‘कोटिश: कृतज्ञता’ ऐसा क्यों कहा जाता है ?

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साधक अथवा भक्त कृतज्ञता व्यक्त करते समय अंत में कहते हैं ‘ईश्वर, आपके चरणों में कृतज्ञता !’ ‘कोटिश: कृतज्ञता’ का क्या अर्थ है? ‘कोटिश: कृतज्ञता’ शब्द का प्रयोग हम क्यों करते हैं ?’ क्या कभी इसका विचार किया है  ।

सुबह से रात को नींद आने तक ईश्वर हमारे लिए जो कुछ करते हैं, उस प्रत्येक बात के लिए कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, किंतु वह अल्प ही है । प्रतिदिन जीवित रहने के लिए, जीवन में आनेवाले प्रत्येक प्रसंग तथा घटना के लिए; संक्षेप में प्रत्येक बात के लिए यदि कोटि कोटि अर्थात अनंत कोटि कृतज्ञता व्यक्त करें, वह अल्प ही होगी; इसीलिए ‘कोटिश: कृतज्ञता’ शब्द का प्रयोग किया जाता है !

 

सद्गुरु राजेंद्र शिंदे

१. शरीर का कार्य सुनियंत्रित रूप से चलानेवाले सभी कार्य के लिए कृतज्ञता चाहिए !

हमारे शरीर का कार्य किस प्रकार चलता है ? मेरा श्वास एवं हृदय कैसे कार्य करते हैं ? क्या उन पर मेरा नियंत्रण है ? मुझे भूख कैसे प्रतीत होती है ? मैंने किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण किया, किंतु रक्त, मज्जा, रस, मांस, अस्थि, मेद आदि कार्य हेतु कैसे उसका परिवर्तन होता है ? क्या उस पर मेरा नियंत्रण है ? देह के अन्य सभी अवययों का कार्य किस प्रकार होता है ? उन पर मेरा कुछ नियंत्रण न होते हुए भी वे कृतियां व्यवस्थित रूप से हो रही हैं । इस पर ईश्वर का ही पूर्ण नियंत्रण है । उसके लिए कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, वह अल्प ही सिद्ध होगी !

 

२. सृष्टि एवं निसर्ग द्वारा प्राप्त सभी वस्तुओं के लिए कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए !

कैसे हुआ सृष्टि का निर्माण ? भिन्न-भिन्न प्रकार के पेड, रंगबिरंगे सुवासित फूल, भिन्न स्वाद के फल, अनाज, ये सभी हमारे लिए ईश्वर ने निर्माण किया है । व्यावहारिक जीवन में १ लिटर शुद्ध पानी खरीदने के लिए हमें १५ से २० रुपए देने पडते हैं । यदि ईश्वर द्वारा हवा, पानी, प्रकाश प्राप्त न होता, तो क्या हमें यह जीवन जीना संभव होता ? ये सारी वस्तुएं हमें नि:शुल्क प्राप्त होती हैं । किंतु उनके लिए हम कितनी बार कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ? इन सभी बातों के लिए प्रत्येक पल-पल हमें कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए !

 

३. विश्व की तुलना में भारतीयों की स्थिति समाधानी होने के कारण कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए  !

आज विश्व के अनेक देशों में अराजकता की स्थिति है । अमेरिका समान धनी देश में नीति इस प्रकार रसातल में पहुंच चुकी है, कि वहां के नागरिकों को मन:शांति प्राप्त नहीं होती । इस्लामी देश ने क्रूरता की परिसीमा पार कर ली है, तो अप्रीकी देशों ने निर्धनता की परिसीमा पार की है ! इसकी तुलना में भारत का जनजीवन कुछ मात्रा में समाधानी है, वह केवल ईश्वर, संत एवं गुरु की कृपा के कारण ही है ।

 

४. ऋषिमुनि, द्रष्टा संत एवं गुरु सूक्ष्म में लडकर भारत की रक्षा करने के कारण उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए !

अ. दूसरे महायुद्ध के समय भारतविरोधी शक्तियों से देश की रक्षा करने हेतु महर्षि अरविंद  स्वयं सूक्ष्म से युद्ध लडे थे ।

आ. द्रष्टा संतों द्वारा लिखे गए लेख तथा ग्रंथों द्वारा यह बात ध्यान में आती है कि भारत पर आई अधिकांश प्राकृतिक आपत्तियां, साथ ही युद्धसदृश उत्पन्न परिस्थितियां हिमालय में तपस्या करनेवाले तपस्वियाें के तपोबल के कारण ही प्रतिबंधित हुई हैं ।

इ. आज भारत में अपराध, भ्रष्टाचार, महिलाओं पर होनेवाले अत्याचार, भारतविरोधी कार्यवाही आदि की मात्रा अधिक होने के कारण, साथ ही प्रजा में साधना का अभाव रहने के कारण रज-तम का भीषण प्राबल्य है । ऐसी परिस्थिति में भी भारत की जनता कुछ मात्रा में सुव्यवस्थित जीवन व्यतीत कर रही है । इसका कारण है, अभी भी अनेक ज्ञात-अज्ञात संत समष्टि हेतु साधना कर रहे हैं । हिमालय में रहनेवाले ऋषिमुनि के साधना करने के कारण रज-तम के प्रकोप से भारत की रक्षा हो रही है; किंतु दुर्दैव से वर्तमान की जनता को इस बात का भान नहीं है । इन सभी के प्रति साधारण जनता अनभिज्ञ है ।

