अनुक्रमणिका
- १. उपर्युक्त व्याधियों में से कुछ व्याधियों के संदर्भ में
बताए गए जपों के विषय में साधकों को आई विशेषतापूर्ण अनुभूतियां
- १ अ. मूत्र के माध्यम से प्रथिन (प्रोटीन) जाना (नेफ्रॉटिक सिंड्रोम)
- १ आ. समलैंगिक आकर्षण प्रतीत होना
- १ इ. युवावस्था में लैंगिक विचार अधिक मात्रा में आना
- १ ई. शरीर में ‘इंसुलिन’ नहीं बनना (डायबिटीज)
- १ उ. नींद में बोलना, चिल्लाना तथा निकट सोए हुए व्यक्ति की ओर क्रोध से दौडकर जाना
- १ ऊ. शरीर में स्नायुओं की गुठली होना
- १ ए. ‘मायस्थेनिया ग्रैविस’ (मेंदु के विशिष्ट स्नायु से संबंधित चेतातंतु तक (नर्व तक) आनेवाली संवेदना उस स्नायु में जाने से प्रतिबंधित होने के कारण स्नायु में कार्य करने की क्षमता न रहना)
- १ ऐ. ‘एड्रिनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हार्माेन’ की मात्रा में वृद्धि
- २. नामजपों का महत्त्व
- ३. कृतज्ञता
- साधकों को सूचना तथा वाचकों को विनती !
‘विकारों पर नामजप के उपाय’ इस विषय पर शोध करें’, मन में ऐसा विचार आने के पश्चात सद्गुरु डॉ. गाडगीळ का उसी विषय पर प्रस्तुत लेख पढकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मन में सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ के प्रति शब्दातीत कृतज्ञता जागृत होना
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले ‘सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ का दिनांक २७.१२.२०२० को दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में ‘विकार दूर करने के लिए आवश्यक देवताओं के तत्त्वानुसार प्रस्तुत किया गया कुछ विकारों पर नामजप’ लेख प्रकाशित हुआ । वह पढने के पश्चात मुझे याद आया कि इससे २ दिन पूर्व मेरे मन में भी यही विचार आया था, हमें ‘इस प्रकार का शोध करना चाहिए; इससे अधिकांश साधकों को लाभ होगा, विशेषरूप से तीसरे महायुद्ध के समय जब दवाएं उपलब्ध नहीं होंगी, उस समय सभी को निश्चित लाभ होगा ।’ मेरे मन में आया यह विचार पहले से ही सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ के मन में ईश्वर ने दिया तथा उचित प्रकार से लिखना पूर्ण करवाया; इसलिए मेरे मन में सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ के प्रति शब्दातीत कृतज्ञता जागृत हुई तथा यह विचार उन्हें प्रदान करने के कारण देवताओं के प्रति भी भाव जागृत हुआ ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी |
यह बात ध्यान में आईं कि आगामी आपत्काल में आधुनिक वैद्य अथवा उनकी दवाएं उपलब्ध नहीं होंगी । उस समय यह ज्ञात करना कठिन होगा कि किस विकार के लिए क्या उपाय कर सकते हैं । अतः साधक यह लेख संग्रह करके रखें तथा उसी के अनुसार नामजप करें । इससे विकार अल्प होने में लाभ होगा ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (३०.६.२०२२) |
