संत विसोबा खेचर महाराष्ट्र के महान संत होकर गए । संत ज्ञानेश्वर उनके गुरु, तो संत नामदेवजी उनके शिष्य थे । संत विसोबा खेचर शैव पंथीय थे; परंतु उनका वारकरी एवं नाथ संप्रदाय से भी निकट का संपर्क आया । विसोबा खेचर वास्तव में संत ज्ञानेश्वर एवं उनके भाइयों से द्वेष करते थे; परंतु एक बार संत ज्ञानेश्वर की पीठ पर उनकी बहन संत मुक्ताबाई ने रोटियां सेंकी । तब वे भी वहां उपस्थित थे, जिसे देख वे संत ज्ञानेश्वर की चरणों में नतमस्तक हो गए ।
एक बार संत नामदेव महाराजजी से पांडुरंग बोले, ‘‘तुम्हारे जीवन में सद्गुरु नहीं हैं । जब तक तुम पर सद्गुरु की कृपा नहीं होती, तब तक तुम्हें मेरे निराकार सत्य स्वरूप की पहचान नहीं होगी । तुम विसोबा खेचर से जाकर मिलो । वे महान सत्पुरुष हैं । वे तुम्हें दीक्षा देंगे ।
पांडुरंग की आज्ञा अनुसार नामदेव महाराज विसोबा खेचर से मिलने गए । एक ज्योर्तिलिंग मंदिर में उनके सद्गुरु विसोबा खेचर पैर फैलाकर बैठे थे । उनकी अवस्था इसप्रकार थी : एक वृद्ध पुरुष जिनके शरीर के अनेक स्थानों पर घाव हो गए थे और उससे मवाद बह रहा था । उनके संपूर्ण शरीर पर मक्खियां भिनभिना रही थीं । शरीर से दुर्गंध आ रही थी । पैरों में तेल से सनी चप्पलें पहने उन्होंने अपने चरण पिंडी पर रखे थे । अपने भावी सद्गुरू की ऐसी दयनीय अवस्था देखकर नामदेव महाराजजी को बहुत दु:ख हुआ; परंतु विसोबा खेचर नाटक कर रहे हैं, यह नामदेव महाराजजी को ज्ञात नहीं था ।
नामदेव महाराज संत विसोबा खेचर के पास गए और बोले, ‘‘अरे, आप भगवान शंकर की पिंडी पर अपने पैर रखकर बैठे हैं ? चलिए, उठकर ठीक से बैठिए । इस पर संत विसोबा खेचर नामदेव महाराजजी से बोले, ‘‘बेटा, क्या करूं ? यह देह इतनी क्षीण हो गई है कि मैं हिल तक नहीं सकता । वे नटखट बच्चे आए और उन्होंने मेरे पैर पकडकर शिवपिंडी पर रख दिए । मुझमें पैर हिलाने तक की शक्ति शेष नहीं है । इसलिए अब कृपा कर तुम ही मेरे पैर वहां उठकर रख दो, जहां पिंडी नहीं । नामदेव महाराजजी को उनका कहना स्वाभाविक लगा एवं उन्होंने उनके चरण उठाकर एक ओर किए, तो वहां पुन: पिंडी तैयार हो गई । वे जिस दिशा में पैर हिलाते, उस दिशा में पिंडी ! यह सब चमत्कार देखकर नामदेव महाराज आश्चर्यचकित हो गए ।
नामदेव महाराजजी ने आश्चर्य से विसोबा की ओर देखा । नामदेव महाराजजी को एकाएक वे एक अत्यंत तेजस्वी ब्राह्मण सामने दिखाई दिए । उनके शरीर की दुर्गंध दूर हो गई । संत विसोबा खेचर ने नामदेव महाराजजी के मस्तक पर हाथ रखा, उसी क्षण नामदेव महाराजजी को सर्वत्र पांडुरंग दिखाई देने लगे ।
पांडुरंग के बताए अनुसार वास्तव में वे अधिकारी पुरुष हैं, इसकी निश्चिती होते ही नामदेव महाराजजी ने तुरंत संत विसोबा खेचर के चरण पकड लिए और उनके चरणों पर मस्तक रखकर उन्हें वंदन किया ।
संदर्भ : संत नामदेव, लेखक : प्रा. विजय यंगलवार, नचिकेत प्रकाशन