साधना कर गुरुकृपा से अल्प समय में समाधानी एवं आनंदी होनेवाले साधक !

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कहां अनेक वर्षाें से हिन्दुत्व का कार्य करने के पश्चात भी
अशांत एवं असमाधानी कार्यकर्ता, तो कहां सनातन संस्था के माध्यम से
साधना कर गुरुकृपा से अल्प समय में समाधानी एवं आनंदी होनेवाले साधक !

आधुनिक वैद्या (कु.) माया पाटील

प्रसार में सेवा करते समय एक हिन्दुत्वनिष्ठ संस्था के माध्यम से कार्य करनेवाले एक अधिवक्ता मेरे संपर्क में आए । वे एक हिन्दुत्वनिष्ठ संस्था में अनेक वर्ष कार्य कर रहे थे । तदुपरांत वे सनातन संस्था के संपर्क में आए । उन्हें संस्था की सीख अच्छी लगी । इसलिए वे सनातन संस्था के गोवा स्थित रामनाथी का आश्रम देखने के लिए आए । इस अवसर पर उनसे बोलने के पश्चात ध्यान में आया कि उनकी मनःस्थिति असमाधानी एवं अशांत है ।

 

 

१. अधिवक्ताओं की अशांत मनःस्थिति

१ अ. हिन्दुत्वनिष्ठ संस्था से संबंधित होते हुए भी हिन्दुत्व एवं हिन्दू धर्म

हिन्दुत्वनिष्ठ संस्था से संबंधित होते हुए भी हिन्दुत्व वास्तव में क्या है, यह उन अधिवक्ताओं को पता ही नहीं था । उन्हें हिन्दू धर्म, उसका शास्त्र, उपासना पद्धति इत्यादि के संदर्भ में कोई ज्ञान नहीं था । उन्हें जो कुछ भी पता था, वह अत्यंत ही अल्प था और शास्त्र के रूप में तो कुछ भी नहीं ज्ञात था । वे आस्तिक थे; परंतु अध्यात्म के कुछ सूत्रों के विषय में उनके मन में प्रश्न थे । उन्होंने अध्यात्म पर अनेकों के मत और चर्चा सुनी थी; इसलिए योग्य क्या है एवं अयोग्य क्या, यह समझ में न आने से उनके मन में अध्यात्म के सूत्रों के विषय में अनेक प्रकार की शंका-कुशंकाएं थीं । इसकारण उन्हें अपने मन के प्रश्नों का उत्तर कहीं भी नहीं मिल रहा था ।

१ आ. मन का समाधान न होना

अनेक वर्ष कार्य करने पर भी मन को समाधान नहीं था ।

१ इ. जीवन की समस्याओं के कारण बुद्धिअगम्य हैं, यह समझने के पश्चात
भी शास्त्र ज्ञात न होने एवं बुद्धिवादी होने से उस विषय में कुछ भी न कर पाना

उनके जीवन में उन्हें अनेक पारिवारिक समस्याएं थीं । उन समस्याओं के कारण बुद्धि से ढूंढना उनके लिए संभव नहीं हो रहा था । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनके जीवन में समस्याएं आध्यात्मिक कारणवश निर्माण हुई थीं । अपनी समस्याओं का कारण अपनी बुद्धि के परे है, यह उन्हें समझ में नहीं आ रहा था; परंतु उसपर क्या उपाययोजना करें, यह उन्हें पता नहीं था । बुद्धिवादी होने से इन समस्याओं के कारण बुद्धिअगम्य हैं, यह ज्ञात होने के पश्चात भी वे कुछ कर नहीं सकते थे । इसलिए कि मूलत: इस विषय का शास्त्र पता न होने से एवं समाज में अनेक प्रकार के धोखाधडी करनेवाले लोग होने से उन्हें उनकी समस्याएं सुलझाने के लिए कोई विश्वसनीय व्यक्ति नहीं मिल रहा था ।

१ ई. स्थूल से सर्व सुख-सुविधाएं होते हुए भी मन अशांत होना

प्रसिद्ध अधिवक्ता होने से उन्हें बहुत काम मिलना, पैसा, प्रसिद्धी, वैवाहिक जीवन का सभी सुख प्राप्त होना इत्यादि, सभी कुछ उनके पास था । ऐसा होते हुए भी उन्हें समाधान नहीं था । समाधान पाने के लिए और क्या करना चाहिए ?, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा था । स्थूल से देखने पर उनके पास सब कुछ था; परंतु उनके मन को जरा भी संतोष-समाधान नहीं था, ऐसी स्थिति थी । उनकी आयु ६० वर्ष के आसपास थी । इस आयु में अब नया कुछ क्या करें और समाधानी कैसे हों ?, ऐसा प्रश्न उनके सामने था ।

१ उ. पक्षकारों की समस्या सुलझाते समय ऐसा लगना कि उनकी वास्तव में सहायता नहीं कर पाएंगे !

