अनुक्रमणिका
स्थूलता घटाने के लिए प्रतिदिन व्यायाम करें, औषधि से मर्दन (मालिश) करें, उचित आहार के साथ औषध का सेवन भी करें । ये सब प्रयत्न करने पर शरीर में जमा अनावश्यक मेद (चरबी) घटता है । आगे इसकी विस्तृत जानकारी दे रहे हैं ।
वैद्य मेघराज पराडकर
१. व्यायाम
१ अ. शैय्या (बिस्तर) अथवा भूमि पर लुढकना
सवेरे शैय्या पर लेटे-लेटे आगे बताए अनुसार व्यायाम करें । उतान (पीठ के बल) लेटकर दोनों भुजाएं कान के पास लाएं और हाथ सीधा ऊपर करें । दोनों हाथ की उंगलियां आपस में फंसाएं । इस स्थिति में बगल से मुडते हुए शैय्या के एक छोर से दूसरे छोर तक और दूसरे छोर से पहले छोर तक आएं । यह क्रिया १ से २ मिनट करें । शैय्या छोटा हो, तो यह व्यायाम भूमि पर भी कर सकते हैं । यह व्यायाम नींद से उठते ही न कर सकें, अपितु पहले अन्य व्यायाम करें । उसके पश्चात यह करें ।
सवेरे शौचालय से आने के पश्चात आगे बताए व्यायाम आधी शक्ति से करें । आधी शक्ति से व्यायाम करने का अर्थ है कि इतनी गति से व्यायाम करना जिससे श्वासोच्छवास मुख से होने लगे । इससे अधिक व्यायाम करना हो, तो थोडा रुकें, जिससे श्वास की गति सामान्य हो जाए, पश्चात आरंभ करें । व्यायाम ५ मिनट से आरंभ कर थोडा-थोडा बढाते जाएं । अभ्यास हो जाने पर, प्रतिदिन न्यूनतम २० मिनट व्यायाम करें ।
१ आ. पेट भीतर-बाहर करना
यह क्रिया खडे रहकर अथवा बैठकर १५ से २० बार करें ।
१ इ. सूर्यनमस्कार
सूर्यदेव से प्रार्थना कर, सूर्यनमस्कार आरंभ करें । एक सूर्यनमस्कार से आरम्भ कर, प्रतिदिन एक बढाते जाएं । इस प्रकार, प्रतिदिन न्यूनतम १२ सूर्यनमस्कार करें । सूर्यनमस्कार के विषय में विस्तृत जानकारी सनातन के ग्रंथ ‘आदर्श दिनचर्या (भाग २) — स्नान एवं स्नानोत्तर आचार तथा उनका शास्त्र’ में दी गई है ।
१ ई. भुजंग दंड
यह आसन करने से निकला हुआ पेट सामान्य स्थिति में आना, भूख न लगना, मलावरोध (कांस्टिपेशन) आदि उदर विकार ठीक होने में सहायता होती है ।
१ ई १. भुजंग दंड की क्रिया
अ. भूमि पर घुटनों के बल बैठें । पैर के पंजे आपस में सटे हों ।
आ. अब, घुटनों के आगे एक हाथ और एक बित्ता अंतर पर कलाई के पासवाला हथेलियों का भाग भूमि पर रखें । (कोहनी से हाथ की मध्य उंगली के सिरे तक के अंतर को १ हाथ का अंतर माना जाता है । हाथ के अंगूठे का सिरा और कनिष्ठा (कानी उंगली) के सिरे के मध्य का अधिकतम अंतर ‘बित्ता’ कहा जाता है ।)इ. दोनों हथेलियों के मध्य एक हाथ अंतर रखें ।
ई. मूल स्थिति : पूरा तलवा भूमि पर रखें । कटि (कमर) अधिकाधिक ऊपर उठाकर हाथ और पैर के क्रमशः कोहनी और घुटने बिना मोडे, सिर तथा पीठ हाथों की सीध में रखें । इस स्थिति में शरीर पर्वत समान दिखाई देगा । (देखिए चित्र १)
चित्र १
उ. अब हाथ को कोहनी से मोडकर पहले सिर पश्चात छाती नीचे रखें । पश्चात पूरा शरीर नीचे लाएं और सिर आगे से ऊपर और अधिकाधिक पीछे ले जाकर आकाश की ओर देखें तथा छाती आगे लाएं । इस स्थिति में शरीर फन निकाले हुए नाग के समान दिखाई देता है । इसलिए, इसे भुजंग दंड कहते हैं । (देखिए चित्र २)
चित्र २
ऊ. पुनः कटि को पहले की भांति ऊपर उठाकर मूल स्थिति में आएं । मूल स्थिति से यहां तक १ भुजंग दंड पूरा हुआ । यह आसन शीघ्रता से ५ से १० बार करें । एक से आरंभ कर अपनी क्षमतानुसार इस आसन की संख्या बढाएं ।
२. मर्दन (तेल अथवा औषध से मालिश)
प्रतिदिन स्नान के पहले मालिश करें । मालिश के लिए उपयोग में आनेवाली औषधियों की सूची आगे दी है । इसमें से किसी एक औषधि का चुनाव करें, जो आपको सुविधा से मिल जाए । मर्दन से शरीर का मेद (वसा, चरबी) पतला होकर घटने लगता है । शरीर के जिस भाग में मेद अधिक हो, वहां न्यूनतम ५ मिनट तक मर्दन करें । यह मर्दन प्रतिदिन न्यूनतम १०० दिन तक करना चाहिए । मर्दन के पश्चात, स्नान के समय शरीर को साबुन न लगाएं । शरीर पर लगा तेल गमछा और पहनने के कपडों में न लगे, इसके लिए आगे बताए चूर्ण का उपयोग करें ।
२ अ. मर्दन (मालिश) के काम आनेवाले चूर्ण
निम्नांकित कुछ औषधियों का उपयोग सूखे चूर्ण के रूप करें । इन्हें शरीर पर मलने से पहले शरीर को तिल अथवा नारियल के तेल से मलें (मर्दन करें)। शरीर को रस अथवा औषधीय तेल से मलने के पूर्व किसी दूसरे तेलसे मालिश करने की आवश्यकता नहीं है; परंतु शरीर में लगा अधिक तेल निकल जाए, इसके लिए मालिश के बाद आगे बताया कोई एक सूखा चूर्ण शरीर पर मलें ।
१. नीबू, नारंगी (संतरा) अथवा मौसंबी के छाल का चूर्ण : छाल के छोटे टुकडे कर धूप में सुखा लें । पश्चात, मिक्सर में महीन पीस लें । एक बार में १ से २ चम्मच चूर्ण का उपयोग करें ।
२. छनी हुई चायपत्ती का सूखा चूर्ण : चाय छानने के पश्चात उसका जो अवक्षेप बचता है, उसे धो लें; क्योंकि इसमें चीनी का अंश होता है । चाय के अवक्षेप में चीनी न आए इसके लिए चाय बनाते समय चीनी न मिलाएं, चाय छानने के पश्चात चीनी मिलाएं । चायपत्ती का यह अवक्षेप धूप में सुखाकर महीन चूर्ण बना लें और १ से २ चम्मच चूर्ण शरीर पर मलें ।
३. ४ चम्मच बेसन, आधा चम्मच हलदी चूर्ण और पाव चम्मच कपूर चूर्ण का मिश्रण
४. ४ चम्मच अरहर का अथवा कुलथी का आटा और १ चम्मच नीबू के रस का मिश्रण
५. मूली, भृंगराज (भंगरैया), चकवंड (पवाड, पवांर) के पत्ते, अनार के पत्ते अथवा नारंगी के फूल का आधा कटोरी ताजा रस
६. बर्रै (कुसुम) का रस पकाकर बनाया हुआ तेल : आधी कटोरी बर्रै के तेल में आधी कटोरी बर्रै के पत्तों का रस मिलाकर इस मिश्रण को इतना पकाएं कि केवल तेल शेष रहे । यह तेल ठंडा हो जाने पर बोतल में भरकर रखें । इस तेल से पूरे शरीर को मालिश कर, तुरंत स्नान करें । यह तेल लगाने पर यदि खुजली होने लगे, तो न लगाएं । यह तेल आंखों में न जाए, क्योंकि इससे आंखों में खुजली, जलन, पीडा, पानी बहना आदि समस्यां उत्पन्न हो सकती हैं । यदि इस तेल से किसी प्रकार का कष्ट न हो, तब उपर्युक्त विधि के अनुसार पर्याप्त मात्रा में तेल बनाकर उपयोग करें ।
