नाशिक (महाराष्ट्र) : सनातन संस्था के प्रेरणास्रोत प.पू. भक्तराज महाराजजी की (प.पू. बाबा की) धर्मपत्नी तथा पू. नंदू कसरेकरजी की माताजी प.पू. जीजी (प.पू. [श्रीमती] सुशीला कसरेकरजी) (आयु ८६ वर्ष) ने १८ सितंबर को दोपहर २ बजे नाशिक में उनके कनिष्ठ पुत्र श्री. रवींद्र कसरेकर के आवास पर देहत्याग किया । प.पू. जीजी वात्सल्यभाव की मूर्ति थीं । उन्होंने प.पू. बाबा के सभी भक्तों को अपने वात्सल्य से जोडकर रखा था ।
प.पू. जीजी के पीछे उनके बडे पुत्र पू. नंदू (हेमंत) कसरेकरजी, मंझले पुत्र श्री. सुनील कसरेकर, कनिष्ठ पुत्र श्री. रवींद्र कसरेकर, बडी बहू श्रीमती स्मिता हेमंत कसरेकर, मंझली बहू श्रीमती नयना सुनील कसरेकर तथा छोटी बहू श्रीमती नीलिमा रवींद्र कसरेकर; साथ ही नाती कु. दीपाली, कु. वैभवी, चि. सोहम् एवं कु. रेवा, यह परिवार है । सनातन परिवार कसरेकर परिवार के दुख में सहभागी है ।
प.पू. जीजी के पार्थिव पर श्री क्षेत्र कांदळी (वडगांव, तहसील जुन्नर, जिला पुणे) में १९ सितंबर को अंतिमसंस्कार किया गया ।
सनातन के कार्य को भर-भरकर आशीर्वाद देनेवालीं
प.पू. भक्तराज महाराजजी की धर्मपत्नी प.पू. श्रीमती (स्व.) सुशीला दिनकर कसरेकरजी !
‘‘भजन’, ‘भ्रमण’ एवं ‘भंडारा’, इन तीनों माध्यमों से दिन-रात अध्यात्म का कार्य करनेवाले हमारे गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी की धर्मपत्नी प.पू. (श्रीमती) सुशीला कसरेकरजी (प.पू. जीजी) ने आज देहत्याग किया । आयु के १७ वें वर्ष में विवाह होने के उपरांत उन्होंने जीवनभर प.पू. भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) जैसे उच्च कोटि के संत की गृहस्थी संभालने का कठिन शिवधनुष्य उठाया ।
प.पू. जीजी की साधना अत्यंत कठिन थी । जहां विश्वोद्धार के व्रत लिए प.पू. बाबा का अपनी गृहस्थी की ओर ध्यान नहीं था, ऐसी स्थिति में प.पू. जीजी ने बडे धैर्य के साथ अपनी गृहस्थी चलाई । अत्यंत कठिन स्थिति में उन्होंने अपने बच्चों को बडा किया ।
ऐसी स्थिति में भी वे सभी शिष्यों पर बहुत प्रेम करती थीं । हमें अनेक वर्षाें तक उनका प्रेम मिला । उन्होंने प.पू. बाबा के सभी भक्तों को वात्सल्यभाव से जोडकर रखा था । हमें प.पू. जीजी जैसी महान गुरुमाता मिलीं, यह तो प.पू. बाबा की ही कृपा है । सनातन को जिस प्रकार प.पू. बाबा के आशीर्वाद प्राप्त हुए, वैसे ही प.पू. जीजी के भी आशीर्वाद प्राप्त हुए । वे अनेक बार सनातन के आश्रमों में आईं हैं और उन्होंने साधकों की प्रशंसा कर उन्हें भर-भरकर आशीर्वाद भी दिए हैं । उनकी कृपाछत्र के तले सनातन का कार्य प्रतिदिन वृद्धिंगत हो रहा है ।
अब हमें स्थूल से उनका सान्निध्य नहीं मिलेगा; परंतु उनकी प्रेमभरी स्मृतियां हमारे स्मरण में सदैव रहेंगी ।
इस महान गुरुमाता के चरणों में शतशः प्रणाम एवं कृतज्ञता !’
– डॉ. जयंत आठवले (१८.९.२०२२)