अनुक्रमणिका
- १. श्री वैद्यनाथेश्वर शिव मंदिर का इतिहास
- २.एक सहस्र वर्ष से भी अधिक प्राचीन चोल राजा के काल का मंदिर !
- ३. गुरुपूर्णिमा के पावन दिन श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ने श्री वैद्यनाथेश्वर मंदिर को दी भेट !
- ४. गुरुपूर्णिमा के दिन श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ने किए श्री वैद्यनाथेश्वर के दर्शन, यह दैवीय नियोजन होने की अनुभूति होना
- ५. ‘कोरोना जैसे विषाणुओं से साधकों की रक्षा हो’, इस हेतु श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळ का श्री वैद्यनाथेश्वर शिवजी से प्रार्थना करना
- ६. मंदिर के विश्वस्तों ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को शाल अर्पण कर एवं हार पहनाकर उन्हें सम्मानित किया ।
- ७. क्षणिकाएं
- ८. अनुभूति
- ८ अ. मंदिर में भगवान के सामने बैठने पर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को शिवलिंग में पन्ने के (हरे) रंग के नृत्य करनेवाले शिव के दर्शन होना एवं इस मंदिर से ३० कि.मी. दूर स्थित ‘कुणिगल’ नामक गांव शिव का नृत्यक्षेत्र है’, ऐसे सहसाधक का बताना
- ८ आ. मंदिर में प्रवेश करने पर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को सूक्ष्म से सहस्रों नागों के दर्शन होना, प्रत्यक्ष में भी वहां एक दैवीय नाग का अस्तित्व होना एवं मंदिर में जनन-मरण शौच का पालन न करने से नाग द्वारा मंदिर में किसी को अंदर न जाने देना
१. श्री वैद्यनाथेश्वर शिव मंदिर का इतिहास
१अ. अरेयूरु यहां के शिव को ‘श्री वैद्यनाथेश्वर’ नाम पडने का कारण
सहस्रों वर्षाें पूर्व हिमालय से आए दधीचिऋषि ने इस स्थान पर एक आश्रम बनाया था । उस आश्रम में उन्होंने एक ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी । इस आश्रम में दधीचिऋषि अन्य ऋषियों के साथ दैवीय वनस्पतियों से औषधियां तैयार करते थे । इसलिए यहां भगवान शिव का नाम ‘श्री वैद्यनाथेश्वर’ पडा ।
२.एक सहस्र वर्ष से भी अधिक प्राचीन चोल राजा के काल का मंदिर !
यह मंदिर कर्नाटक की राजधानी बेंगळुरू से ९० कि.मी. दूर तुमकुरू जिले के ‘अरेयूरु’ इस निसर्गरम्य गांव में है । आज का मंदिर चोल राजा के काल का होने से वह एक सहस्र वर्षाें से भी अधिक प्राचीन है । इस शिवलिंग की विशेषता यह है कि उनके सामने दीप रखने पर उसकी ज्योत शिवलिंग पर दिखाई देती है । इस अर्थ से भी स्थानीय लोग इस शिवलिंग को ‘ज्योतिर्लिंग’ कहते होंगे ।
३. गुरुपूर्णिमा के पावन दिन
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ने श्री वैद्यनाथेश्वर मंदिर को दी भेट !
‘सप्तर्षियों ने जीवनाडीपट्टिका में बताया था कि ‘गुरुपूर्णिमा के दिन (२३.७.२०२१ को) श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम में महर्षि की आज्ञा से बनाई प्रतिमा का पूजन करेंगी । उसी समय श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ कर्नाटक राज्य के तुमकुरू जिले के अरेयूरु गांव में स्थित श्री वैद्यनाथेश्वर शिव के दर्शन लें । इस अवसर पर वे शिवलिंग पर अभिषेक करें और उसकी पूजा करें । वेदों के ‘चमकम्’ मंत्र सुनें, इसके साथ ही सर्वत्र के सनातन के साधकों के आरोग्य के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करें ।’
४. गुरुपूर्णिमा के दिन श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ
ने किए श्री वैद्यनाथेश्वर के दर्शन, यह दैवीय नियोजन होने की अनुभूति होना
सप्तर्षियों की आज्ञा अनुसार २३.७.२०२१ को गुरुपूर्णिमा के दिन सवेरे १०.३० बजे श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ श्री वैद्यनाथेश्वर मंदिर पहुंची । उस समय शिवलिंग पर अभिषेक हो रहा था । कुछ समय में पुजारियों ने वेदों के ‘चमकम्’ मंत्रोच्चार किए । तब हम साधकों को ऐसी अनुभूति हुई कि ‘यह सब दैवीय योजनानुसार हो रहा है ।’
५. ‘कोरोना जैसे विषाणुओं से साधकों की रक्षा हो’, इस हेतु
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळ का श्री वैद्यनाथेश्वर शिवजी से प्रार्थना करना
‘आपातकाल आरंभ होने से साधकों को वैद्यनाथ शिवजी का आशीर्वाद आवश्यक है; इसलिए सप्तर्षियों ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को गुरुपूर्णिमा के दिन श्री वैद्यनाथेश्वर मंदिर भेजा है’, ऐसा मुझे लगा । ‘कोरोना जैसे विषाणू से सभी साधकों की रक्षा हो’, इस हेतु श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ने श्री वैद्यनाथेश्वर शिवजी से प्रार्थना की ।
६. मंदिर के विश्वस्तों ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ
को शाल अर्पण कर एवं हार पहनाकर उन्हें सम्मानित किया ।
७. क्षणिकाएं
७ अ. वरुणाशीर्वाद
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ के चौपहिया वाहन से मंदिर के सामने आते ही पुष्पवृष्टि होने समान वर्षा हुई । इस विषय में महर्षि को बताने पर वे बोले, ‘यह वरुणाशीर्वाद ही था ।’
७ आ. विश्वस्तों ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को
सप्तर्षियों द्वारा दिए स्फटिक का शिवलिंग श्री वैद्यनाथेश्वर शिवलिंग के
एक ओर रखने और उस पर भी अभिषेक करने के लिए पुजारी का बताना
इस अवसर पर मंदिर के सभी विश्वस्त उपस्थित थे । उन्होंने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को भगवान के सामने बैठने हेतु व्यवस्था की । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने सप्तर्षियों को स्फटिक का शिवलिंग दिया है । यह शिवलिंग गत ६ पीढियों से पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के घराने की पूजा में था । यह शिवलिंग विश्वस्तों को दिखाने पर उन्होंने उसे श्री वैद्यनाथेश्वर शिवलिंग के समीप ही एक ओर रखकर पुजारियों को शिवलिंग पर अभिषेक करने के लिए कहा ।
८. अनुभूति
८ अ. मंदिर में भगवान के सामने बैठने पर
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को शिवलिंग में पन्ने के (हरे) रंग के
नृत्य करनेवाले शिव के दर्शन होना एवं इस मंदिर से ३० कि.मी.
