संतों का कार्य आध्यात्मिक (पारलौकिक) स्तर का ही होता है । इसलिए उन्हें लौकिक सम्मान एवं पुरस्कारों का विशेष महत्त्व नहीं लगता । कदाचित मनोलय और अहंलय होने से वे सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करानेवाले सम्मान एवं पुरस्कारों के परे जा चुके होते हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का भी ऐसा ही है । ऐसा होते हुए भी संत ही संतों को पहचान सकते हैं और वे ही अन्य संतों के कार्य का महत्त्व समझ सकते है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के आध्यात्मिक कार्य का महत्त्व ज्ञात होने से अनेक संतों ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को सम्मानित एवं पुरस्कार देकर गौरवान्वित किया । इसके कुछ उदाहरण यहां दिए हैं ।
सावंतवाडी, महाराष्ट्र के प.पू. भाऊ मसूरकरजी ने
अध्यात्म के महनीय कार्य के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का किया सम्मान !
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१७.११.१९९९ को सावंतवाडी (जनपद सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र) के श्री विठ्ठल मंदिर की स्थापना के २५० वर्ष पूर्ण होने के निमित्त आयोजित कार्यक्रम में अध्यात्मक्षेत्र की महान विभूतियों का सम्मान किया गया । इस समय सनातन संस्था के संस्थापक प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी और उनकी धर्मपत्नी डॉ. (श्रीमती) कुंदाताई द्वारा किए अध्यात्म संबंधी महनीय कार्य के लिए सावंतवाडी के अध्यात्म के महान अभ्यासक प.पू. भाऊसाहेब मसूरकरजी ने उन्हें सम्मानित किया । इस समय प.पू. डॉ. आठवलेजी के संदर्भ में प.पू. भाऊ ने कहा, सत्य विश्व के सामने रखते हैं, वे संत कहलाते हैं । डॉ. आठवलेजी संत हैं; उन्हें मैं नहीं, अपितु श्री विठ्ठल ही यहां लाए हैं !
संदर्भ : दैनिक पुढारी, २१.११.१९९९
कोल्हापुर, महाराष्ट्र के प.पू. तोडकर महाराजजी
द्वारा प.पू. डॉ. आठवलेजी को सम्मानित करने के प्रसंग !

अ. प.पू. डॉ. आठवलेजी को धर्मपत्नी के साथ सिंहासन पर बिठाकर उन पर पुष्पवृष्टि करना !
२२.७.२००० को प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी ने कोल्हापुर, महाराष्ट्र के संत प.पू. तोडकर महाराजजी के द्रोणागिरी आश्रम को पहली बार भेंट दी । उस समय परमपूज्य तोडकर महाराज और उनके भक्तों ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और उनकी धर्मपत्नी डॉ. (श्रीमती) कुंदाताई को सिंहासन पर बिठाकर उन पर पुष्पवृष्टि की । तदुपरांत शॉल और नारियल देकर उन्हें सम्मानित किया ।
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात, २३.७.२०००
आ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को ढोल, नगाडे और
हनुमानजी के नामघोष में पालकी में बिठाकर शोभायात्रा निकाल कर किया गया सम्मान !
२४.११.२००१ को प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी और डॉ. (श्रीमती) कुंदाताई प.पू. तोडकर महाराजजी के द्रोणागिरी आश्रम में गए थे, तब उन दोनों का अत्यंत भावपूर्ण वातावरण में और सहस्रों हनुमानभक्तों की उपस्थिति में स्वागत किया गया और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की जयजयकार की गई । तदुपरांत पुष्पमालाआें तथा भगवे वस्त्र से सजी दो पालकियों में प.पू. डॉ. आठवलेजी और डॉ. (श्रीमती) कुंदाताई को बिठाया गया तथा दोनों के हाथों में वीर मारुति की दो मूर्तियां रखी गईं ।
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात, २५.११.२००१
ठाणे के जासूसी नजरें प्रकाशन संस्थान द्वारा
परात्परगुरु डॉ. आठवलेजी को भारत गौरव रत्न पुरस्कार देना
सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी द्वारा मराठी भाषा की रक्षा के लिए दिए योगदान और सनातन धर्म एवं अध्यात्म क्षेत्र में किए सर्वोत्कृष्ट कार्य के लिए भारत गौरव रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । यह विशेष मानद सम्मान जासूसी नजरें प्रकाशन संस्थान, हाजी मलंग वाडी, कल्याण, जिला ठाणे की संस्था ने प्रदान किया ।
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात, ३१.१२.२००६
सोलापुर, महाराष्ट्र के शनैश्वर देवस्थान का
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को शनैश्वर कृतज्ञता धर्म पुरस्कार देना
२५.५.२००९ को पू. तपोनिधि शिवयोगी नंदगिरी महाराजजी के शनैश्वर देवस्थान की ओर से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को शनैश्वर कृतज्ञता धर्म पुरस्कार प्रदान किया गया ।
मुंबई के योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन सत्कर्म सेवा सोसाइटी ने
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन गुणगौरव पुरस्कार देना
२५.७.२०१० को योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन सत्कर्म सेवा सोसाइटी की ओर से परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी को सम्मानपत्र और पंद्रह सहस्र रुपए देकर योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन गुणगौरव पुरस्कार प्रदान किया गया । सम्मानपत्र में कहा है, आपके द्वारा किए जा रहे विशेष सामाजिक, आध्यात्मिक इत्यादि उल्लेखनीय कार्यों के लिए हमारे ट्रस्ट की ओर से योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन गुणगौरव पुरस्कार प्रदान दिया जा रहा है । आपका कल्याणकारी कार्य उत्तरोत्तर अखंड चलता रहे, ऐसी शुभकामना !
महर्षि द्वारा वर्णित परमपूज्य डॉक्टरजी की महिमा !
महर्षि कहते हैं, ईश्वर पर हमारी पूर्ण श्रद्धा है । ईश्वर ने जो बताया, वही हमने इस नाडीशास्त्र में लिखा । ईश्वर ने हमें बताया कि साधकों को कैलाश, वैकुंठ में दर्शन करने के लिए जाना आवश्यक नहीं । इसके लिए हमने परम गुरुजी को ही (प.प. डॉक्टरजी को) पृथ्वी पर भेजा है । उनके दर्शन से ही साधकों को ईश्वर के आशीर्वाद मिलनेवाले हैं । इसलिए साधको, गुरुचरण छोडकर कहीं न जाएं ।
(पू.) श्रीमती अंजली गाडगीळ, ईरोड, तमिलनाडु. (१२.३.२०१६, सायं. ५.१३)