साधकों पर आनेवाला अनिष्ट शक्तियों का आवरण निकालने की एक लाभदायक पद्धति !

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‘अनिष्ट शक्तियों के कष्टों के कारण साधकों पर कष्टदायक आवरण अधिक मात्रा में आता है । नियमित रूप से उसे निकालना आवश्यक है । आवरण निकालने के पश्चात साधकों को होनेवाले आध्यात्मिक कष्ट कुछ मात्रा में अल्प होते हैं । नियमित रूप से उन्हें दूर करना आवश्यक है । मिरज आश्रम की श्रीमती अंजली अजय जोशी (आयु ५९ वर्ष) पिछले २ वर्षाें से सनातन की सात्त्विक उदबत्ती से स्वयं पर आनेवाला कष्टदायक शक्तिओं का आवरण निकालती हैं । उन्हें उसका अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है । इस पद्धति के संदर्भ में मैंने सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ से पूछा । उसमें उन्होंने कुछ परिवर्तन बताया । तदनुसार साधकों के लिए ‘उदबत्ती द्वारा आवरण निकालने की’ पद्धति यहां प्रस्तुत की है ।

आधुनिक पशूवैद्य अजय जोशी

१. उदबत्ती किस प्रकार घुमाएं ?

आवरण निकालते समय बिना प्रदीप्त सनातन की सात्त्विक उदबत्ती का उपयोग करें । उसे अपने जिस चक्र का आवरण निकालना है, उससे घडी के कांटे की दिशा से तथा घडी के कांटे की विपरीत दिशा से इस प्रकार दोनों ओर से तीन बार घुमाएं । आवरण निकालते समय उदबत्ती शरीर के चक्रस्थान के ऊपर शरीर से ३ – ४ सें.मी. की दूरी पर पकडें । अपनी सुविधानुसार उसे खडी अथवा आडी पकड सकते हैं ।

 

२. आवरण निकालने का चक्र तथा उस समय करने का नामजप

चक्र उदबत्ती घुमाते समय करने का नामजप
१. सहस्रार ‘ॐ’
२. आज्ञाचक्र (टिपण्णी१) श्री गुरवे नमः ।
३. विशुद्धचक्र ॐ नमः शिवाय ।
४. अनाहतचक्र (टिपण्णी२) ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
५. मणिपूरचक्र श्री ब्रह्मदेवाय नमः ।
६. स्वाधिष्ठानचक्र श्री दुर्गादेव्यै नमः ।
७. मूलाधार चक्र ॐ गं गणपतये नमः ।

टिपण्णी १ – आज्ञाचक्र का आवरण निकालते समय दोनों आंखों में स्थित आवरण दूर करने के लिए आंखें खुली रखें ।

टिपण्णी २ – अनाहतचक्र पर उदबत्ती घुमाने के पश्चात पेट पर ‘श्री पञ्चमहाभूतेभ्यो नमः ।’ यह नामजप करते हुए (सूत्र १ में बताया है, तदनुसार) उदबत्ती घुमाएं ।

तत्पश्चात संपूर्ण शरीर का (सिर से पैर तक) तीन बार आवरण निकालें । उस समय सिर से पैर तक सीधी रेखा में तीन बार उदबत्ती घुमाएं तथा ‘सच्चिदानंद परब्रह्म’ कहें ।

 

३. आवरण निकालने से होनेवाले लाभ

इस पद्धति से आवरण निकालने के लिए २ से ३ मिनट का ही समय लगता है । इस पद्धति से  साधकों को लाभ हुए । वे इस प्रकार हैं, अधिकांश साधकों पर आया हुआ आवरण तुरंत दूर होने की बात ध्यान में आई । साधकों को हल्कापन तथा उत्साह प्रतीत हुआ, साथ ही आनंद प्राप्त हुआ । तीव्र आध्यात्मिक कष्ट वाले एक साधक के कष्ट अल्प हुए । अतः आवरण निकालने की यह पद्धति उत्तम है ।

 