‘कौन सा विकार दूर करने के लिए दुर्गादेवी, राम, कृष्ण, दत्त, गणपति, मारुति एवं शिव इन ७ प्रमुख देवताओं में से किस देवता का तत्त्व कितनी मात्रा में आवश्यक है ?’, ध्यान के माध्यम से यह ढूंढकर तदनुसार मैंने कुछ विकारों पर नामजप सिद्ध किए । ‘कोरोना विषाणु’ की बाधा दूर करने के लिए मैंने पहली बार ऐसा नामजप ढूंढा था । वह परिणामकारक है, यह बात ध्यान में आने के पश्चात मुझे अन्य विकारों पर भी नामजप ढूंढने की प्रेरणा मिली । यह जप अर्थात आवश्यक विभिन्न देवताओं का एकत्रित नामजप है । मेरे ढूंढे हुए ये नामजप साधकों को उनके विकारों के लिए प्रस्तुत किए हैं । ‘उन नामजपों का उन्हें अच्छी प्रकार से लाभ हो रहा है ।’ उनके ऐसा बताने के पश्चात यह बात ध्यान में आई । दो माह पूर्व कुछ विकार, उसके लिए नामजप तथा साधकों दरा वह नामजप करने के पश्चात उन्हें प्राप्त अनुभूति दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में मुद्रित की गई थी । आज कुछ अन्य विकार तथा उनके लिए आवश्यक नामजप यहां प्रस्तुत किए हैं । ये नामजप पिछले ३ माह में कुछ साधकों को दिए थे । वे साधक उन्हें आई अनुभूतियां शीघ्रातिशीघ्र ग्रंथ के लिए लिखकर इस लेख में नीचे दिए गए ई-मेल अथवा टपाल के पते पर भेजें ।
विकारों पर ध्यान के द्वारा नामजप का शोध करते हुए सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळ
विकार | उपयोग में आनेवाला कुछ नामजपों का क्रमश: एकत्रित नामजप (टीप) |
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१. पैरों में ऐंठन होना | श्री गणेशाय नमः । श्री दुर्गादेव्यै नमः । श्री हनुमते नमः । श्री हनुमते नमः । ॐ नमः शिवाय । |
२. मूत्र द्वारा प्रथिनों का (प्रोटीन) बाहर निकल जाना (नेफ्रॉटिक सिंड्रोम) | श्री गुरुदेव दत्त । श्री दुर्गादेव्यै नमः । श्रीराम जय राम जय जय राम । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
३. स्क्लेरोडर्मा (लक्षण-चमडी मोटी/कठोर होना, रक्तप्रवाह अल्प होना, थकान, स्नायु सिकुडना आदि ) | श्री गुरुदेव दत्त । श्रीराम जय राम जय जय राम । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
४. सिर पर फुंसी आने से खुजली आना | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्री गुरुदेव दत्त । श्री हनुमते नमः । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
५. समलैंगिक आकर्षण प्रतीत होना | श्री गुरुदेव दत्त । श्री गुरुदेव दत्त । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
६. युवावस्था में लैंगिक विचार अधिक मात्रा में आना | श्री गुरुदेव दत्त । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
७. शरीर में ‘इंसुलिन’ न बनना (डायबिटीज) | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्री गणेशाय नमः । श्री दुर्गादेव्यै नमः । श्री हनुमते नमः । श्री हनुमते नमः । |
८. नींद में बोलना, चिल्लाना तथा निकट सोए हुए व्यक्ति की ओर क्रोध से दौडकर जाना | श्री गुरुदेव दत्त । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
९. शरीर में स्नायु की गुठलियां होना | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
१०. मायस्थेनिया ग्रॅविस (मेंदू द्वारा विशिष्ट स्नायु से संबंधित चेतातंतु तक (नर्वतक) आनेवाली संवेदना उस स्नायु में जाने से प्रतिबंधित होने के कारण उस स्नायु का कार्य बाधित होना ) | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्री गणेशाय नमः । श्री हनुमते नमः । श्री हनुमते नमः । ॐ नमः शिवाय । |
११. जठर में पित्त की मात्रा अधिक होने के कारण खाया हुआ अन्न वमन द्वारा बाहर निकलना तथा उससे थकान आना | श्री दुर्गादेव्यै नमः । श्री हनुमते नमः । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