७. चकवंड (पवांर) का तेल : १ लोटा (१ लिटर) तिल के तेल में पवांर वनस्पति को पर्याप्त पानी में पीसकर निकाला हुआ १ लोटा रस मिलाकर इस मिश्रण को इतना पकाएं कि केवल तेल शेष रहे । यह तेल ठंडा होने पर, छानकर बोतल में भर लें ।
३. औषधि
प्रतिदिन सवेरे खाली पेट आगे बताई किसी एक औषधि का सेवन करें । मधुमेह के रोगी मधु के स्थान पर कुनकुने पानी का उपयोग करें । लगातार १ मास १ औषधि का प्रयोग करें, लाभ न होने पर इस सूची की दूसरी औषधि का सेवन १ मास करें — वैद्य मेघराज माधव पराडकर, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा (२०.५.२०१६)
(संदर्भ : आपातकाल-संबंधी सनातन की आगामी ग्रंथमाला)
१. मेथी, अजवाइन और सौंफ के समभाग मिश्रण का १ चम्मच चूर्ण १ कप गरम पानी के साथ लें ।
२. नवक गुग्गुल (व्योषादि गुग्गुल) अथवा कचनार गुग्गुल औषध की ४ गोलियां आधा कप गोमूत्र अथवा गरम पानी के साथ लें ।
४. आहार (भोजन)
भोजन में भात, रोटी आदि का सेवन पूर्णतः बंद कर, केवल भाजी खाकर रहना अनुचित है । आहार में मीठा, खट्टा, खारा, तीखा, कटु (कडुवा) और कषाय (कसैला) इन छह रसों का समावेश होना चाहिए । इनमें मीठा, खट्टा और खारा पदार्थ अपेक्षाकृत कम खाएं । उनका सेवन पूर्ण बंद न करें ।
४ अ. पथ्य (इनका सेवन करें ।)
भोजन में जौ (सत्तू), मूंग, कुलिथ, मट्ठा, चकवंड की भाजी, सहिजन की छेमी, परवल, नेनुआ, भोपली मिरची, ये पदार्थ शरीर का अतिरिक्त मेद (चरबी) घटाते हैं । इसलिए, इनका भोजन में उपयोग अधिकाधिक करें ।
मोटे लोगों को अधिक भूख लगती है । ऐसे समय मेद न बढानेवाले और भूख शांत करनेवाले पदार्थ खाएं । ऐसे पदार्थाें की सूची आगे दी है । इस सूची के पदार्थ एक समय में १ से २ ही चुनें । प्रतिदिन एक ही पदार्थ खाते रहने से मन ऊब जाता है । जब किसी पदार्थ से ऊब जाएं, तो सूची के अन्य पदार्थ चुनें ।
१. पके टमाटर
२. नेनुआ की भाजी
३. अच्छे से भुने श्वेत रंग की मूंगफली के दाने (लाल रंग के मूंगफली दाने में तेल अधिक होता है, श्वेत मूंगफली में अपेक्षाकृत अल्प । इसलिए, श्वेत मूंगफली खानी चाहिए ।)
४. सेब
५. पकाई हुई मूंग अथवा पानी में भिंगोई मूंग
६. भिंगोकर पकाई हुई कुलथी की सब्जी और उसका रसा
७. कुलथी और परवल का सूप : १ भाग कुलथी और १० भाग परवल कूकर में पकाकर मिक्सर में पेस्ट बना लें । इस पेस्ट में १ चम्मच जीरा, पाव चम्मच दालचीनी, आधा चम्मच अजवाइन और स्वाद के लिए सेंधा नमक मिलाएं और खाएं ।
८. चकवंड के कोमल पत्ते उबालकर बनाई हुई भाजी और सांवां (भगर) का भात अथवा पांच प्रकार के मिश्रित अनाज के आटे की मोटी रोटियां
९. बाजरे की मोटी रोटी, प्याज और लहसुन
४ आ. अपथ्य (इनका सेवन न करें ।)
भरपेट खाना, निरंतर खाते रहना, तेल में तले पदार्थ खाना, मांसाहार, अधिक पानी पीना, फ्रिज का ठंडा पानी पीना, भोजन के तुरंत बाद पानी पीना, दोपहर में सोना और कोमल आसंदी में बैठना
— वैद्य मेघराज माधव पराडकर, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा (२०.५.२०१६)