अनंतमूल (सारिवा)
गुण : तिक्त (तीखा), मधुर, गुरु (अर्थात पचने में भारी), स्निग्ध, शीतवीर्य, सुगंधी एवं त्रिदोषनाशक है ।
अनंतमूल की बेल १५ फुट लंबी होती है । उनकी जडों का उपयोग औषधि के रूप में करते हैं । मराठी में इसे ‘उपलसरी’ भी कहते हैं ।
उपयोग
रक्तशोधक एवं दुर्गंधनाशक है । रक्तस्राव पर उपयोगी । पसीने एवं मूत्र की मात्रा बढानेवाली, इसके साथ ही दाह एवं सूजद कम करनेवाली है । विषनाशक एवं सभी धातुओं के एवं दूध के दोष नष्ट करनेवाली है । शुक्रवर्धक एवं रसायन है । ज्वर, त्वचा के रोग, खाज-खुजली, वातरोग, दाह, सूजन, अतिसार (जुलाब), रक्तस्राव की प्रवृत्ति (bleeding tendency), खांसी, दमा, वातरोग, आमवात पर उपयोगी ।
१. अनंतमूल का फाण्ट
अनंतमूल चूर्ण २० ग्राम + गरम पानी १२० मिलीलीटर, इसे ४० मिलीलीटर हो जाने तक उबाल लें । फिर दिन में तीन बार दें । कफप्रधान ज्वर एवं रक्तपित्त में प्रमेह के व्रणों में उपयोगी ।
अ. मूत्र रोगों में जैसे पेशाब में जलन होना, पेशाब में रक्त जाना, इसमें अनंतमूल, गिलोय एवं जीरा का फाण्ट लें ।
आ. आमवात एवं संधिवात (गठिया) के लिए अनंतमूळ का फाण्ट लें ।
२. अनंतमूल का काढा
अनंतमूल चूर्ण २० ग्राम + ३२० मिलीलीटर पानी लेकर, इसे ८० मिलीलीटर होने तक उबालें । ४० मिलीलीटर दिन में २ बार दें ।
यह प्रमेह एवं प्रमेह की फुंसियों पर उपयोगी है ।
३. अनंतमूल से तैयार घी
रक्तशोधक जननेंद्रियों के लिए बलदायक एवं रसायन. (मात्रा : १ से ४ चम्मच २ बार लें ।)