अनुक्रमणिका
- १. ६१ प्रतिशत स्तर कैसे प्राप्त करना है ?
- २. साधकों का आध्यात्मिक स्तर पहचानना
- ३. ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व
- ४. ६१ प्रतिशत एवं ६५ प्रतिशत स्तर प्राप्त होने का महत्त्व
- ५. ६१ प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधकों के कारण कुटुंबियों को होनेवाला अप्रत्यक्ष लाभ
- ६. साधको, ६१ स्तर प्राप्त करना हो, तो यह ध्यान में रखें !
- ७. साधको, किसी साधक के ६१ प्रतिशत साध्य करने पर निराश न हों !
- ८. किसी साधक के ६१ प्रतिशत प्राप्त करने पर सभी को आनंद होता है !
- ९. गुरुकृपा से प्राप्त आध्यात्मिक स्तर का पतन न हो, इसके लिए अपनी चूकें और दोष दूर करने के लिए गंभीरता से प्रयत्न करें !
- १०. कहां केवल भारत में ही तात्कालिक महत्त्व प्राप्त सरकारी पुरस्कार, तो कहां ६१ प्रतिशत और उससे आगे का आध्यात्मिक स्तर !
- ११. हिन्दुओ, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का ध्येय शीघ्र साध्य होने के लिए साधना करें !
१. ६१ प्रतिशत स्तर कैसे प्राप्त करना है ?
१.अ. अध्ययन (पढाई) करेंगे, तो परीक्षा में उत्तीर्ण होते ही हैं । उसीप्रकार साधना उचित प्रकार से करने पर ६१ प्रतिशत स्तर साध्य होता ही है ।
१.आ. व्यवहार की परीक्षा एवं साधना की परीक्षा : साधना छोडकर अन्य सभी विषयों में वार्षिक परीक्षा होती है । परीक्षा के पहले केवल २ – ३ माह अध्ययन करने पर भी अनेक लोग उत्तीर्ण हो जाते हैं, जबकि साधना में प्रतिदिन, प्रत्येक क्षण परीक्षा होती है । उसमें उत्तीर्ण होना पडता है, तब ही ६१ प्रतिशत एवं उसका अगला स्तर साध्य कर सकते हैं ।
१.इ. साधक आश्रम में अथवा प्रसार में वही-वही सेवा करते हुए बाह्यतः दिखाई दिए, तब भी वह सेवा अधिकाधिक परिपूर्ण, भावपूर्ण एवं अहंविरहित करने से उनकी प्रगति होती है ।
२. साधकों का आध्यात्मिक स्तर पहचानना
किसी साधक का स्तर ६१ से ७० प्रतिशत हो जानेपर, कुछ साधकों को समझ में आता है । कुछ समझ तो जाते हैं; परंतु निश्चिति नहीं होती और अन्य साधक समझ ही नहीं पाते ।
२.अ. आध्यात्मिक स्तर न पहचान पाने के कारण
२.अ.१. व्यक्ति उतने प्रकृति उतने ही प्रकार की बोल-चाल अर्थात उनका बर्ताव होता है । इसलिए इन घटकों से स्तर नहीं पहचान सकते ।
२.अ.२. प्रत्येक की व्यष्टि साधना के अंतर्गत स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नाम, सत्संग, सत्सेवा, त्याग, प्रीति एवं भावजागृति, ये घटक विविध मात्रा में होते हैं, इसके साथ ही समष्टि साधना के क्षेत्र भी अलग-अलग होते हैं । इसकारण भी आध्यात्मिक स्तर पहचान में नहीं आता ।
२.आ. आध्यात्मिक स्तर पहचानने के लिए उपयुक्त घटक
२.आ.१. साधक का चेहरा सात्त्विक अथवा आनंदी दिखाई देना
२.आ.२. साधक की सेवा भावपूर्ण एवं परिपूर्ण होना
२.आ.३. साधक की बातें सुनते समय, उनके सान्निध्य में अथवा उनके छायाचित्र की ओर देखकर अच्छा लगना
२.आ.४. उसमें अंतर्मुखता प्रतीत होना
ये घटक ध्यान में लेकर अन्य साधकों का अभ्यास करें । इससे धीरे-धीरे किसका स्तर क्या है, इसके साथ ही स्तर बढाने के लिए अमुक साधक को क्या प्रयत्न करना होगा, यह ध्यान में आएगा और अन्यों की सहायता कर पाएंगे । इसके साथ ही अच्छा स्तर प्राप्त साधकों के गुण भी ध्यान में आएंगे और उन्हें आत्मसात करने की दृष्टि से प्रयत्न भी होंगे ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (वर्ष २०१२)
३. ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व
ईश्वर का आध्यात्मिक स्तर यदि १०० प्रतिशत मान लिया जाए और निर्जीव वस्तुओं का ० प्रतिशत, तो सामान्य मनुष्य का आध्यात्मिक स्तर २० प्रतिशत होता है । इस स्तर का व्यक्ति केवल अपने ही सुख-दु:ख का विचार करता है । उसका समाज से कुछ भी लेना-देना नहीं होता । वह ऐसा विचार करता है कि ‘मैं ही सब करता हूं ।’ जब आध्यात्मिक स्तर ३० प्रतिशत होता है, तब वह ईश्वर का अस्तित्व थोडी-बहुत मात्रा में मान्य करने लगता है, इसके साथ ही साधना अथवा सेवा करने लगता है । माया की एवं ईश्वरप्राप्ति का आकर्षण जब एक समान होता है, तब समझें कि व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत हो गया है । आध्यात्मिक स्तर जब ६१ प्रतिशत होता है, तब वह व्यक्ति माया से अलिप्त होने लगता है । उसका मनोलय आरंभ हो जाता है और उसे विश्वमन के विचार ग्रहण होने लगते हैं । मृत्यु के पश्चात जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त होकर उसे महर्लोक में स्थान प्राप्त होता है ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
४. ६१ प्रतिशत एवं ६५ प्रतिशत स्तर प्राप्त होने का महत्त्व
४.अ. ६१ प्रतिशत स्तर के साधक
४.अ.१. अनिष्ट शक्तियों से पीडित साधकों पर उपाय करने की क्षमता : ४ थे पाताल की अनिष्ट शक्तियों से लगभग ४ माह (महिने) लड सकते हैं ।
४.अ.२. अगली उन्नति : यदि इन साधकों ने साधना में सातत्य रखा और अहं बढने नहीं दिया, तो ये साधक ४ से ५ वर्षाें में संत बन सकते हैं । (७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर साधक संत बनते हैं ।)
४.आ. ६५ प्रतिशत स्तर के साधक
४.आ.१. अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित साधकों पर उपाय करने की क्षमता : ६५ स्तर का एक साधक अर्थात ६१ प्रतिशत स्तर के ३० साधक । ये साधक ४ थे पाताल की बलवान अनिष्ट शक्तियों से लगभग ७ माह लड सकते हैं और ५ वें पाताल की बलवान अनिष्ट शक्तियों से लगभग २ माह तक लड सकते हैं । अनिष्ट शक्तियों के साथ सूक्ष्म में हो रही लडाई के लिए धीरे-धीरे बल प्राप्त होने लगता है ।
४.आ.२. अगली उन्नति : इन साधकों ने अपनी साधना में सातत्य रखा और अहं बढने नहीं दिया, तो ये साधक २ से ३ वर्षाें में ७० प्रतिशत स्तर प्राप्त कर सकते हैं, अर्थात संत हो सकते हैं ।
४.इ. ६१ प्रतिशत स्तर प्राप्त करने के पश्चात साधकों को
स्वर्गप्राप्ति की इच्छा शेष न रहना और महर्लोक से मोक्ष तक मार्गक्रमण होने का कारण
४.इ.१. ६१ प्रतिशत साधकों के चित्त पर त्याग का संस्कार हुआ होता है । जो उसे आगे माया में अटकने नहीं देता ।
४.इ.२. ६१ प्रतिशत स्तर के उपरांत आनंद की अनुभूति आने के कारण पृथ्वी पर माया के सुख का ही क्यों; वे स्वर्गसुख का भी विचार नहीं करते ।
४.इ.३. उनके मन में ईश्वरप्राप्ति की तीव्र इच्छा निर्माण हो जाने से उनका अगला मार्गक्रमण होता ही रहता है ।