ई. अनिष्ट शक्तियां मानव पर निरंतर आक्रमण करती हैं; किंतु मानव को सूक्ष्म का ज्ञान न होने के कारण यह बात ध्यान में नहीं आती । अतः वह इस विषय में पूरी तरह से अनभिज्ञ रहता है; किंतु हिमालय स्थित संत तथा भारत में निवास करनेवाले वास्तविक संत एवं गुरु द्वारा निरंतर इन शक्तियों से लडने के कारण पल-पल मानव की रक्षा होती है । मनुष्य में इन अनिष्ट शक्तियों से लडने का सामर्थ्य अंशमात्र भी नहीं है । अतः समाज को ऋषिमुनि एवं संतों के प्रति निरंतर कृतज्ञ रहना चाहिए !

 

५. यज्ञयागादि साधना द्वारा अनिष्ट शक्तिओं से समाज की रक्षा करनेवाले द्रष्टा संतों के प्रति कृतज्ञता !

अ. प्राचीन समय में ऋषिमुनि यज्ञयागादि साधना करते थे । उसका लाभ संपूर्ण सृष्टि को होता था । उससे तत्कालीन प्रजा तथा राजाओं को उनके विषय में कृतज्ञता प्रतीत होती थी ।

आ. सनातन के रामनाथी आश्रम में अनेक प्रकार के यज्ञयाग किए जा रहे हैं । उसका लाभ साधकों के साथ संपूर्ण समाज को भी हो रहा है । उससे अनिष्ट शक्तिओं के आक्रमण एवं पूर्वजों के कष्ट अल्प होना आदि लाभ समाज को प्राप्त हो रहे हैं । सभी लोगों को सुखी, समाधानी जीवन प्राप्त होगा ।

इ. ईश्वर, संत अथवा गुरु साधारण लोगों के लिए क्या क्या करते हैं, यह बात यदि स्थूल रूप से ज्ञात होना कठिन है, तो उनके सूक्ष्म का कार्य हम कैसे जान जाएंगे ? ‘ईश्वर मेरे लिए कितना कर रहे हैं’, सदैव ऐसा विचार कर कृतज्ञता व्यक्त करेंगे !

 

६. साधारण मानव को साधना का मार्ग दिखाकर उसमें देवत्व प्रकट करनेवाले गुरुदेव  के प्रति कृतज्ञता !

मानव में स्थित देवत्व प्रकट करने का मार्ग संत एवं गुरु दिखाते हैं । ‘नर का नारायण’ अर्थात प्रत्यक्ष में ईश्वर बनाने का सामर्थ्य उनमें रहता है । साधना करने से साधारण मानव में देवत्व आता है । ऐसा मार्ग दिखानेवाले गुरु के प्रति साधारण मनुष्य कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करे, तो क्या वह अल्प ही नहीं है ?

 

७. यदि विश्व में केवल ५ प्रतिशत जनता साधना करे, तो भी सात्त्विक समाज की निर्मिति हो सकती है । यह ज्ञान गुरुदेव के अतिरिक्त कौन दे सकता है ? साधना का यह मार्ग दिखानेवाले गुरुदेवजी के प्रति कृतज्ञता !

 

८. ईश्वर ने अत्यंत प्रीतिमय अंतःकरण से मानव को सब कुछ देकर भेजा है !

ईश्वर ने मानव को आनंदी जीवन जीने के लिए सबकुछ देकर भेजा है । उसे आनंदी एवं संतुष्ट जीवन जीना संभव हो, इसलिए शास्त्रशुद्ध जानकारी देनेवाला ‘धर्माचरण’ किस प्रकार करें, यह धर्मग्रंथों के माध्यम से बताया है । तदनुसार आचरण कर वह आनंदी हो सकता है । मानव के कल्याण के लिए आवश्यक सर्व ज्ञान इन धर्मग्रंथों के माध्यम से ईश्वर ने दिया है । मानव को उसके लिए कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है । वर्तमान के मानव में स्वयं के कल्याण के लिए कुछ भी करने की क्षमता भी नहीं है । संत, ऋषिमुनि एवं देवताओं ने ये सभी अत्यंत प्रीतिमय अंतःकरण से मानव को दिया है । उसके लिए उनके चरणाें में कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, वह अल्प ही है !

 

९. अपार क्षमता से ब्रह्यांड का व्यापक कार्य सुनियोजित रूप से संभालनेवाले परमेश्वर के चरणों में कोटिशः कृतज्ञता !

साधारण मानव को परिवार का पालन करते समय भी परेशानी होती है । परमेश्वर तो सुनियोजित रूप से पूरे ब्रह्मांड का व्यापक कार्य संभाल रहे हैं । उनकी अपार क्षमता की हम कल्पना भी नहीं कर सकते ! ऐसे इस महान परमेश्वर के चरणों में कोटिशः कृतज्ञता !

– (सद्गुरु) राजेंद्र शिंदे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल

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