही हो, तब भी चंद्रामृत रस का उपयोग होता है । दिन-भर में ५ – ६ गोलियां भी ले सकते हैं ।
१.ई. सिर भारी होना, सर्दी के कारण नाक बंद होना, जबडों के मूल पर दबाने से वेदना होना, यदि ये लक्षण हों तो बाहर से गरम कपडे से सेंक दें । गरम पानी पीने पर गिलास गर्म रहता है । उससे सेंकें । बाहर से सेंकना, यह वाष्प लेने की तुलना में अधिक लाभदायक है । दिन भर में ४ – ५ बार सेंकें ।
१.उ. रात में पंखा लगाकर सोने से ठंडी हवा नाक-मुंह में जाती है । गला अंदर से सूख जाता है एवं ठंड के कारण गले की रक्तवाहिनियों में रक्त जमा होने लगता है । इसलिए गला लाल हो जाता है । इसे टालने के लिए घूमनेवाले (rotating) टेबल फैन का (पंखे का) उपयोग करें अथवा बिना पंखा लगाए सोएं । आजकल ‘टाइमर’के पंखे आए हैं । इनमें सोते समय निर्धारित समय पर पंखे के स्वयं ही बंद हो जाने की सुविधा होती है । उसका उपयोग करें । सोने पर ठंडी हवा नाक-मुंह में न जाए, इसके लिए कानटोपी पहनकर चादर ओढकर सोएं ।
किसी भी उपचारपद्धति अनुसार औषधि लेने पर उपरोक्त कारणों के अनुरूप उपचार करने से शीघ्र ठीक होने में सहायता होती है ।
२. कफयुक्त खांसी
२.अ. खांसी से कफ गिर रहा हो, तो अडूसा का रस मधु (शहद) के साथ लें । अडूसा के २ से ४ पत्ते धोकर उसे तवे पर हलका-सा गरम करें । तदुपरांत उसे खलबत्ते में कूटकर अथवा मिक्सर में पीसकर आवश्यकता हो, तो थोडा-थोडा पानी मिलाकर उसका रस निकालें । अडूसा के पत्ते बिना गरम किए कूटने पर, उससे रस नहीं आता । एक समय पर पाव कटोरी रस में १ चम्मच मधु /शहद डालकर पीएं । अडूसा के कारण कफ सहजता से छूटने में सहायता होती है । अडूसा का मुख्य गुण है रक्त में बढा हुआ पित्त न्यून करना । इसलिए नाक, गुद अथवा योनीमार्ग से रक्तस्राव होना, शरीर में उष्णता लगना, फुंसियां उठना, इन लक्षणों के लिए भी अडूसा उपयुक्त है ।
२.आ. १ चम्मच ‘सितोपलादी चूर्ण’ एवं १ चम्मच मधु, ऐसा मिश्रण बनाकर रखें । दिनभर में बीच-बीच में यह मिश्रण चाटें । सितोपलादी चूर्ण दिनभर में ३ चम्मचों तक उपयोग कर सकते हैं । इस चूर्ण के कारण श्वसनमार्ग का विकृत कफ बाहर निकलने में सहायता होती है, इसके साथ ही आवश्यक अच्छा कफ बनने लगता है । इससे श्वसनमार्ग की शक्ति बढती है ।
३. सूखी खांसी
कई बार खांसी द्वारा कफ बाहर नहीं निकलता, केवल सूखी खांसी आती है । आगे दिए सरल उपाय से सूखी खांसी तत्काल रुक जाती है । १ कटोरीभर मीठे तेल में थोडी सरसों, जीरा, लौंग, कालीमिर्च जैसे उपलब्ध मसाले डालकर तेल गरम कर लें । ऐसा करने से इन मसालों का अंश तेल में उतरेगा एवं तेल का कच्चापन निकल जाएगा । तदुपरांत यह तेल छानकर ठंडा होने पर बोतल में भरकर रखें । जब भी सूखी खांसी आए, तब आधी कटोरी गरम पानी में २ चम्मच तेल लें एवं उसे गुनगुना ही पिएं । उसके ऊपर पुन: थोडा गरम पानी पिएं । यह उपाय करने पर गले को अंदर से सेंक मिलने से तुरंत आराम मिलता है और श्वसनमार्ग के वात का शमन होकर सूखी खांसी रुक जाती है ।
