किसी को नामजपादि उपाय ढूंढकर देते समय उस व्यक्ति का कष्ट, उसका आध्यात्मिक स्तर, अनिष्ट शक्तियों के उस पर हो रहे आक्रमण इत्यादि घटकों का विचार करें !

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‘सनातन के कुछ संत, इसके साथ ही ६० प्रतिशत से अधिक स्तर के कुछ साधक अन्य साधक एवं संत को होनेवाले शारीरिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक कष्टों के लिए नामजप का आध्यात्मिक उपाय ढूंढकर देते हैं । तब उन्हें कष्ट होनेवाले साधक अथवा संत का आध्यात्मिक स्तर, उनका समष्टि कार्य, उन्हें होनेवाला आध्यात्मिक कष्ट, अनिष्ट शक्तियों के उन पर हो रहे आक्रमण इत्यादि घटकों का विचार कर उन्हें नामजप, की जानेवाली उंगलियों की मुद्रा एवं उन मुद्राओं से किया जानेवाला न्यास ढूंढें ।

सद्गुरु (डॉ.) मुकुल गाडगीळ

 

१. आध्यात्मिक स्तर

कष्ट होनेवाला साधक अथवा संत का आध्यात्मिक स्तर जितना अधिक, उतना उन्हें वर्तमान के आपातकालानुसार होनेवाला कष्ट अधिक होता है । इसलिए उनका कष्ट दूर होने के लिए अधिक कालावधि लगती है; इसलिए उनका कष्ट दूर होनेतक प्रतिदिन नामजपादि उपाय बताना आवश्यक होता है । ऐसे में उस साधक अथवा संत के कष्ट, प्रतिदिन पूछकर ब्यौरा लेना आवश्यक होता है ।

 

२. उनका समष्टि कार्य

जिसे कष्ट हो रहा है वह साधक अथवा संत ईश्वरीय राज्य की स्थापना के समष्टि कार्य का दायित्व लेकर सहभागी हैं, इसलिए उनपर होनेवाले अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण भी अधिक तीव्र होते हैं । ऐसे समय पर उन्हें केवल नामजप का उपाय न बताते हुए ‘उन पर हो रहे अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण शीघ्र दूर होने हेतु उनकी नजर उतारनी है क्या एवं कितने दिन उतारनी है ?’, इसका भी विचार करना चाहिए । नजर उतारने पर उन्हें पुन: एक बार नामजप आदि उपाय ढूंढकर बताएं ।

 

३. होनेवाला आध्यात्मिक कष्ट एवं उसकी तीव्रता

३ अ. कुलदेवता रुष्ट होना

किसी कुटुंब पर उसके कुलदेवता रुष्ट होंगे, तो उस कुटुंब के व्यक्तियों को सतत शारीरिक वेदना होना, कुटुंबियों में वाद-विवाद होना, आर्थिक अडचनें आना, ऐसे स्वरूप के कष्ट होते हैं । ऐसों को कुलदेवता के दर्शन लेकर उनसे घर के सभी की साधना के बाधाएं दूर होने के लिए प्रार्थना करना, कुलदेवता की अनदेखी होने से उनसे क्षमायाचना करना, पूजाघर में कलश पर नारियल रखकर कुलदेवता को प्रतिदिन प्रार्थना करना, ऐसे उपाय बताएं ।

३ आ. पूर्वजों के कष्ट होना

इससे भी अधिक तीव्र स्वरूप के कष्ट कुटुंबियों को पूर्वजों के कष्ट होने पर होते हैं, उदा. घरवालों को दारू का व्यसन होना, त्वचारोग होना, घर में पैसा न टिकना, घर में अशांति होना इत्यादि । ऐसों को दिनभर दत्त का नामजप धीमी आवाज में लगाकर रखना, ढूंढे गए नामजप के साथ ही दत्त का नामजप भी कुछ समय नियमित करना, श्राद्धविधि करना, ऐसे उपाय बताएं ।

३ इ. अनिष्ट शक्तियों के कष्ट

कोई कारण न होते हुए भी उठा-पटक करना प्रतीत होना, मुंह में अपशब्द (गालियां) आना, चीखने-चिल्लाने का मन करना, अनिष्ट शक्तियों का प्रकटीकरण होना, इस स्वरूप के कष्ट अनिष्ट शक्तियों के कष्टों के कारण होते हैं । ऐसों को नामजप ढूंढकर देना एवं निश्चित अवधि तक करने के लिए कहना, तत्पश्चात पुन: नामजप ढूंढकर देना । अनिष्ट शक्तियों का कष्ट मंद, मध्यम अथवा तीव्र स्वरूप का है ? इस अनुसार ढूंढकर दिया हुआ नामजप करने की अवधि निर्धारित कर सकते हैं । कष्ट तीव्र स्वरूप का हो और उसे दूर होने के लिए अधिक समय लग रहा हो, तो एक ही नामजप अधिक कालावधि तक करने के लिए बता सकते हैं ।

 

४. अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण

अच्छे आध्यात्मिक स्तर वाला एवं समष्टि सेवा दायित्व लेकर करनेवाला साधक अथवा संत पर अनिष्ट शक्तियों को आक्रमण करने में अधिक शक्ति लगती है । ऐसी अनिष्ट शक्तियों ५ वें अथवा ६ ठे पाताल की भी हो सकती हैं । इसलिए उनके आक्रमण अधिक निर्गुण स्वरूप के होने से वे हमें सहजता से समझ में नहीं आते । इसके कुछ उदाहरण अर्थात कष्ट के लक्षण एक चक्र पर प्रतीत होते हैं; परंतु अनिष्ट शक्ति का स्थान किसी दूसरे ही चक्र पर होता है अथवा अनिष्ट शक्तियों द्वारा चक्र पर लाया आवरण कितना भी दूर किया जाए, तब भी वह पुन: पुन: आता है । (तब अनिष्ट शक्तियों द्वारा काली शक्ति का प्रवाह ऊपर से छोडा होता है) अथवा अनिष्ट शक्तियों द्वारा हमारे सामने काली शक्ति का पर्दा निर्माण करने से हमें शरीर पर आवरण प्रतीत नहीं होता; परंतु कष्ट तो होता ही है इत्यादि । इसलिए अनिष्ट शक्तियों के ऐसे आक्रमण अचूक पहचानना आवश्यक है । अनिष्ट शक्तियां चक्रों पर आक्रमण का स्थान भी बदलती हैं । इसलिए नामजप, मुद्रा एवं न्यासस्थान पुनःपुन: ढूंढना पडता है ।

इसप्रकार किसी को नामजपादि बताते समय हमारी सूक्ष्म क्षमता की जांच होती है । इसके साथ ही उपाय ढूंढते समय प्रत्येक बार- नया सीखने मिलता है । अनिष्ट शक्तियों से भी हमें काफी कुछ सीखने मिलता है । वे अपनी शक्ति अनावश्यक व्यर्थ नहीं करतीं । उनमें मितव्ययता (किफायत) होती है । जिस साधक की अथवा संत की जिस चक्र से संबंधित सेवा होती है, वे उस चक्रपर ही आक्रमण करती हैं, उदा. साधक-अधिवक्ता (वकील को) अधिक बोलना होता है, इसलिए अनिष्ट शक्ति उसके विशुद्धचक्र पर आक्रमण करती हैं । ज्ञान प्राप्त करनेवाले साधक के भी आज्ञाचक्र पर अनिष्ट शक्तियां आक्रमण करती हैं इत्यादि । उपाय ढूंढते समय भगवान भी नई-नई पद्धतियों से उपाय करना सिखाते हैं । बीजमंत्र के उपाय, कुंडलिनीशक्ति जागृत कर उस द्वारा उपाय, चैतन्य का प्रवाह सर्व चक्रों पर छोडना, सूक्ष्म से नजर उतारना ऐसे उपायों का तुरंत परिणाम होता है । इसलिए ‘अध्यात्म, अनंत का शास्त्र है’ एवं ‘जिज्ञासा हो जो भगवान बहुत कुछ सिखाते हैं’ यह सूत्र मन पर अंकित होता है । अंत में यह सब गुरुकृपा से ही सीख पाते हैं । गुरुदेवजी को हमारी सीखने की वृत्ति अच्छी लगती है और वे भरपूर कृपा करते हैं !’

– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, पीएच्.डी., गोवा.

अनिष्ट शक्तियां

वातावरण में अच्छी एवं बुरी शक्तियां कार्यरत होती हैं । अच्छी शक्तियां कार्य के लिए मनुष्य की सहायता करती हैं, तो बुरी वाईट शक्तियां कष्ट देती हैं । पूर्व के काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों के विघ्न लाने की अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । अथर्ववेद में अनेक अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच के साथ ही करनी, जादू-टोना, भानामती को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं । अनिष्ट शक्तियों के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेद आदि धर्मग्रंथों में बताए हैं ।

आध्यात्मिक कष्ट

इसका अर्थ व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन ५० प्रतिशत अथवा उससे भी अधिक मात्रा में होना, अर्थात तीव्र कष्ट, नकारात्मक स्पंदन ३० से ४९ प्रतिशत होना, अर्थात मध्यम कष्ट, तो ३० प्रतिशत से अल्प होना, अर्थात मंद आध्यात्मिक कष्ट होना है । आध्यात्मिक कष्ट यह प्रारब्ध, पूर्वजों के कष्ट आदि आध्यात्मिक स्तर के कारणों से होता है । आध्यात्मिक कष्ट का निदान संत अथवा सूक्ष्म स्पंदन समझ पानेवाला साधक कर सकता है ।

सूक्ष्म

व्यक्ति का स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाले अवयव नाक, कान, आंखें, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रियां हैं । ये पंचज्ञानेंद्रियां, मन एवं बुद्धि के परे अर्थात ‘सूक्ष्म’। साधना में प्रगति करनेवाले कुछ व्यक्तियों को ये ‘सूक्ष्म’ संवेदना अनुभव होती हैं । इस ‘सूक्ष्म’के ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।

सूक्ष्म-जगत्

जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रियों (नाक, जीभ, आंखें, त्वचा एवं कान) को समझ में नहीं आता; परंतु जिसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है, उसे ‘सूक्ष्म-जगत’ संबोधित करते हैं ।

सूक्ष्म का दिखाई देना, सुनाई देना इत्यादि (पंच सूक्ष्मज्ञानेंद्रियों को ज्ञानप्राप्ति होना)

कुछ साधकों की अंतर्दृष्टि जागृत होना, अर्थात उन्हें आंखों से न दिखाई देनेवाला दिखाई देता है, तो कुछ लोगों को सूक्ष्म का नाद अथवा शब्द सुनाई देते हैं ।

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