४.इ.४. कुछ की वृत्ति शीघ्र उन्नति करने की होती है । पृथ्वी पर १०० वर्षाें की साधना अर्थात महर्लोक में १०००० (दस सहस्र) वर्षाें की साधना, ऐसा गणित है । इसलिए वे पृथ्वी पर जन्म लेकर अधिकाधिक साधना कर शीघ्र मोक्षतक जाने का मार्ग चुनते हैं; इसीलिए महर्लोक प्राप्त करनेवाले कुछ जीव पृथ्वीपर पुन: जन्म लेते हैं । इसलिए साधक देहधारी हों अथवा उन्होंने देहत्याग कर दिया हो, उनका मोक्ष की दिशा में मार्गक्रमण होता ही रहता है ।
४.ई. ६१ प्रतिशत स्तर प्राप्त साधक एवं ७० प्रतिशत स्तर के संतों की विशेषताएं
सनातन के ६१ प्रतिशत स्तर प्राप्त साधकों की विशेषताएं
४.ई.१. माया से अलिप्त हो पाना ।
४.ई.२. देह को एवं उनके द्वारा उपयोग में लाई जा रही कुछ वस्तुओं को सुगंध आना ।
४.ई.३. मनोलय का आरंभ होता है । विश्वमन के विचार ग्रहण कर पाते हैं ।
४.ई.४. ४ थे पाताल तक अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होनेवाले साधकों पर आध्यात्मिक उपाय कर पाते हैं ।
४.ई.५. मृत्यु के उपरांत जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त होकर महर्लोक में स्थान मिलता है ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (वर्ष २०१२)
५. ६१ प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के
साधकों के कारण कुटुंबियों को होनेवाला अप्रत्यक्ष लाभ
आजकल अनेक लोग श्राद्ध नहीं करते, इसलिए उनके पूर्वज परिवार को कष्ट देते हैं । कोई यदि श्राद्ध करना निश्चित करता है, तो उसे सात्त्विक पुरोहित नहीं मिलता । इसलिए श्राद्धविधि करने के उपरांत भी विधि न करने समान ही होता है । ६१ प्रतिशत अधिक स्तर के साधक मृत्यु के उपरांत महर्लोक में जाते हैं । इसलिए वे अपने बच्चों पर श्राद्ध-पक्ष करने का भी बोझ नहीं डालते ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (वर्ष २०११)
६. साधको, ६१ स्तर प्राप्त करना हो, तो यह ध्यान में रखें !
जब तक ‘मैंने सेवा अच्छी की’, ‘मेरी प्रगति’, ‘मेरा स्तर’ ऐसे विचार होते हैं, तब तक ६१ प्रतिशत स्तर नहीं साध्य कर सकते । वे विचार समाप्त होने पर, सेवा अथवा नाम का आनंद अनुभव जब होने लगे, तब स्तर ६१ प्रतिशत होता है ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (वर्ष २०१२)
७. साधको, किसी साधक के ६१ प्रतिशत साध्य करने पर निराश न हों !
कुछ साधक किसी साधक के ६१ प्रतिशत स्तर प्राप्त होने पर ‘हमने नहीं साध्य किया’; इसलिए निराशा आती है । वे आगे दिए सूत्र ध्यान में रखें ।
७.अ. ६१ प्रतिशत स्तर साध्य करनेवाले साधक में कौनसे गुण हैं ?
७.आ. हम कहां न्यून (कम) पडते हैं ?
७.इ. दोनों की साधना समान ही हो, तो एक की प्रगति शीघ्र होती है, दूसरे की नहीं । इसका कारण यह है कि पहले के प्रारब्ध की तीव्रता अल्प, तो दूसरे के प्रारब्ध की तीव्रता अधिक होती है ।
७.ई. निराशा आने के स्थान पर ऐसा विचार करना चाहिए अथवा उस संदर्भ में स्वसूचना दें कि ‘उस साधक ने ६१ प्रतिशत स्तर प्राप्त किया है, तो मैं भी अवश्य कर सकता हूं ।’
७.उ. अच्छा साधकत्व होगा तो निराशा नहीं आती, अपितु स्तर प्राप्त करनेवाले साधक की प्रशंसा की जाती है ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
८. किसी साधक के ६१ प्रतिशत प्राप्त करने पर सभी को आनंद होता है !