४. गले में कफ आना
भोजन के पश्चात पान का बीडा खाएं ।
५. सर्दी, खांसी एवं ज्वर न आए; इसलिए अथवा आए तो शीघ्र ही ठीक होने के लिए
तुलसी, हरी चाय, गुलवेल एवं पुनर्नवा का काढा लें । इसके सर्व घटक न मिलें, तो जितने मिलें उतने घटक डाल कर काढा बनाएं । २ से ४ तुलसी के पत्ते, १-२ हरी चाय के पत्ते, बित्त भर लंबी गुलवेल की जड (कूटकर), बित्त भर लंबी पुनर्नवा की जड (पत्तों सहित) २ गिलास पानी डालकर, उसे उबालकर १ गिलास काढा करें । आधा गिलास सवेरे और आधा गिलास शाम को गरम-गरम पीएं । काढा में आवश्यकतानुसार शक्कर (चीनी) अथवा गुड डाल सकते हैं ।
६. बद्धकोष्ठता
६.अ. ज्वर आने के समय जब बद्धकोषष्ठता हो, तो भोजन के पूर्व आधा चम्मच मेथीदाना मुंह में डालकर गुनगुने पानी के साथ निगल लें । कुछ लोगों को मेथीदाना खाने से गुदद्वार में जलन अथवा वेदना होने जैसे कष्ट होते हैं । ऐसों को मेथीदानों के स्थान पर सब्जा के बीज अथवा हलीम लें ।
६.आ. ‘गंधर्व हरीतकी वटी’ २ गोलियां गुनगुने पानी के साथ दोनों बार भोजन के पूर्व लें ।
७. कोरोना होना जांच से निष्पन्न होनेपर
‘सुवर्णमालिनी वसंत’ अथवा ‘महालक्ष्मीविलास रस’ में से कोई भी एक गोली बारीक कर, खाली पेट २ से ४ बूंद मधु (शहद) में मिलाकर लें । साधारण ७ ते १५ दिन यह औषधि लेने पर रोग शीघ्र ठीक होने में सहायता होती है । ये दोनों औषधियां सुवर्णयुक्त (सोने की भस्मयुक्त) हैं । इसलिए इनका मूल्य अधिक होता है । आयुर्वेदानुसार सुवर्ण उत्तम विषहर औषध होने से एक उत्कृष्ट रसायन है । विविध जीवाणु अथवा विषाणुओं का संसर्ग होने से उनका विष शरीर में फैलता है । सुवर्णयुक्त औषधियों के सेवन से इस विष का प्रतिकार करने की शक्ति आती है । ‘रसायन’ अर्थात उत्तम शरीरघटक निर्माण करने में सहायता करनेवाली औषधि ।
८. रोग ठीक हो जानेपर आई थकान
सवेरे एवं शाम को गुलवेल का काढा घी मिलाकर लें । बित्तभर गुलवेल कूटकर २ गिलास पानी में उबालकर उसका १ गिलास काढा बनाएं । आधा गिलास काढा सवेरे एवं आधा गिलास शाम को लें । काढा संभवत: गरम अथवा गुनगुना लें । प्रत्येक बार काढे में १ चम्मच घी डालें । (इस लेख में दी हुई औषधि वनस्पतियां घर-घर लगाने के लिए बताई २७ औषधीय वनस्पतियों में से हैं । इन वनस्पतियों की यदि पहचान न हो, तो जानकारों से निश्चिती कर ही उसका उपयोग करें । गलत वनस्पति के उपयोग से हानि भी हो सकती है ।)
यहां ‘प्राथमिक उपचार’ के रूप में कुछ घरेलु आयुर्वेदीय औषधियां दी हैं । किसी लक्षण के लिए दोनों में से किसी भी एक प्रकार की औषधि ले सकते हैं । दोनों प्रकार की औषधि लेने की आवश्यकता नहीं । औषधि लेकर यदि ठीक न लग रहा हो, तो स्थानीय वैद्य से परामर्श करें ।
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (४.७.२०२२)