१२. रक्त में ‘कोलेस्ट्रॉल’ की मात्रा अधिक होना | श्री गुरुदेव दत्त । श्रीराम जय राम जय जय राम । श्री हनुमते नमः । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
१३. फ्रोजन शोल्डर | श्री गणेशाय नमः । श्री हनुमते नमः । श्री हनुमते नमः । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
१४. ‘एड्रिनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हार्माेन’ की मात्रा अधिक होना | श्री गणेशाय नमः । श्रीराम जय राम जय जय राम । |
१५. मूत्रपिंड में (किडनी में ) सूजन आना | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्री गणेशाय नमः । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
१६. मासिक धर्म के समय पेटदर्द की मात्रा अधिक होना | श्री गणेशाय नमः । श्री हनुमते नमः । श्री हनुमते नमः । श्री हनुमते नमः । ॐ नमः शिवाय । |
१७. बडी आंत पर फोडा (अल्सर) | श्री गणेशाय नमः । श्री गणेशाय नमः । श्रीराम जय राम जय जय राम । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
१८. बाहर की परिस्थिति के कारण मानसिक संतुलन बिगडना | श्री गुरुदेव दत्त । श्री गणेशाय नमः । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
१९. ‘कोरोना’ ग्रसित व्यक्ति का रक्त थम जाना, उसे पतला करने के लिए | श्रीराम जय राम जय जय राम । श्री गुरुदेव दत्त । श्री हनुमते नमः । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय । |
२०. ‘स्टिरॉइड’ का दुष्परिणाम होना | श्री गणेशाय नमः । श्री गणेशाय नमः । श्रीराम जय राम जय जय राम । श्री हनुमते नमः । ॐ नमः शिवाय । |
टिपण्णी – किसी व्याधि के लिए दिया हुआ नामजप यदि उसी क्रम से किया गया, तो वह एक नामजप होगा । इस प्रकार यह नामजप नियोजित कालावधि तक निरंतर करना ।
१. उपर्युक्त व्याधियों में से कुछ व्याधियों के संदर्भ में
बताए गए जपों के विषय में साधकों को आई विशेषतापूर्ण अनुभूतियां
१ अ. मूत्र के माध्यम से प्रथिन (प्रोटीन) जाना (नेफ्रॉटिक सिंड्रोम)
यह मूत्रपिंड की (‘किडनी’ का) व्याधि है । इसमें मूत्र द्वारा अधिक मात्रा में प्रथिन (प्रोटीन) बाहर निकल जाते हैं । एक साधिका के ९ वर्ष के लडके को वर्ष २०१५ से यह व्याधि थी । यह व्याधि उसे हर ३ – ४ माह पश्चात होती थी । उस समय उसे ‘स्टिरॉइड’ देना आवश्यक रहता था । ‘स्टिरॉइड’ के कारण उसके पूरे शरीर में अधिक सूजन आती थी । उसकी इस व्याधि पर मैंने २१ दिसंबर २०२१ को नामजप दिया । साधिका ने लडके के लिए प्रतिदिन १ घंटा वह नामजप किया । जप आरंभ करने के पश्चात ७ दिनों में लडके के मूत्र द्वारा प्रथिन निकलना बंद हो गया । साधिका को ‘लडके के मूत्र से निकलनेवाले प्रथिन की जांच घर में ही अत्यंत सहज पद्धति से करने आता था । लडके को ३-४ माह से हो रही यह व्याधि नामजप के प्रभाव से पूरी तरह से प्रतिबंधित हो गई, किंतु लडके की मां अभी तक वह नामजप कर रही है । तत्पश्चात इस व्याधि पर लडके की मां ने होमियोपैथिक दवा आरंभ की; क्योंकि वैद्यों के ध्यान में यह बात आई कि उस लडके की व्याधि किसी भय के कारण उत्पन्न हुई है । दवा के माध्यम से वे जड से उस व्याधि को दूर कर रहे हैं ।
१ आ. समलैंगिक आकर्षण प्रतीत होना
एक जिज्ञासु को समलैंगिक आकर्षण प्रतीत हो रहा था । उसने खुले मन से यह समस्या बताई । तत्पश्चात इस व्याधि के लिए मैंने उसे नामजप बताया । वही नामजप वह प्रतिदिन १ घंटा करने लगा । तत्पश्चात २० दिन में ही उसके कष्ट अल्प हो गए ।