दूर स्थित ‘कुणिगल’ नामक गांव शिव का नृत्यक्षेत्र है’, ऐसे सहसाधक का बताना
मंदिर में भगवान के सामने बैठने पर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को शिवलिंग में साक्षात् नृत्य करनेवाले शिव के पहली बार दर्शन हुए । उन्हें शिव का रंग पन्ने समान (हरा) दिखाई दिया । उन्होंने बताया कि उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ मानो ‘‘शिव की आरती होते समय शिव नृत्य कर रहे हैं और वे पार्वती के रूप में नृत्य देख रही हैं । फिर कुछ समय पश्चात ऐसा प्रतीत होने लगा कि ‘मैं काली माता हूं ।’ नृत्य करते समय कालीमाता के गले की रूंडमाळ झूलती हुई प्रतीत हो रही थी । ‘मेरा १ रूप कालीमाता के रूप में नृत्य कर रहा था और १ रूप वह नृत्य देख रहा है ।’, ऐसा कुछ सेकंड मुझे लगा ।’’
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ने यह अनुभूति हमें बताई । तब सहसाधक श्री. विनीत देसाई बोले, ‘इस मंदिर से ३० कि.मी. दूर कुणिगल नामक गांव है । कुणिगल शिवजी का नृत्यक्षेत्र है । कन्नड भाषा में ‘कुणि’ अर्थात ‘नृत्य’ एवं ‘गल’ अर्थात ‘पत्थर’ । प्राचीन काल में एक बार शिव एवं पार्वती यहां आए थे । उनके इस क्षेत्र में नृत्य करने से गांव का नाम ‘नर्तनपुरी’ पड गया । गांव के तालाब में पानी का स्तर बढने पर, तालाब के पत्थर ऊपर-नीचे होते अर्थात डूबते-उतराते दिखाई देते थे । इसलिए लोगों ने इस गांव का नाम ‘कुणिगल’ अर्थात ‘नृत्य करनेवाले पत्थर’ रख दिया । तदुपरांत श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को शिवलिंग में नृत्य करनेवाले शिवजी के दर्शन क्यों हुए, इसके पीछे का कार्यकारणभाव ध्यान में आया ।
८ आ. मंदिर में प्रवेश करने पर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को
सूक्ष्म से सहस्रों नागों के दर्शन होना, प्रत्यक्ष में भी वहां एक दैवीय नाग का अस्तित्व होना
एवं मंदिर में जनन-मरण शौच का पालन न करने से नाग द्वारा मंदिर में किसी को अंदर न जाने देना
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ श्री वैद्यनाथेश्वर मंदिर में जाने पर वहां उन्हें सूक्ष्म से अपने आसपास सहस्रों नागों के दर्शन हुए । विश्वस्तों ने बताया, ‘‘मंदिर के निकट ही भूमि के नीचे शिवलिंग (‘हालु रामेश्वर’) है । वहां एक दैवीय नाग बीच-बीच में श्री वैद्यनाथेश्वर के दर्शन के लिए आता है । मंदिर में जनन-मरण शौच के पालन में यदि कोई चूक हो जाए अथवा पालन न हो पाए, तो वह मंदिर के प्रवेशद्वार पर आकर बैठ जाता है और किसी को भी अंदर नहीं जाने देता ।’’
– श्री. विनायक शानभाग, बेंगळुरू, कर्नाटक. (२६.७.२०२१)
सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाले अवयव नाक, कान, आंखें, जीभ एवं त्वचा भी पंचज्ञानेंद्रिय हैं । ये पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे अर्थात सूक्ष्म । साधना में प्रगति किए हुए कुछ व्यक्तियों को ये सूक्ष्म संवेदना ध्यान में आती हैं । इस सूक्ष्म के ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है । इस लेख में प्रकाशित हुई अनुभूति ‘भाव वहां भगवान’, इस उक्ति के अनुसार साधकों की /सद्गुरुओं की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वे हर किसी को आएंगी ही, ऐसा नहीं है । – संपादक |