अधिवक्ता होने से विविध अभियोग चलाते समय भी उन्हें जो समस्याएं हैं, वही समस्याएं अनेकों को हैं, ऐसा अनुभव आ रहा था । कुछ पारिवारिक समस्याओं के अभियोग उनके पास आते थे । उन समस्याओं का अभ्यास करते हुए पक्षकारों की समस्या में कुछ भी तथ्य नहीं होता था; परंतु पक्षकारों के लिए वह समस्या काफी गंभीर होती थी । तब उनके ध्यान में आता था कि वे इनकी इन समस्याओं में खरे अर्थ में सहायता नहीं कर सकते ।

 

२. अधिवक्ताओं की स्थिति देखते हुए सनातन संस्था
के माध्यम से साधना करनेवाले साधक भाग्यवान होना ध्यान में आना

यह सब देखने पर सनातन संस्था में आकर साधना करनेवाला प्रत्येक साधक प.पू. डॉक्टरजी के कारण कितना भाग्यवान है, इसकी कल्पना आई; कारण सनातन संस्था के मार्गदर्शनानुसार साधना करनेवाले साधक को भी कुछ महीनों में ही उनके जीवन की सर्व समस्याओं के कारण, उपाययोजना एवं हमें क्या करना चाहिए, यह समझ में आता है । प्रत्येक व्यक्ति के लिए सभी बातें तुरंत कृति में उतार पाना संभव नहीं होता; परंतु ऐसा नहीं है कि उसे किसी भी प्रश्न का उत्तर पता नहीं होता । इसमें साधक ने अध्यात्म के सर्व ग्रंथों का अभ्यास किया है, ऐसा भी नहीं होता । तब भी उसे अध्यात्म के प्राथमिक एवं उपयुक्त ज्ञान, अपने जीवन की समस्या, हमें कैसा आचरण करना चाहिए आदि सब समझ में आता है । यह केवल और केवल गुरुकृपा के कारण ही संभव है और प.पू. डॉक्टरजी की सभी पर कृपा होने से सर्व साधक यह भाग अनुभव कर रहे हैं ।

 

३. सनातन संस्था के माध्यम से साधना करनेवाले
प्रत्येक साधक को समाधानी एवं परिपूर्ण बनानेवाले प.पू. डॉक्टर !

उन अधिवक्ताओं से बोलने के पश्चात सनातन संस्था के माध्यम से साधना करते समय अल्प कालावधि में ही मुझे कितना अमूल्य ज्ञान मिला है, इसका मुझे भान हुआ और प.पू. डॉक्टरजी के प्रति बहुत कृतज्ञता व्यक्त हुई । सनातन संस्था के माध्यम से साधना करते हुए प.पू. डॉक्टर प्रत्येक साधक को कैसे समाधानी एवं परिपूर्ण बना रहे हैं, यह उन अधिवक्ताओं से बोलने के पश्चात एवं उनकी स्थिति देखने पर ध्यान में आया ।

 

४. कृतज्ञता

सनातन संस्था में आनेवाला प्रत्येक साधक आनंदी एवं समाधानी वृत्ति का होनेके पीछे प.पू. डॉक्टरजी की सर्व साधकों पर कृपा, सनातन के सत्संग से मिला ज्ञान एवं प.पू. डॉक्टरजी द्वारा लिखे ग्रंथ हैं । गुरू की कृपा कार्य कैसे करती है, इसप्रकार के व्यक्ति मिलने पर ध्यान में आता है और कृतज्ञता से मन भर जाता है । इसीलिए साधक कदम कदम पर प.पू. डॉक्टरजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करते हैं । इस अनुभव करने के लिए सनातन संस्था द्वारा बताई जा रही साधना कृति में लाने की बुद्धि सभी को हो, ऐसी श्रीकृष्ण के चरणों में प्रार्थना है !

– आधुनिक वैद्या (कु.) माया पाटील, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (११.८.२०१६)

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