सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्रों की आध्यात्मिक विशेषताएं

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‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा
‘युनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस्.)’ नामक उपकरण द्वारा वैज्ञानिक जांच परीक्षण

‘उपासना करते हुए उपासक को आनंद, शांति की अनुभूति आने के लिए उनका उपास्य देवता के प्रति भाव जागृत होना महत्त्वपूर्ण होता है । उपासना के उपास्य देवता के चित्र में देवता का तत्त्व (तारक रूप होने से सात्त्विकता) जितनी अधिक मात्रा में होता है, वह चित्र उतना उपासक के लिए उस देवता का तत्त्व ग्रहण करने में अधिक उपयुक्त होता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधक-चित्रकारों द्वारा बनाए गए श्री गणपति, श्रीराम, श्रीकृष्ण, हनुमान, श्री दत्त, शिव, श्री लक्ष्मी एवं श्री दुर्गा, इन देवताओं के चित्र सनातन संस्था द्वारा प्रकाशित किए गए हैं । इन चित्रों में उन उन देवताओं का तत्त्व आया है । वर्ष २००० से २०१८, इस अवधि में देवताओं के चित्रों में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा कालानुसार बताए परिवर्तन किए हैं । सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्रों की आध्यात्मिक विशेषताओं का विज्ञान द्वारा अध्ययन करने के लिए १५.१०.२०१९ को रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’की ओर से एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘युनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस.)’ इस उपकरण का उपयोग किया गया । इस परीक्षण का स्वरूप, निरीक्षण एवं उनका विवरण आगे दिया है ।

 

१. परीक्षण का स्वरूप

इस परीक्षण में वर्ष २००० से २०१८, इस अवधि में सनातन-निर्मित श्री गणपति के कुल ७ चित्रों की अगली (सामने) की ओर से (सगुण) एवं पिछली ओर से (निर्गुण) ‘यू.ए.एस्.’ उपकरण द्वारा किए निरीक्षण किया गया । इन निरीक्षणों का तुलनात्मक अभ्यास किया गया ।

टिप्पणी – लेख में श्री गणपति के चित्र की सामने की बाजू को ‘सगुण’ एवं पिछली बाजू को ‘निर्गुण’, संबोधित किया है ।

सनातन-निर्मित श्री गणपति के विविध वर्र्ष के चित्र चित्र में गणपति तत्व की मात्रा (प्रतिशत)
२०००
२००१
२००२ १०
२००३ १५
२००७ २७
२०१३ २९
२०१८ ३१

पाठकों के लिए सूचना : इस लेख के ‘यू.ए.एस्.’ उपकरण का परिचय’, ‘उपकरण द्वारा किए गए परीक्षण के घटक एवं उनका विवरण’, ‘घटकों का प्रभामंडल’, ‘परीक्षण की पद्धति’ एवं ‘परीक्षण में समानता आने हेतु ली गई दक्षता’ हमेशा के ये नियमित सूत्र सनातन संस्था की https://www.sanatan.org/hindi/universal-scanner इस लिंक पर दिए हैं ।

 

२. किए गए निरीक्षणों का विवेचन

सौ. मधुरा कर्वे

२ अ. नकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में किए गए निरीक्षणों का विवेचन

२ अ १. परीक्षण में सनातन-निर्मित श्री गणपति के सातों चित्रों में नकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।

२ आ. सकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में किए गए निरीक्षणों के विवेचनानुसार

सभी व्यक्ति, वास्तु अथवा वस्तु में सकारात्मक ऊर्जा होती ही है, ऐसा नहीं ।

२ आ १. परीक्षण किए गए सनातन-निर्मित श्री गणपति के सातों चित्रों में सकारात्मक ऊर्जा होना एवं वर्ष २०१८ में चित्र की सकारात्मक ऊर्जा की
सनातन-निर्मित श्री गणपति के विविध वर्ष के चित्र सनातन-निर्मित श्री गणपति के विविध वर्ष के चित्र चित्र की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल (मीटर)
सगुण निर्गुण
२००० ३९.२३ ५०.२०
२००१ ६१.२० ७४.६०
२००२ ८६.४८ १०४.०२
२००३ १२२.१० १३५.७८
२००७ १४०.३२ १५४.९६
२०१३ १७७.५६ १९३.६६
२०१८ २२२.९२ २६७.०२

