विकार दूर होने के लिए आवश्यक देवताओं के तत्त्वों के अनुसार दिए कुछ विकारों पर नामजप – ३

Article also available in :

सद्गुरु (डॉ.) मुकुल गाडगीळ

‘कोई विकार दूर करने हेतु दुर्गादेवी, राम, कृष्ण, दत्त, गणपति, हनुमान एवं शिव, इन ७ मुख्य देवताओं में से कौनसे देवता का तत्त्व कितनी मात्रा में आवश्यक है ?’, यह मैंने ध्यान लगाकर ढूंढा और उस अनुसार मैंने कुछ विकारों पर जप बनाए । इसप्रकार मैंने प्रथम नामजप ‘कोरोना विषाणुओं’की बाधा दूर करने के लिए बनाया था । उसकी परिणामकारकता ध्यान में आने पर मुझे अन्य विकारों पर भी जप ढूंढने की प्रेरणा मिली । ये जप, आवश्यकतानुसार विविध देवताओं के एकत्रित जप हैं । मैंने जो जप खोजे थे, वे साधकों को उनके विकारों के अनुरूप दे रहा था । साधकों ने बताया कि उन जपों का उन्हें अच्छा लाभ हो रहा है । कुछ महीनों पूर्व कुछ विकारों पर जप एवं साधकों के वे जप करने पर उन्हें हुई अनुभूतियां दैनिक ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित हुई थीं । अब कुछ और विकार एवं उन पर जप यहां दिए हैं । ये नामजप गत ३ माह से कुछ साधकों को दिए हैं । वे सभी साधक उन्हें हुई अनुभूतियां शीघ्र से शीघ्र ग्रंथों के लिए लिखकर इस लेख में दिए गए इ-मेल से अथवा डाक के पते पर भेजें ।

 

१. निम्नलिखित सारणी में दिए गए विकारों में से कुछ विकारों
के संदर्भ में बताए जपों के विषय में संत एवं साधकों के विशेष अनुभव सारणी

 

विकार लागू होनेवाले ५ नामजपों का एकत्रित नामजप (टिप्पणी)
१. दमा (अस्थमा) श्री दुर्गादेव्यै नम: । श्री हनुमते नम: । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
२. मूत्रवहन संस्था में संसर्ग होना श्री गुरुदेव दत्त । श्री हनुमते नम: । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
३. शरीर में किसी स्थान पर दाह होना श्रीराम जय राम जय जय राम । श्री हनुमते नम: । श्री हनुमते नम: । श्री हनुमते नम: । ॐ नम: शिवाय ।
४. ‘स्लिप डिस्क’ के कारण होनेवाली वेदना अल्प होने हेतु श्री दुर्गादेव्यै नम: । श्री गुरुदेव दत्त । श्री हनुमते नम: । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
५. वजन बढाने हेतु श्री गणेशाय नम: । श्री गणेशाय नम: । श्री गणेशाय नम: । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
६. ओ.सी.डी. (ऑब्सेसिव कंपलसिव डिर्साेडर) (कारण न होते हुए भी पुन: पुन: वही विचार मन में आना अथवा उस अनुसार एक ही कृति अनेक बार करना) श्री गुरुदेव दत्त । श्री गणेशाय नम: । श्री गणेशाय नम: । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
७. पचनशक्ति एवं अंतडियों की शक्ति न्यून होना ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीराम जय राम जय जय राम । श्री गुरुदेव दत्त । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
८. सर्व प्रकार के मानसिक विकार ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय । श्री गणेशाय नम: । श्री गणेशाय नम: । श्री गुरुदेव दत्त ।
९. कोई कारण न होते हुए भी शरीर में बार-बार खुजली होना श्री गणेशाय नम: । श्री गुरुदेव दत्त । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
१०. पार्किंसन श्री दुर्गादेव्यै नम: । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्री गुरुदेव दत्त । श्री गणेशाय नम: । ॐ नम: शिवाय ।
११. लगातार हिचकी आना श्री गणेशाय नम: । श्री गणेशाय नम: । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
१२. मस्तिष्क के विकार (मस्तिष्क में रक्तस्राव होकर रक्त के थक्के बन जाना, पैरालिसिस (अर्धांगवायु) होना, फिट्स (अपस्मार अथवा मिर्गी) आना इत्यादि) ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्री हनुमते नम: । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
१३. संधिवात (जोडों का दर्द, गठिया) श्री गुरुदेव दत्त । श्री गुरुदेव दत्त । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
१४. छाजन चर्म रोग (एक प्रकार का त्वचा विकार) होना श्री दुर्गादेव्यै नम: । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्री गुरुदेव दत्त । श्री गुरुदेव दत्त । श्री गुरुदेव दत्त ।
१५. डेंग्यू (एक प्रकार के मच्छरों के कारण फैलनेवाला संसर्गजन्य ज्वर) (प्लेटलेट्स न्यून होना) श्री दुर्गादेव्यै नम: । श्री हनुमते नम: । श्री हनुमते नम: । श्री हनुमते नम: । ॐ नम: शिवाय ।
१६. नींद न आना श्री गुरुदेव दत्त । श्री हनुमते नम: । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
१७. पेट में कृमि होना (सभी प्रकार के कृमि) श्री दुर्गादेव्यै नम: । श्री हनुमते नम: । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
१८. मितली आना (नॉशिया) श्री दुर्गादेव्यै नम: । श्री गुरुदेव दत्त । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
१९. मस्तिष्क में गाठ होने से भ्रमिष्ट होना श्री गुरुदेव दत्त । श्री गणेशाय नम: । श्री हनुमते नम: । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।
२०. रक्तवाहिनी में थक्के होना श्री दुर्गादेव्यै नम: । श्री हनुमते नम: । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय । ॐ नम: शिवाय ।

