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बादल फटना
कुछ समय पूर्व कोकण एवं मुंबई सहित महाराष्ट्र के अनेक भागों में वर्षा ने रौद्ररूप धारण कर लिया था । अतिवृष्टिसमान वर्षा के कारण चिपळूण में भीषण परिस्थिति निर्माण हो गई । वाशिष्ठी एवं शिव नदी में आई बाढ ने पुराने चिपळूण शहर को घेर लिया था । शहर के अनेक भागों में पानी घुस आया और अंतर्गत मार्ग बंद हो गए थे । मुसलाधार गिरनेवाली इस वर्षा से बादल फटने की चर्चा एवं उस विषय का समाचार सामाजिक माध्यमों द्वारा प्रसारित हो रहा था । वैसे देखा जाए तो समुद्र तटवर्ती क्षेत्र में बादल फटने की घटना नहीं हुई । विशेषरूप से ऊंचे प्रदेश में बादल फटने की संभावना अधिक होती है । इसीलिए बादल फटने का अर्थ क्या है ? वह कैसे होती है ? इस विषय में संक्षिप्त जानकारी इस लेख में दे रहे हैं ।
१. बादल फटने की प्रक्रिया का प्रारंभ
ये मेघ (बादल) गरजते हुए आंधी-तूफानी वर्षा लेकर आते हैं । इन बादलों का नाम ‘कुमुलोनिम्बस’ है । यह ‘लैटिन’ शब्द है । ‘क्युम्युलस’ अर्थात एकत्र होते जानेवाले और ‘निम्बस’ अर्थात बादल । संक्षेप में, अत्यंत वेग से एकत्र होते जानेवाले वर्षा के बादल, यह प्रारंभ होता है ।
गरम हवा एवं आर्द्रता के कारण बादलों में पानी की मात्रा बढती जाती है । पानी की अब्जों-अब्जों बूंदें इन बादलों में बिखर जाती हैं । उसी से ही फिर जोरों की वर्षा होती है; परंतु इन बादलों में वेग से ऊपर चढनेवाला हवा का स्तंभ निर्माण होता है, इस ‘अपड्राफ्टस्’ कहते हैं । पानी की बूंदों को लेकर जानेवाला हवा का स्तंभ ऊपर-ऊपर चढता जाता है । इस स्तंभ के साथ ही वेग से ऊपर चढते हुए पानी की बूंदों का आकार कभी-कभी ३.५ मिमी से भी बडा होता है । कई बार इस ऊपर चढनेवाले हवा के स्तंभ में अत्यंत गतिमान हवा निर्माण होती है । बादलों में ही छोटे-छोटे चक्रवात निर्माण होते हैं । इन चक्रवातों में पानी की बूंदें होती हैं । हवा के स्तंभ की जितनी शक्ति होगी, उतनी वह ऊपर चढती है और फिर मेला की बडी चक्री में लगे झूले जैसे तेजी से नीचे आते हैं, कुछ इसीप्रकार इस स्तंभ की प्रक्रिया होती है । इस स्तंभ द्वारा धारण किए हुए पानी की बडी-बडी बूंदें झूले समान ही अत्यंत वेग से नीचे की ओर आती हैं । इस समय उन्हें ऊर्जा भी मिली हुई होती है, जिससे वे अत्यंत वेग से भूमि की ओर आती हैं । हवा का यह स्तंभ जो भूमि की दिशा में आता है, इसे ‘डाऊनड्राफ्ट’ कहते हैं । बूंद का वेग प्रारंभ में समान्यत: १२ किमी. प्रति घंटा होता है, जो आगे बढकर ८० से ९० किमी प्रति घंटा तक पहुंच जाता है ।
२. बादल फटने की प्रत्यक्ष प्रक्रिया