उपरोक्त सारणी से आगे दिए गए सूत्र ध्यान में आते हैं ।

१. सनातन-निर्मित श्री गणपति के सातों चित्रों में काफी सकारात्मक ऊर्जा होने से उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है ।

२. वर्ष २०१८ में सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्र की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल सर्वाधिक है ।

३. श्री गणपति के चित्र की सगुण बाजू की तुलना में उसकी निर्गुण बाजू की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल अधिक है ।

२ इ. कुल प्रभामंडल के (टिप्पणी) संदर्भ में किए गए निरीक्षण का विवेचन
सामान्य व्यक्ति अथवा वस्तु का कुल प्रभामंडल साधारणत: १ मीटर होता है ।

टिप्पणी – कुल प्रभामंडल (ऑरा) : व्यक्ति के संदर्भ में उसकी लार, वस्तु के संदर्भ में उसपर लगी धूल के कण अथवा उसका थोडासा भाग, इनके ‘नमूने’के रूप में उपयोग कर उस व्यक्ति की अथवा वस्तु के ‘कुल प्रभामंडल’ का निरीक्षण करते हैं ।

२ इ १. परीक्षण के सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्रों का कुल प्रभामंडल

 

सनातन-निर्मित श्री गणपति के विविध वर्षाें के चित्र  चित्रों का कुल प्रभामंडल ( मीटर )
सगुण निर्गुण
२००० ४९.१२ ६३.८०
२००१ ७७.०४ ९४.५०
२००२ १११.१६ १२२.५७
२००३ १३७.४६ १५०.२६
२००७ १६०.४८ १६७.४२
२०१३ १९१.६६ २१३.७२
२०१८ २४४.५० ३०७.१०

उपरोक्त सारणी से आगे दिए सूत्र ध्यान में आते हैं ।

१. सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्रों के कुल प्रभामंडल में उत्तरोत्तर वृद्धि है ।

२. वर्ष २०१८ में सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्र का कुल प्रभामंडल सर्वाधिक है ।

३. श्री गणपति के चित्र के सगुण बाजू की तुलना में उसकी निर्गुण बाजू का कुल प्रभामंडल अधिक है ।

उपरोक्त सर्व सूत्रों के विषय में अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण ‘सूत्र ३’ में दिया है ।

 

३. किए गए निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण

४ प्रतिशत गणपति तत्त्व वाला श्री गणेशजी का चित्र (वर्ष २०००)

३ अ. सनातन-निर्मित श्री गणपति का चित्र साधक-कलाकारों ने
‘कला के लिए कला नहीं, अपितु ईश्वरप्राप्ति के लिए कला’ अर्थात ‘साधना’ के रूप में, इसके साथ ही
स्पंदनशास्त्र का सुयोग्य अभ्यास कर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कालानुसार किए मार्गदर्शनानुसार बनाए जाना

स्पंदनशास्त्रानुसार किसी देवता का चित्र अथवा मूर्ति उसके मूल रूप से जितनी अधिक मिलती-जुलती होगी, उतनी उस चित्र में अथवा मूर्ति में उस देवता के स्पंदन अधिक मात्रा में आकर्षित होते हैं । चित्र में देवता का आकार, उसका अवयव, उसके शरीर पर अलंकार, उसके शस्त्र इत्यादि घटक देवता के प्रत्यक्ष में उन-उन घटकों से कितनी मात्रा में मेल खाते हैं, इससे इस चित्र की कुल सत्यता प्रत्येक देवता का चित्र बनने के पश्चात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने उस चित्र की सात्त्विकता सूक्ष्म से जानकर उसे प्रतिशतता में बताया है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधक-कलाकारों को कालानुसार किए मार्गदर्शन का फलित अर्थात श्री गणपति के चित्र की सात्त्विकता की मात्रा उत्तरोत्तर बढती गई । वैज्ञानिक उपकरण द्वारा किए गए चित्रों के परीक्षण से यह देखने में आया ।

३१ प्रतिशत तत्त्व वाला श्री गणेश का चित्र (वर्ष २०१८)