टिप्पणी : किसी व्याधि के लिए दिया हुआ नामजप यदि उसी क्रम से किया गया, तो वह एक नामजप होगा । इस प्रकार यह नामजप नियोजित कालावधि तक निरंतर करना ।

१ अ. मूत्रवहन संस्था में संसर्ग होना

एक संत के ‘प्रोस्टेट’ ग्रंथी में सूजन आती थी । इससे मूत्रवहन मार्ग में बाधा आने से मूत्र (पेशाब) विसर्जन पूर्णतः न होने से वहां जंतुसंसर्ग होता था और उन्हें बार-बार ज्वर (बुखार) आता था । इस पर औषधोपचार करने से भी कोई परिणाम नहीं होता था । फिर उन्होंने इस विकार पर मेरे बताए अनुसार जप २ महिने प्रतिदिन १ घंटा करने पर उनका वह रोग काफी मात्रा में नियंत्रण में आ गया है । अब भी दिया हुआ जप करना बंद करने पर उन्हें पुन: कष्ट होने लगता है; इसलिए उन्होंने यह जप लगभग आधा घंटे करना जारी रखा है ।

१ आ. शरीर के किसी स्थान पर दाह होना

एक साधिका की (वय ७९ वर्ष) पहले ‘पाईल्स’की शस्त्रक्रिया हुई है । अक्टूबर माह में वातावरण की उष्णता बढने से शरीर की भी उष्णता बढती है । इसलिए उस माह में उस साधिका को शौच होने के उपरांत गुदद्वार में दाह होता है । वह दाह रोकने के लिए मैंने उसे जप बताया । अब वह जप करने पर उन्हें १५ मिनट में ही गुदद्वार में होनेवाली दाह रुक जाती है । पहले यह दाह रोकने के लिए ४५ मिनट से डेढ घंटा लगता था ।

१ इ. पचनशक्ति एवं आंतों की शक्ति न्यून होना

एक संत का अन्नपचन भली-भांति न होने से उनका पेट भारी हो जाता और शौच साफ नहीं होती थी । इसलिए वे दुर्बल हो गए थे । उन्होंने इस विकार पर प्रतिदिन १ घंटा जप करना आरंभ करने पर महीने भर में ही लाभ हुआ । अब उन्हें पेट संबंधी कोई भी शिकायत नहीं है, इसलिए उन्होंने जप करना रोक दिया है ।