१ इ. युवावस्था में लैंगिक विचार अधिक मात्रा में आना
एक जिज्ञासु युवक को स्त्रियों के प्रति लैंगिक आकर्षण अधिक मात्रा में प्रतीत हो रहा था । उसके मन में निरंतर आनेवाले इन विचारों के कारण उसे साधना करने में अडचनें निर्माण हो रही थीं । इस संदर्भ में उसके नामजप पूछने के पश्चात मैंने उसे नामजप दिया । १५ दिन नियमितरूप से वह नामजप करने के पश्चात उसका यह कष्ट अधिक मात्रा में दूर हुआ ।
१ ई. शरीर में ‘इंसुलिन’ नहीं बनना (डायबिटीज)
आधुनिक वैद्य साधक के १६ वर्षीय लडके के शरीर में ‘इंसुलिन’ बन ही नहीं रहा था । यह बात अपवाद से किसी एक व्यक्ति के संदर्भ में घटती है । अतः ऐसे व्यक्ति को प्रत्येक ३ माह पश्चात ‘रक्त में ‘इंसुलिन’की मात्रा कितनी है ?’, यह जांच कर तदनुसार उपचार करना पडता है । इस साधक के लडके को मैंने इस व्याधि पर जनवरी २०२२ में नामजप दिया । पिछले ४ माह प्रतिदिन १ घंटा वह नामजप करने के पश्चात उसके रक्त में होनेवाली ‘इंसुलिन’ की मात्रा अल्प होने की अपेक्षा वह १ नॅनोग्रॅम/१ मिलीलिटर इतनी रह गई । रक्त में ‘इंसुलिन’ की सर्वसाधारण मात्रा २ नॅनोग्रॅम/१ मिलीलिटर इतनी रहती है । अतः अब उसे प्रतिदिन २ घंटे नामजप करने के लिए बताया है ।
१ उ. नींद में बोलना, चिल्लाना तथा निकट सोए हुए व्यक्ति की ओर क्रोध से दौडकर जाना
दो साधकों को यह कष्ट हो रहे थे । उन दोंनो साधकों कीे इस व्याधि की जांचकर नामजप देने के पश्चात दो सप्ताह में दोनों के ही यह कष्ट ठीक हो गए ।
१ ऊ. शरीर में स्नायुओं की गुठली होना
मार्च २०२२ में एक साधिका की भाभी के पेट में स्नायु की गुठली हुई थी । इस व्याधि पर मैंने उसे नामजप दिया । उसने वह नामजप प्रतिदिन १ घंटा किया । तत्पश्चात वह गुठली दब गई है, यह बात उसके ध्यान में आई । वह वैद्यों पास जांच करने गई थी । ‘स्कॅनिंग’के पश्चात वैद्य के ध्यान में आया कि उस गुठली का आकार छोटा हो गया हुआ है । वैद्य ने साधिका को बताया कि स्नायु की गुठली का इस प्रकार से छोटा होना मैंने पहली बार ही देखा है । यह कभी संभव नहीं होता । गुठली नष्ट होने की प्रक्रिया एक अच्छा लक्षण है । यह ध्यान में आता है कि यह परिणाम नामजप का था ।
१ ए. ‘मायस्थेनिया ग्रैविस’ (मेंदु के विशिष्ट स्नायु से संबंधित चेतातंतु तक (नर्व तक)
आनेवाली संवेदना उस स्नायु में जाने से प्रतिबंधित होने के कारण स्नायु में कार्य करने की क्षमता न रहना)
यह एक गंभीर स्वरूप की व्याधि है । यह व्याधि चेतातंतु (नर्व्ज)एवं स्नायु के संधिस्थान से(न्यूरोमस्क्यूलर जंक्शन से) संबंधित है । यह व्याधि ‘ऑटोइम्यून डिसॉॅर्डर’ (स्वयं में रहनेवाली प्रतिकारक्षमता अपने ही शरीर पर अथवा शरीर के घटक पर आक्रमण करना) व्याधि के अंतर्गत आती है । ‘मायस्थेनिया ग्रैविस’ में अस्थिओं से जुडे हुए स्नायु व्याधिपीडित होते हैं । अतएव शरीर के कुछ भाग की (अवयवों की) हलचल करने के लिए तथा श्वसनक्रिया से संबंधित जो स्नायु रहते हैं, वे इस व्याधि में क्षीण होते हैं । एक साधिका को यह विकार हुआ था । अतएव उसे किसी भी प्रकार की कृति करना, उदा. उंगली से पेन उठाना भी सभंव नहीं था । वह थक जाती थी । उसे लेटकर रहना पडता था । इस पर ‘स्टिरॉइड’ ही एक औषधि है; किंतु उससे यह दुष्परिणाम होता था कि उसे सूजन आती थी ।