३ आ. सनातन-निर्मित श्री गणपति का वर्ष २०१८ के चित्र में सर्वाधिक (३१ प्रतिशत) सात्त्विकता होना

इस कलियुग में सर्वसामान्य मनुष्य द्वारा निर्माण की गई देवता की किसी कलाकृति में, अर्थात चित्र अथवा मूर्ति में अधिकाधिक ३० प्रतिशत सात्त्विकता, अर्थात सत्यता आ सकती है । वर्ष २०१८ में श्री गणपति के चित्र में उससे भी अधिक (३१ प्रतिशत) सात्त्विकता आना, यह सनातन के साधक-कलाकारों की उच्चतम भावावस्था का परिणाम है ।

३ इ. ‘सगुण’ की तुलना में ‘निर्गुण’ अधिक प्रभावी होने से
श्री गणपति के चित्र की सामनेवाली (सगुण) बाजू की तुलना में
उसके पीछे की (निर्गुण) बाजू की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल एवं कुल प्रभामंडल अधिक होना

देवता के सगुण रूप की तुलना में उसका निर्गुण रूप सूक्ष्म होने से उससे अधिक चैतन्य प्रक्षेपित होता है । इससे सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्र की अगली (सगुण) बाजू की तुलना में पीछे की (निर्गुण) बाजू की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल एवं कुल प्रभामंडल अधिक होना, इस परीक्षण से ध्यान में आया ।

३ ई. सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्रों की आध्यात्मिक विशेषताएं

१. वर्ष २००० में चित्र की तुलना में वर्ष २००१ में चित्र में देवता का अवयव, उसका मुकुटादि अलंकारों की नक्काशी, उनके वस्त्रों का रंग, फूलों का हार, बैठने की चौकी इत्यादि में सुधार करने पर उस चित्र की सात्त्विकता में २ प्रतिशत वृद्धि होकर वह ६ प्रतिशत हो गई ।

२. वर्ष २००२ में चित्र में देवता के अवयवों का आकार, देवता के पीछे की पार्श्वभूमि का रंग, गले में फूलों का हार, बैठने की चौकी में परिवर्तन करने पर, इसके साथ ही देवता के चरणों के नीचे सात्त्विक रंगोली बनाने पर चित्र की सात्त्विकता में वृद्धि होकर वह १० प्रतिशत हो गई ।

३. वर्ष २००३ में चित्र में देवता के अवयवों का आकार, देवता के पीछे पार्श्वभूमि का रंग, देवता के वस्त्रों का रंग एवं बैठने की चौकी के नीचे के रंग में परिवर्तन करने पर चित्र की सात्त्विकता में वृद्धि होकर वह १५ प्रतिशत हो गई । यह चित्र पहले के तीनों चित्रों की तुलना में अधिक सात्त्विक होने की बात सहज ध्यान में आती है ।

४. पहले के वर्षाें के चित्रों की तुलना में ऐसा प्रतीत हुआ कि वर्ष २००७ के चित्र में देवता के मुख पर भाव अधिक मात्रा में आया है । यह इस बात का द्योतक है कि साधक-कलाकारों की साधना एवं उनकी सेवा, भाव के स्तर पर चल रही है ।

५. वर्ष २०१३ में श्री गणपति के चित्र की ओर देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ‘हम साक्षात् श्री गणपति के दर्शन ले रहे हैं’, और भावजागृति होती है ।

६. वर्ष २०१८ में गणपति के चित्र की ओर देखने पर मन को शांति के स्पंदन प्रतीत होते हैं ।

संक्षेप में, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने स्पंदनशास्त्रानुसार एवं कालानुसार साधक-कलाकारों को किए मार्गदर्शन के कारण देवता के चित्र में उत्तरोत्तर अधिक सात्त्विकता निर्माण हुई । सनातन-निर्मित देवी-देवताओं के सात्त्विक चित्र शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद एवं शांति की अनुभूति देते हैं । यह सेवा करते समय साधक-कलाकारों में ईश्वर के प्रति भाव निर्माण हो गया । इससे ‘कला के लिए कला नहीं, अपितु ईश्वरप्राप्ति के लिए कला’ अर्थात साधना का महत्त्व ध्यान में आता है ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (३१.१२.२०१९)
ई-मेल :[email protected]
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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