१ ई. करट (बडा फोडा) होना

एक साधिका की बाईं कांख में फोडा हो गया था । उसकी उन्हें असहनीय वेदना हो रही थी, जो वेदनाशामक गोली लेने के पश्चात भी रुक नहीं रही थी । मैंने जप ढूंढकर उन्हें बताया । वह नामजप करने पर २ घंटों में ही उनकी कांख की वेदना रुक गई और उनका वह हाथ हलका लगने लगा । तदुपरांत फोडा फोडकर पीप (मवाद) बाहर निकालते समय भी उन्हें विशेष वेदना नहीं हुई । तत्पश्चात वह फोडा पूर्णरूप से ठीक हो गया ।

१ उ. डेंग्यू (प्लेटलेट्स न्यून होना)

‘डेंग्यू’ इस विकार में रक्त की ‘प्लेटलेट्स’ उनके सर्वसामान्य मात्रा से न्यून हो जाती हैं । सर्वसामान्य व्यक्ति में उनकी मात्रा डेढ लाख से ४ लाख होती है । एक साधक को ‘डेंग्यू’ होने पर उनके रक्त की ‘प्लेटलेट्स’की मात्रा ६० सहस्र हो गई । इसलिए उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया । इस विषय में उन्होंने मुझे ६ बजे सूचित किया । मैंने उन्हें ‘प्लेटलेट्स’ बढाने के लिए जप दिया और उन्हें वह जप अधिकाधिक समय करने के लिए कहा । तदुपरांत अगले दिन दोपहर १ बजे जब उनके रक्त का पुन: परीक्षण किया, तब उनके रक्त की ‘प्लेटलेट्स’ १ लाख २० सहस्र हो गई । जप के कारण केवल आधे दिन में ‘प्लेटलेट्स’की आश्चर्यजनक वृद्धि हुई थी । ऐसा ही अनुभव एक साधिका और उसके भाई को भी हुआ ।

१ ऊ. मस्तिष्क में गांठ होने से भ्रमिष्ट होना

एक साधिका के पिता को (वय ७४ वर्ष) मस्तिष्क में गांठ होने से वे भ्रमिष्ट से हो गए थे । उनके लिए मैंने उस विकार पर जप बताया । उनके लिए मैंने इस विकार पर जप बताया । वह जप उस साधिका की मां प्रतिदिन २ घंटे कर रही थी । इस जप का इतना लाभ हुआ कि उसके पिता को पांचवें दिन अच्छा लगने लगा । इसलिए उन्हें अस्पताल से घर भेज दिया गया । तब मस्तिष्क की ‘स्कैनिंग’ करने पर ऐसा ध्यान में आया कि मस्तिष्क की गांठ ३० – ४० प्रतिशत घुल गई है । तत्पश्चात ८ दिनों में वह गांठ ६० प्रतिशत घुल गई थी । फिर अगले १ माह में वह गांठ केवल १० प्रतिशत ही रह गई । उस साधिका के पिता इस आयु में भी इतने अच्छे हो गए, इस बात का वहां के डॉक्टरों को भी बहुत आश्चर्य हुआ ।

 

२. जपों का महत्त्व

आपातकाल में औषधियों एवं डॉक्टरों की कमतरता होगी, तब इन जपाेंं का अच्छा उपयोग होगा ।

 

३. कृतज्ञता

परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपा से मैं यह जप ढूंढ सका एवं इन जपों की अच्छी परिणामकारकता भी ध्यान में आई । इसके लिए मैं परात्पर गुरु डॉक्टरजी के श्रीचरणों में कोटि-कोट कृतज्ञ हूं ।’

– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, पीएच्.डी., गोवा.

विकारों के संदर्भ में नामजप कर उस संदर्भ में अनुभूति भेजें !

साधकों को यहां उल्लेख किए गए विकारों में से कोई विकार हो, तो दूर करने के लिए यदि लगे तो उस विकार के लिए दिया गया नामजप करके देखें । वह नामजप १ मास (महिना) प्रतिदिन १ घंटा प्रयोग के रूप में करके देखें । इस नामजप के संदर्भ में आनेवाली अनुभूति साधक [email protected]  इस इ-मेल पते पर अथवा आगे दिए डाक पते पर भेजें ।

साधकों की ये अनुभूतियां ग्रंथ में लेने की दृष्टि से, इसके साथ ही नामजप की योग्यता प्रमाणित होने के लिए भी उपयुक्त होंगी ।

डाक पता : सनातन आश्रम, २४/बी रामनाथी, बांदोडा, फोंडा, गोवा. पिनकोड ४०३४०१.

Leave a Comment