बादल बडा हो, तब भी उसका विस्तार अधिक नहीं होता । इसलिए भूमि पर छोटे से भाग में मानो पानी का स्तंभ गिर पडे । बादल फटना, इस शब्द में ही इस घटना का अर्थ स्पष्टरूप से ध्यान में आता है । किसी पानी की टंकी का पूरा तल ही निकल जाए, तो टंकी का पानी कितने वेग से नीचे आएगा, ठीक वही प्रक्रिया यहां होती है । इसमें अंतर केवल इतना ही होता है कि यहां अनेक मीलों फैले पानी के बादल होते हैं और उनमें अब्जावधि गैलन पानी भरा होता है । आकाश में पानी के बादल फट जाते हैं और बहुत ही कम समय में पानी का मानो स्तंभ ही जमीन पर आ जाता है । बडी बूंदें और प्रचंड वेग के कारण सब कुछ बह जाता है । पेड-पौधे, छोटे प्राणी, कच्ची इमारतें इत्यादि सब कुछ नष्ट कर देता है । प्रत्येक स्थान पर भूमि की पानी सोखने की क्षमता अलग-अलग होती है और पानीे सोखने में उसे कुछ समय भी लगता है । बादल के फटने के समय कुछ मिनटों में ही अत्यंत भारी मात्रा में पानी गिरने से भूमि का उसे सोख लेने का काम ही रुक जाता है । इसकारण जहां-तहां बाढग्रस्त समान स्थिति निर्माण हो जाती है । बादल का फटना, यदि पहाडी पर हो, तो पानी तेजी से बहकर नीचे आता है और उसके साथ ही मिट्टी भी तलहटी की ओर खिसक आती है । वेग एवं बूंदों का आकार एवं पानी लेकर आनेवाली हवा का स्तंभ जमीन पर टकराने से अपरिमित हानि होती है ।
३. बादल के फटने से होनेवाली एक विशेष घटना
बादल के फटने से एक अलग घटना होती है । बादल के फटने के पहले मौसम वर्षाऋतु समान होता है । अंधेरा छाया होता हैं, जो गहरा होते जाता है । वर्षा के समय यह अंधेरा एकदम घट जाता है । कभी-कभी ऐसा लगता है कि वर्षा सूर्यप्रकाश में हो रही थी । इसका कारण है वर्षा की बडी-बडी बूंदें, जो आईने समान काम करती हैं और प्रकाश परावर्तित करती हैं । इसलिए सदा की तुलना में अधिक प्रकाश दिखाई देता है ।
४. मुंबई में २६ जुलाई २००५ को हुई वर्षा बादल फटने का ही प्रकार !
हिमालय के क्षेत्र में बादल फटना कोई नई बात नहीं है । वहां अनेक बार ऐसे बादल फटते हैं; चूंकि ये घटनाएं पहाडी इलाकों में होती हैं जहां मनुष्यबस्ती नहीं है, इसलिए उसका समाचार नहीं बन पाता । यदि यह घटना मनुष्यबस्ती में होती, तो तुरंत ही अपना ध्यान आकर्षित कर लेती है । मुंबई में २६ जुलाई २००५ को हुई वर्षा, बादल फटने का ही प्रकार था । ऐसी परिस्थिति बहुत ही कम बार निर्माण होती है, जब समुद्र तटवर्ती भागों में बादल फटने जैसी परिस्थिति होती है । मुंबई में उस दिन ८ घंटों में ९५० मिमी वर्षा हुई ।
५. बादल फटने की सबसे बडी घटना
लेह में ६ अगस्त २०१० को हुई बादल फटने की घटना, अब तक विश्व की सर्वज्ञात घटनाओं में सबसे बडी घटना मानी जाती है । केवल एक मिनट में २ इंच वर्षा इतने भारी मात्रा में आज तक कहीं भी नहीं हुई ।
६. बादल फटने की कुछ प्रमुख घटनाएं
वर्जिनिया, अमेरिका (२४ अगस्त १९०६) ४० मिनटों में २३४ मिमी वर्षा
पोर्ट बेल, पनामा (२९ नवंबर १९११) ५ मिनटों में ६१.७२ मिमी वर्षा
प्लंब पॉईंट, जमेका (१२ मई १९१६) १५ मिनटों में १९८.१२ मिमी वर्षा
कर्टिआ, रुमानिया (७ जुलाई १९४७) २० मिनटों में २०५.७४ मिमी वर्षा
बरोट, हिमाचल प्रदेश (२६ नवंबर १९७०) एक मिनट में ३८.१० मिमी वर्षा