इस व्याधि पर फरवरी २०२२ में मैंने उसे नामजप ढूंढकर दिया । दिया हुआ नामजप वह प्रतिदिन २ घंटे करने लगी । एक माह में ही इस नामजप का उसे अच्छा लाभ प्राप्त हुआ । वह दैनंदिन कार्य करने लगी । आधुनिक वैद्यों ने भी बताया कि यह अच्छा परिवर्तन है तथा अब यह व्याधि अपने नियंत्रण में आ गई है । उन्होंने उसके ‘स्टिरॉइड’ औषधियोेंं की मात्रा भी अल्प कर दी । साथ ही आधुनिक वैद्य ने कहा कि यह महत्त्वपूर्ण बात है कि श्वसनक्रिया पर इस व्याधि का परिणाम नहीं हुआ है । अन्यथा गंभीर स्थिति निर्माण होने की संभावना रहती ।
१ ऐ. ‘एड्रिनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हार्माेन’ की मात्रा में वृद्धि
फरवरी २०२२ में एक साधिका के शरीर की ‘एड्रिनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हार्माेन’ की ‘हार्माेन’ की (संप्रेरक की) मात्रा में वृद्धि होने का ध्यान में आया । उसका रक्तदाब निरंतर अल्प रहता था । (यदि रक्त में स्थित ‘कॉर्टिसॉल’ हार्माेन की मात्रा अल्प हुई, तो ‘एड्रिनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हार्माेन’ की मात्रा में वृद्धि होती है । रक्तदाब अल्प होने का कारण ‘कॉर्टिसॉल’ नामक हार्माेन की मात्रा अल्प रहना ।’) इससे उसे थकान रहती थी, साथ ही उसकी पाचन (मेटॅबोलिज्म) क्रिया पर भी परिणाम हुआ था । इन सभी के कारण उसके शरीर की प्रतिकारक्षमता भी दुर्बल हो गई थी । उसकी इस व्याधि पर मैंने उसे मार्च २०२२ में नामजप दिया तथा वह प्रतिदिन १ घंटा करने के लिए बताया । उसने ३ माह वह नामजप किया । आधुनिक वैद्याें के कथनानुसार उसने इस व्याधी पर १ माह तक ‘स्टिरॉईड’ लिया । जून २०२२ में उसकी शारीरिक स्थिति में कुछ सुधार आया । उसकी थकान की मात्रा दूर हुई, पूर्व मे अल्प होनेवाला रक्तदाब बढ गया, साथ ही उसे अन्नपचन होने लगा । उसमें स्थित ‘एड्रिनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हार्माेन’ की मात्रा पहले ७२.६ पिकोग्रॅम/१ मिलीलिटर रहती थी, वह अब ६४.१ पिकोग्रॅम/१ मिलीलिटर इतनी हुई । (‘एड्रिनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हार्माेन’ की सर्वसाधारण मात्रा ४६ पिकोग्रॅम/१ मिलीलिटर के नीचे होनी चाहिए ।)
२. नामजपों का महत्त्व
आपत्काल में औषधि एवं आधुनिक वैद्यों का अभाव प्रतीत होगा । उस समय इन नामजपों का उपयोग अच्छी तरह से होगा ।
३. कृतज्ञता
परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपा के कारण ही मैं ये नामजप ढूंढ सका तथा उन जपों की अच्छी परिणामकारकता भी ध्यान में आई । उसके लिए मैं परात्पर गुरु डॉक्टरजी के चरणों में कोटिशः कृतज्ञ हूं ।’
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, पी.एचडी., महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा (३.७.२०२२)
साधकों को सूचना तथा वाचकों को विनती !यहां प्रस्तुत व्याधियों में से यदि कोई व्याधि हुई है, तो उसे दूर करने के लिए ‘उस संदर्भ में बताया गया नामजप कर सकते हैं । यदि नामजप करना है, तो वह नामजप १ माह प्रतिदिन १ घंटा प्रयोग के रूप में कर सकते हैं । इस नामजप के संदर्भ में आनेवाली अनुभूति [email protected] इस ई-मेल पर अथवा आगे के टपाल पते पर भेजें । ग्रंथ में प्रकाशित करने की दृष्टि से, साथ ही नामजप की योग्यता सिद्ध करने के लिए भी ये अनुभूतियां उपयुक्त सिद्ध होंगी । पता : सनातन आश्रम, २४/बी रामनाथी, बांदोडा, फोंडा, गोवा । पिनकोड ४०३४०१ |