कोई साधक यदि ६१ प्रतिशत स्तर प्राप्त करता है, तो सभी को आनंद होता है और उनके आनंद को देखकर ६१ प्रतिशत स्तर प्राप्त करनेवाले साधक को भी आनंद होता है । कुल मिलाकर सभी को आनंद होता है ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (वर्ष २०१२)
९. गुरुकृपा से प्राप्त आध्यात्मिक स्तर का पतन न हो,
इसके लिए अपनी चूकें और दोष दूर करने के लिए गंभीरता से प्रयत्न करें !
साधना में ६१ प्रतिशत स्तर होना, यह गुरुकृपा से मिला वरदान है; कारण इस स्तर के आगे की आध्यात्मिक यात्रा के लिए ईश्वर की सहायता सहजता से और अधिक मात्रा में मिलने लगती है । इसलिए कृतज्ञताभाव रखकर आगे की साधना के मनोभाव से प्रयत्न करना, अपना कर्तव्य है; परंतु आजकल ऐसा ध्यान में आया है कि ६१ प्रतिशत स्तर प्राप्त कुछ साधकों की उसमें चूकें, दोष एवं गंभीरता के अभाव के कारण साधना में अधोगति हो रही है । ऐसा होने पर, आनेवाले आपातकाल में ऐसे साधकों का टिकना कठिन है । साधकों को अपने दोष दूर कर, साधना बढाने के लिए गंभीरता से प्रयत्न करने चाहिए । ऐसे साधकों से साधना के प्रयत्न भले ही न हों, तब भी कम से कम चूकें तो न होने दें । इससे साधकों का स्तर भले ही न बढे, कम तो नहीं होगा ।
१०. कहां केवल भारत में ही तात्कालिक महत्त्व प्राप्त
सरकारी पुरस्कार, तो कहां ६१ प्रतिशत और उससे आगे का आध्यात्मिक स्तर !
भारत सरकार प्रतिवर्ष पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण इत्यादि, इसके साथ ही विविध विषयों के संदर्भ में भी अनेक पुरस्कार प्रदान करती है । पुरस्कारप्राप्तकर्ताओं को केवल उसी वर्ष और वह भी केवल भारत में ही थोडा-बहुत महत्त्व मिलता है । राज्य पुरस्कारप्राप्तकर्ताओं के संदर्भ में तो विचार भी नहीं करना चाहिए । इसके विपरीत ६१ प्रतिशत एवं उसके आगे के आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने पर उनके मोक्षतक जाने तक विश्व में सर्वत्र सहायता होती है ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘किसी साधक का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत घोषित करने का उद्देश्य यह होता है कि उसे समझ में यह आए कि वह कहां तक पहुंच गया है । आगे संतत्व की दिशा में उसकी गति बढे और उससे अन्यों को भी प्रेरणा मिले ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना विशेष घटना है । इसलिए कि इससे ब्रह्मांड का एक जीव जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होता है ।’
– पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति ।
११. हिन्दुओ, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का ध्येय शीघ्र साध्य होने के लिए साधना करें !
समर्थ रामदासस्वामीजी के मार्गदर्शन में छत्रपति शिवाजी महाराजजी ने हिंदवी स्वराज्य स्थापित किया । उसीप्रकार हिन्दुओं को अब राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए साधना कर संतों के मार्गदर्शनानुसार हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य करना होगा । हिन्दू राष्ट्र आएगा, यह पत्थर की लकीर है; परंतु यदि हिन्दू शरणागत भाव से साधना कर आध्यात्मिक प्रगति करेंगे, तब भी हिन्दू राष्ट्र स्थापना का ध्येय शीघ्र साध्य होनेवाला है । आज सनातन के १ सहस्र साधकों के साथ सनातन के कार्य से जुडे अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ और पाठक भी साधना कर आध्यात्मिक उन्नति कर रहे हैं । यह आदर्श सामने रखकर हिन्दुत्व का कार्य करनेवाले सर्वत्र के हिन्दुओं को तीव्र साधना कर, आध्यात्मिक बल बढाना आवश्यक है । इस आध्यात्मिक बल पर ही हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी !
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले