अनुक्रमणिका
- १. ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस्.)’ इस उपकरण द्वारा किया गया वैज्ञानिक परीक्षण
- २. किया गया निरीक्षण और उनका विवेचन
- ३. किए गए निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण
- ३ अ. गणपतिमूर्ति श्री गणेश का सात्त्विक आकारबंध युक्त एवं शाडू मिट्टी से बनी होने से उसमें पूजन से पूर्व भी नकारात्मक ऊर्जा न होकर, अपितु सकारात्मक ऊर्जा होना
- ३ आ. गणेशमूर्ति का पूजन करने पर श्री गणेश के स्पंदन मूर्ति में आकृष्ट होने से मूर्ति की सकारात्मक ऊर्जा, इसके साथ ही मूर्ति के कुल प्रभामंडल में वृद्धि होना
- ३ इ. गणेशमूर्ति में प्राणप्रतिष्ठ करने के उपरांत उसका देवत्व एक ही दिन रहना
- ३ ई. गणेशमूर्ति में आए देवत्व के परिणामस्वरूप मूर्ति में २१ दिनों तक चैतन्य टिका रहना
१. ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस्.)’ इस उपकरण द्वारा किया गया वैज्ञानिक परीक्षण
‘भाद्रपद शुद्ध चतुर्थी पर मिट्टी का गणपति बनाते हैं । उसे बाएं हाथ पर रखकर वहीं उसकी ‘सिद्धिविनायक’ इस नाम से प्राणप्रतिष्ठा एवं पूजा कर तुरंत ही विसर्जन करें’, ऐसी शास्त्रविधि है; परंतु मनुष्य उत्सवप्रिय होने से इतने में उसे संतोष नहीं होता; इसलिए डेढ, पांच, सात अथवा दस दिन श्री गणपति रखकर उसका उत्सव करने की प्रथा प्रचलित हो गई ।’ ‘गणेशचतुर्थी के दिन प्राणप्रतिष्ठा की गई गणपति की मूर्ति में आगे के दिनों में आध्यात्मिक स्तर पर कुछ परिवर्तन होते हैं क्या ?’, यह विज्ञान द्वारा समझने के लिए, इसका अभ्यास करने के लिए मडकई, गोवा के सनातन संस्था के साधक श्री. उमेश नाईक के घर पांच दिन पूजी जानेवाली गणेशमूर्ति की ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’की ओर से १३.९.२०१८ (गणेशचतुर्थी) से १७.९.२०१८ (पांचवें दिन), इस कालावधि में प्रत्येक दिन परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘युनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस्.)’ नामक उपकरण का उपयोग किया गया । इस परीक्षण का स्वरूप, किए गया निरीक्षण एवं उसका विवरण आगे दिया है ।
२. किया गया निरीक्षण और उनका विवेचन
आधुनिक वैद्या (श्रीमती) नंदिनी सामंत
२ अ. नकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में किए गए निरीक्षणों का विवेचन
२ अ १. गणेशमूर्ति में नकारात्मक ऊर्जा बिलकुल न होना
गणेशमूर्ति के किए किसी भी दिन के परीक्षण में ‘इन्फ्रारेड’ अथवा ‘अल्ट्रावायोलेट’ नकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।
२ आ. सकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में किए गए निरीक्षणों का विवेचन
२ आ १. पांच दिन पूजित गणेशमूर्ति की सकारात्मक ऊर्जा के प्रभामंडल में प्रतिदिन हुआ परिवर्तन
ऐसा नहीं है कि सभी व्यक्ति, वास्तु अथवा वस्तु में सकारात्मक ऊर्जा होती ही है । गणेशमूर्ति घर लाने पर उसकी प्राणप्रतिष्ठा करने से पूर्व भी उसमें सकारात्मक ऊर्जा थी, यह उसके संदर्भ में ‘यू.ए.एस्’ स्कैनर की भुजाओं द्वारा किए १८० अंश के कोण से ध्यान में आता है । इससे मूर्ति की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल नापा जा सका । ‘पांच दिन पूजित गणेशमूर्ति की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल प्रतिदिन कितना था ?’, यह आगे दी गई सारणी में दिया है ।
गणेशोत्सव में पांच दिन पूजित गणेशमूर्ति का निरीक्षण | सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल ( मीटर ) | |
---|---|---|
पूजन से पूर्व | पूजन के उपरांत | |
१. १३.०९.२०१८ (पहला दिन) | १.७० | २.०६ |
२. १४.०९. २०१८ (दूसरा दिन) | ३.०५ | ४.१८ |
३. १५.०९.२०१८ (तीसरा दिन) | २.५० | ३.२० |
४. १६.०९. २०१८ (चौथा दिन) | २.०४ | २.४७ |
५. १७.०९. २०१८ (पांचवां दिन) | १.५८ | २.३५ |
उपरोक्त सारणी से आगे दिए सूत्र ध्यान में आते हैं ।
अ. गणेशमूर्ति के पूजन के उपरांत उसकी सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल बढता है ।
आ. अगले दिन गणेशमूर्ति की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल सर्वाधिक था, फिर उसके उपरांत वह प्रतिदिन न्यून होता गया ।
२ इ. कुल प्रभामंडल के संदर्भ में किए गए परीक्षण का विवेचन
२ इ १. पांच दिनों पूजित गणेशमूर्ति के कुल प्रभामंडल में प्रतिदिन हुए परिवर्तन