४. अन्य व्यक्ति पर आया हुआ आवरण निकालना भी सहज संभव

जिस प्रकार हम दूसरे के लिए उपाय करते हैं, उसी प्रकार दूसरे साधक पर आया हुआ आवरण भी हम इस पद्धति से दूर कर सकते हैं । यदि साधक उपस्थित नहीं है, तो केवल उस साधक का स्मरण कर अपने स्वयं के चक्रों का आवरण उदबत्ती से निकालें ।

 

५. आवरण दूर करते समय इन बातों की ओर ध्यान देना

अ. आवरण भावपूर्ण निकालें ।

आ. उदबत्ती का उपयोग होने के पश्चात उसे प्लास्टिक थैली में रखकर भारित (चार्ज)करने के लिए सनातन के ग्रंथ में रखें ।

इ. आवश्यकतानुसार उदबत्ती को परिवर्तित करें ।

ई. कष्ट की तीव्रता के अनुसार प्रति १ घंटा पश्चात अथवा आवश्यकतानुसार इस पद्धति से आवरण निकालें ।

 

६. प्रदीप्त उदबत्ती द्वारा आवरण निकालने की अपेक्षा
बिना प्रदीप्त उदबत्ती से आवरण निकालना अधिक प्रभावी रहने की बात ध्यान में आना

श्रीमती अंजली जोशी (धर्मपत्नी) दो साल से प्रदीप्त उदबत्ती का उपयोग कर इसी पद्धति से आवरण निकाल रही हैं । कुछ तीव्र कष्ट वाले साधकों को वह पद्धति बताने के पश्चात उनका २०-३० प्रतिशत आवरण अल्प हुआ था । सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी को यह पद्धति बताने पर उन्होंने बिना प्रदीप्त उदबत्ती से आवरण निकालने का प्रयोग करने के लिए बताया । तीव्र कष्ट वाले एक साधक का प्रदीप्त उदबत्ती से ३० प्रतिशत आवरण निकल रहा था । बिना प्रदीप्त उदबत्ती का प्रयोग करने के पश्चात उसका ३५ प्रतिशत तक आवरण दूर होने की बात ध्यान में आई । साथ ही बिना प्रदीप्त उदबत्ती से आवरण निकालने से कुछ साधकों को आज्ञाचक्र के स्थान पर अच्छी संवेदना प्रतीत होने लगी । इससे यह बात मेरे ध्यान में आई कि बिना प्रदीप्त उदबत्ती निर्गुण स्तर पर कार्य करती है, इसलिए उससे ५ प्रतिशत अधिक मात्रा में आवरण दूर होता है ।’ साथ ही यह बात सीखने मिली कि यदि साधकों ने साधना की कोई नई पद्धति ढूंढ निकाली तथा एक बार वह उन्नतों को दिखाई, तो उसका अधिक लाभ होता है ।

श्री गुरुदेवजी ने ही हम से आवरण निकालने के प्रयास करवाए । समष्टि को उसका लाभ प्राप्त होने के उद्देश्य से उन्होंने मुझे यह भी सिखाया कि अभ्यास किस प्रकार कर सकते हैं ?’ उनकी ही कृपा के प्रभाव से मुझे यह लिखना संभव हुआ । इस विषय में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।

– आधुनिक पशुवैद्य अजय जोशी (आध्यात्मिक स्तर ६८ प्रतिशत, आयु ६६ वर्ष), ढवळी, फोंडा, गोवा । (१९.६.२०२२)

अनिष्ट शक्ति

वातावरण में इष्ट तथा अनिष्ट शक्तियां कार्यरत रहती हैं । इष्ट शक्तियां कार्य के लिए मानव को सहायता करती हैं, तो अनिष्ट शक्तियां उसे कष्ट पहुंचाती हैं । पहले   ऋषिमुनियों के यज्ञ में असुरों द्वारा संकट आने की अधिकांश कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्ति, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच साथ ही करणी, भानामती को प्रतिबंधित करने के लिए मंत्र दिए जाते हैं । अनिष्ट शक्तियों के कष्ट निवारणार्थ वेदादि धर्मग्रंथों में पृथक आध्यात्मिक उपाय बताए गए हैं ।

 

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