१. पितृपात्र में (पितरों के लिए परोसी गई थाली में) उलटी दिशा में (घडी के कांटे की विरुद्ध दिशा में) भस्म की रेखा बनाएं ।
२. भोजन केले के पत्ते पर अथवा मोहा नामक वृक्ष के पत्तों से बनी पत्तल पर (उपलब्धता के अनुसार) परोसें ।
३. श्राद्धीय ब्राह्मणों की थाली में नमक न परोसें ।
४. पका अन्न (लड्डू इत्यादि) हाथ से ही परोसें; परंतु भाजी-तरकारी (सब्जी), कचूमर (सलाद), चटनी इत्यादि पदार्थ कभी भी हाथ से न परोसें । उसके लिए चम्मचों का उपयोग करें ।
५. थाली में पदार्थ परोसने का क्रम, स्थान एवं उसका आधारभूत शास्त्र
श्राद्ध के दिन थाली के बाएं, दाएं, सामने एवं मध्य, इन चारों भागों में (चौरस) पदार्थ बताए हैं ।
अ. आरंभ में थाली में देसी घी लगाएं ।
आ. मध्यभाग में चावल (भात) परोसें ।
इ. दाईं ओर खीर, भाजी-तरकारी परोसें ।
ई. बाईं ओर नीबू, चटनी एवं कचूमर परोसें ।
उ. सामने सांबार, कढी, पापड, पकौडी एवं उडद के बडे, लड्डू जैसे पदार्थ हों ।
ऊ. अंत में चावल पर देसी घी एवं बिना तडके की दाल परोसें ।
शास्त्र : ‘पितरों के लिए थाली में सदैव उलटी दिशा में अन्न पदार्थ परोसने से रज-तमात्मक तरंगें उत्पन्न होकर मृत आत्मा के लिए अन्न ग्रहण करना संभव होता है ।’ (श्री. नीलेश चितळे के माध्यम से मिला ईश्वरीय ज्ञान, ५.७.२००६) |
६. भोजन परोसते समय एक को कम एवं दूसरे को अधिक, एक को अच्छा तो दूसरे को निकृष्ट, ऐसा न करें । श्राद्ध के दिन तो ऐसा भेदभाव बिलकुल भी न करें ।
७. श्राद्धविधि पूर्ण हुए बिना छोटे बच्चे, अतिथि अथवा अन्य किसी को भी अन्न न दें ।