साधना के संदर्भ में जितने व्यक्ति, उतनी प्रकृतियां, उतने साधनामार्ग, इस सिद्धांत के अनुसार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों को विद्या ग्रहण करने की उनकी क्षमता और कला के प्रति उनकी रुचि के अनुसार साधना सिखाई ।
आज परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में ईश्वरप्राप्ति हेतु कला, यह ध्येय सामने रखकर अनेक साधक चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्यकला, वास्तुविद्या आदि कलाआें के माध्यम से साधना कर रहे हैं । आगे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा स्थापित महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के माध्यम से साधना की दृष्टि से १४ विद्या और ६४ कलाआें की शिक्षा दी जानेवाली है ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में विविध कलाआें में पारंगत साधक-कलाकार उनकी कला का सात्त्विक प्रस्तुतिकरण होने हेतु शोधकार्य कर रहे हैं ।
चित्रकला और मूर्तिकला
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधक-कलाकारों द्वारा बनाए श्रीविष्णु, लक्ष्मी, श्रीराम, मारुति, श्रीकृष्ण, शिव, दुर्गादेवी, गणपति व दत्तात्रेय, इन नौ देवताआें के चित्र, विविध देवताआें के तत्त्व से युक्त रंगोलियां तथा श्रीगणेश की मूर्ति आदि में संबंधित देवता का तत्त्व, साथ ही शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद व शांति अधिकाधिक आए, इसलिए प्रत्येक चरण पर मार्गदर्शन किया । आगामी १-२ वर्षों में उनके मार्गदर्शन में मूर्तिकार-साधक श्री दुर्गादेवी के मारक तत्त्व से युक्त मूर्ति बनानेवाले हैं ।
सात्त्विक अक्षर और संख्या तथा सात्त्विक मेंहदी
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में सात्त्विक अक्षर एवं संख्याआें की निर्मिति की गई है । इसी प्रकार सात्त्विक मेंहदी की कलाकृतियों की भी निर्मिति की गई है ।
संगीत
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने विविध देवताआें के नामजप ऐसी धुन पर रचे है जिससे संबंधित देवता का तत्त्व तथा भाव जागृत हो और क्षात्रगीतों से क्षात्रवृत्ति जागृत हो । इसी के साथ शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्टों के कारण होनेवाली व्याधियों पर संगीत द्वारा उपचार करने संबंधी शोधकार्य भी हो रहा है ।
नृत्यकला
नृत्य की विविध शारीरिक स्थितियां और मुद्राआें का आध्यात्मिक दृष्टि से अनुशीलन किया है।
सनातन द्वारा साकार की गईं सात्त्विक कलाकृतियां ! देवताआें के चित्र एवं कलाकृतियां (सात्त्विकता का प्रतिशत कोष्टक में दिया गया है । वर्तमान कलियुग में ३० प्रतिशत सात्त्विकता ही आना संभव है ।)
अधिक जानकारी हेतु पढें सनातन के ग्रंथ
* देवताआें के तत्त्व आकृष्ट एवं प्रक्षेपित करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां और श्री गणेशमूर्ति धर्मशास्त्रानुसार हो !
* सात्त्विक हिन्दी अक्षर और अंक लिखने की पद्धति एवं सात्त्विक मेंहदी (२ भाग) (आगामी प्रकाशन)
* ध्वनिचक्रिकाएं – देवताआें का नामजप एवं उपासनाशास्त्र (३ भाग) तथा क्षात्रगीत