१. भौतिक विकास साधना अर्थात शांति नहीं !
अमेरिका अथवा पश्चिमी देश आर्थिकदृष्टि से भले ही कितने भी समृद्ध हो गए हों, तब भी उन देशों के लोगों को शांति है क्या ? उन देशों में चोरियां-डाके, धोखाधडी बंद हुई है क्या ? धनसंपन्नता का अर्थ शांति नहीं । क्या धनाढ्य व्यक्ति शांति से सो सकता है ? शस्त्र-अस्त्रों से शक्तिशाली होना अर्थात शांति साधना नहीं; कारण ऐसे देशों पर दूसरा देश आक्रमण करने की तैयारी में रहते हैं ।
२. समानता की नीति अपनाने से शांति नहीं मिलेगी !
कुछ लोगों को लगता है, ‘समाज के सभी लोगों के साथ एकसमान बर्ताव किया जाए, सभी को समानता के अधिकार दिए जाएं, अन्नधान्य दिया जाए, तो लोगों में शांति फैलेगी ।’ समानतावादी, साम्यवादी (कम्युनिस्ट) लोगों की यही ध्येयनीति है । सभी लोग समान कैसे हो सकते हैं ? सृष्टि में विविधता होने से एक समान कुछ भी नहीं है । अपने शरीर के अवयव और उनके कार्य भी समान नहीं । हाथ, हाथों का काम करते हैं और पैर, पैरों का काम करते हैं । कितना भी कहें, तब भी पैरों का काम हाथ नहीं कर सकते । इसलिए समानता की नीति अपनाने से शांति नहीं मिलेगी । प्रत्येक का अधिकार अपनी-अपनी पात्रतानुसार है ।
३. मनुष्यजन्म का महत्त्व
आज हम देखते हैं कि मनुष्य का आकर्षण पूर्णतः माया की ओर है । पैसा, गाडी, बंगला, सुख-सुविधाओं की वस्तुएं, मान-सम्मान इत्यादि प्राप्त करना, इसके लिए मनुष्य की भागदौड शुरू है । इसके लिए वह जैसे चाहता है वैसे आचरण करता है, अर्थात अनैतिकता से भी आचरण करता है औैर अपनी अधोगति कर लेता है । मनुष्य का जन्म यह सब प्राप्त करने के लिए नहीं, अपितु ईश्वरप्राप्ति के लिए, अर्थात आध्यात्मिक उन्नति कर ईश्वर में विलीन होने हेतु हुआ है । इसीसे उसे वास्तव में शांति मिलनेवाली है । जीव, जंतु, कीडे, चींटी, पशु, पक्षी व प्रत्येक प्राणी, इसप्रकार ८४ लाख योनियों में भटकने के पश्चात किसी जीव को मनुष्यजन्म मिलता है । इसका अर्थ लाखों वर्ष व्यर्थ व्यतीत करने के पश्चात अच्छे कर्म करने हेतु, अर्थात सत्कर्म करने एवं मोक्षप्राप्ति के लिए दुर्लभ मनुष्यजन्म मिला होता है । इस मनुष्यजन्म का मूल्य कितने लोग जानते हैं ?
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.