सामान्य व्यक्ति अथवा वस्तु का कुल प्रभामंडल सामान्यत: १ मीटर होता है । ‘पांच दिन पूजित गणेशमूर्ति का कुल प्रभामंडल प्रतिदिन कितना था ?’, यह आगे दी गई सारणी में दिया है ।
गणेशोत्सव में पांच दिन पूजित गणेशमूर्ति का निरीक्षण | कुल प्रभामंडल (मीटर)
पूजन से पूर्व |
पूजन के उपरांत |
---|---|---|
१. १३.०९.२०१८ (पहला दिन) | २.१५ | ३.४१ |
२. १४.०९. २०१८ (दूसरा दिन) | ४.१८ | ४.९० |
३. १५.०९.२०१८ (तीसरा दिन) | २.८४ | ४.७४ |
४. १६.०९. २०१८ (चौथा दिन) | २.२५ | २.९२ |
५. १७.०९. २०१८ (पांचवां दिन) | १.८७ | २.८७ |
उपरोक्त सारणी से आगे दिए सूत्र ध्यान में आते हैं ।
अ. गणेशमूर्ति के पूजन के उपरांत उसका कुल प्रभामंडल बढ जाता है ।
आ. अगले दिन गणेशमूर्ति का कुल प्रभामंडल सर्वाधिक होता है और उसके पश्चात वह प्रतिदिन न्यून होता गया ।
उपरोक्त सर्व सूत्रों के विषय में अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण ‘सूत्र ३’ में दिया है ।
३. किए गए निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण
३ अ. गणपतिमूर्ति श्री गणेश का सात्त्विक आकारबंध युक्त एवं
शाडू मिट्टी से बनी होने से उसमें पूजन से पूर्व भी नकारात्मक ऊर्जा न होकर, अपितु सकारात्मक ऊर्जा होना
‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं उनसे संबंधित शक्ती एकत्र होती हैं’, यह अध्यात्म का एक सिद्धांत है । उस अनुसार जहां श्री गणेश का ‘रूप’ (मूर्ति) है, वहां उससे संबंधित शक्ति, अर्थात स्पंदन भी होते हैं । प्रयोग की गणेशमूर्ति धर्मशास्त्र के अनुसार योग्य आकार की एवं मिट्टी से बनाई हुई होने से सात्त्विक थी । ऐसी मूर्ति में गणेश के स्पंदन आते ही हैं । इसलिए उस मूर्ति में पूजन से पहले भी नकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई । इसके विपरीत उसमें सकारात्मक ऊर्जा ही पाई गई ।
३ आ. गणेशमूर्ति का पूजन करने पर श्री गणेश के स्पंदन मूर्ति में
आकृष्ट होने से मूर्ति की सकारात्मक ऊर्जा, इसके साथ ही मूर्ति के कुल प्रभामंडल में वृद्धि होना
‘जहां भगवान का रूप है, वहां उनसे संबंधित शक्ति होती है’, इस अध्यात्म के सिद्धांतानुसार प्रत्येक दिन श्री गणेश की मूर्ति का पूजन करने पर श्री गणेश के स्पंदन मूर्ति में आकृष्ट हुए । इसलिए प्रत्येक दिन मूर्ति का पूजन करने के पश्चात पूजन के पहले की तुलना में पूजन के उपरांत मूर्ति की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल एवं उसके कुल प्रभामंडल में वृद्धि पाई गई ।
३ इ. गणेशमूर्ति में प्राणप्रतिष्ठ करने के उपरांत उसका देवत्व एक ही दिन रहना
‘मृत्तिका की (मिट्टी की) गणेशमूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा कर लाया हुआ देवत्व एक दिन टिकता है । इसका अर्थ है गणेशमूर्ति का विसर्जन भले ही किसी भी दिन करें, तब भी मूर्ति का देवत्व अगले दिन नष्ट हो चुका होता है; इसीलिए उसी दिन अथवा अगले दिन मूर्ति का विसर्जन होना, सर्वथा योग्य है ।’
संदर्भ : मराठी ग्रंथ ‘शास्त्र असे सांगते’, पृष्ठ ११५-११६
उपरोक्त सूत्र के अनुसार ही प्रयोग में भी पाया गया । अगले दिन के पश्चात प्रत्येक दिन मूर्ति की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल एवं उसका कुल प्रभामंडल में उत्तरोत्तर घटौती पाई गई ।
३ ई. गणेशमूर्ति में आए देवत्व के परिणामस्वरूप मूर्ति में २१ दिनों तक चैतन्य टिका रहना
‘मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा कर लाया गया देवत्व एक दिन से अधिक दिन नहीं रहता’, ऐसा ऊपर दिए ‘सूत्र ३ इ’ में कहा है । ऐसा होते हुए भी गणेशोत्सव में एक दिन से अधिक समय तक पूजे जानेवाले गणेशमूर्ति की उपासना का लाभ श्रद्धालुओं को कैसे मिलेगा ?’, ऐसा प्रश्न किसी के भी मन में उठ सकता है । इसका उत्तर यह है कि – ‘मूर्ति में देवत्व नष्ट हो जाए, तब भी उस देवत्व के परिणामस्वरूप मूर्ति में २१ दिनों तक चैतन्य टिका रहता है । इसके साथ ही गणेशोत्सव के काल में मूर्ति की पूजाअर्चा होने से पूजक के भक्तिभाव के अनुरूप मूर्ति के चैतन्य में (सकारात्मक ऊर्जा में) पूजा के उपरांत भी वृद्धि हो सकती है । २१ दिनों उपरांत मूर्ति में विद्यमान चैतन्य धीरे-धीरे घटने लगता है ।’ (संदर्भ : सनातन संस्था का प्रकाशन ‘श्री गणपति’)
– आधुनिक वैद्या (श्रीमती) नंदिनी दुर्गेश सामंत, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (१९.९.२०१८)
ई-मेल : [email protected]