अनुक्रमणिका
कपूर
१. कपूर के पेड के विषय में सामाजिक माध्यमों से फैलाई जानेवाली गलत धारणाएं !
गत कुछ दिनों से सामाजिक माध्यमों से चीनी कपूर के वृक्षों के विषय में वेग से संदेश फैलाया जा रहा है । वैसे तो कपूर से सभी परिचित हैं; परंतु ‘वह कहां मिलता है ? कैसे निर्माण होता है ?’ इस विषय में अनेक लोगों को पता नहीं । ‘कपूर के पेड अपने आसपास आधा किलोमीटर परिसर तक की हवा शुद्ध करते हैं’, ऐसी अशास्त्रीय जानकारी सामाजिक जालस्थलों के माध्यम से फैलाई जा रही है । इस विषय में सभी को जागरूक रहने की आवश्यकता है । कोरोना के काल में ऑक्सीजन का महत्त्व सभी को पता चल गया है । इसलिए अनेक लोगों का मत है कि वातावरण में ऑक्सीजन बढाने के लिए २४ घंटे ऑक्सीजन देनेवाली वनस्पतियों का रोपण करना आवश्यक है । इसका अपलाभ उठाते हुए इसप्रकार के संदेश सामाजिक माध्यमों द्वारा फैलाए जा रहे हैं ।
श्री. राहुल कोल्हापुरे
२. सर्वाधिक प्राणवायु देनेवाले वृक्ष !
बरगद, पीपल, गूलर (उदुंबर) एवं नीम जैसे वृक्ष सर्वाधिक ऑक्सिजन देते हैं । पृथ्वी पर की सर्व वनस्पतियां दिन में कार्बन डायऑक्साईड अवशोषित कर, मानव को शुद्ध प्राणवायु (ऑक्सिजन) देती हैं । इसके साथ ही वनस्पति अपने लिए अन्न स्वयं निर्माण करती हैं । यह विज्ञान ने सिद्ध किया है ।
३. कपूर के प्रकार एवं प्राकृतिक कपूर मिलने का स्थान !
‘कपूर के २ प्रकार हैं – ‘प्राकृतिक कपूर’ एवं ‘कृत्रिम कपूर’ ! प्राकृतिक कपूर विविध वनस्पतियों से प्राप्त होता है । प्राकृतिक कपूर के ४ प्रकार हैं । कृत्रिम कपूर केवल रसायनों से बनाया जाता है ।
३ अ. भीमसेनी कपूर
भीमसेनी कपूर को ही ‘बारूस’ अथवा ‘बोर्निया कपूर’ कहते हैं । यह कपूर सुमात्रा द्वीप पर पाए जानेवाले ‘ड्रायोबैलेनॉप्स् रोमेटिक’ वृक्ष से मिलता है । कपूर के स्फटिक वृक्षों के मध्यभाग में, जडों में, जहां से टहनियां निकलती हैं वहां और वृक्ष की छाल के अंदर निर्माण होता हैं । इंडोनेशिया के बोर्निओ द्वीप से यह कपूर भारत में आता है । प्राचीन काल से यह कपूर प्रख्यात है । इसलिए वैदिक काल से ही इसे धार्मिक कार्य और आयुर्वेदीय औषधि निर्मिति के लिए उपयोग में लाया जाता है । आयुर्वेद में इस कपूर को ‘अपक्व कपूर’, भी कहते हैं । इसके साथ ही इस कपूर के पतले द्रव्य को ‘कपूर तेल’ कहते हैं । यह कपूर पानी में डालने पर डूब जाता है । इसके साथ ही यह नमी अवशोषित नहीं करता । कुछ धर्मग्रंथों में ऐसा उल्लेख है कि प्राचीन भारत में इन कपूर के वृक्षों का रोपण तमिलनाडु राज्य में होता था ।
३ आ. चीनी कपूर
चीनी कपूर को ‘जापानी कपूर’ भी कहते हैं । यह कपूर चीन, जापान, कोरिया एवं फार्मोसा, इन देशों में पाए जानेवाले ‘सिनेमोमस कैम्फोरा’ वृक्ष से प्राप्त होता है । यह कपूर पानी में डूबता नहीं, अपितु उस पर तैरता है । इसके साथ ही वह नमी को भी अवशोषित करता है । वृक्षों के पत्ते, डालें एवं टहनियों को पानी में उबालकर, उर्ध्वपातन प्रक्रिया द्वारा यह कपूर प्राप्त किया जाता है । इन कपूर के वृक्षों का रोपण भारत के दक्षिण एवं पूर्व भागों के राज्यों में अत्यंत ही अल्प संख्या में किया जाता था । महाराष्ट्र में प्रमुखरूप से पश्चिम महाराष्ट्र में सातारा, सांगली, कोल्हापुर एवं पुणे, इन जिलों में चीनी कपूर के वृक्षों का रोपण किया हुआ पाया गया है । चीनी कपूर आयुर्वेद में उपयोग में लाया जाता है । उसे ‘पक्व कपूर’ भी कहते हैं ।
३ इ. पत्री कपूर
पत्री कपूर को ही ‘देशी कपूर’ भी कहते हैं । यह कपूर ‘ब्लुमिया बालसमीफेरा’, ‘ब्लुमिया डेन्सीफ्लोरा’ एवं ‘ब्लुमिया लैसेरा’ नामक वनस्पतियों से मिलता है । ये सभी वनस्पतियां भारत में पाई जाती हैं । ‘ब्लुमिया लैसेरा’ को ही भारतीय भाषा में ‘भांगरुडी’ अथवा ‘भुरांडो’, कहते हैं । यह वनस्पति महाराष्ट्र में सर्वत्र पाई जाती है । विशेषरूप से इन वनस्पतियों के पत्तों से कपूर प्राप्त करते हैं ।
३ ई. ‘भारतीय कपूर’
हा ‘लैमिएसी’ वर्ग की क्षूपवर्गीय वनस्पतियों से इसे प्राप्त करते हैं । ये वनस्पतियां प्रमुखरूप से भारत के जम्मू, देहरादून, कोलकाता, ओडिशा आदि राज्यों में पाई जाती हैं ।
४. कृत्रिम कपूर का उपयोग !
‘कृत्रिम कपूर’ यह ‘टर्पेंटाईन’ नामक रसायन पर प्रक्रिया कर बनाया जाता है । यह कपूर आयुर्वेदीय औषधियों में उपयोग में लाया नहीं जाता । पूजा के लिए भीमसेनी कपूर अत्यंत उपयोगी होता है; परंतु उसकी उपयोगिता ज्ञात न होने से वह अल्प मात्रा में पूजा के लिए उपयोग में लाया जाता है । इस कपूर का उपयोग प्रतिजैविक, फफूंदनाशक एवं कीटक परावर्तक के रूप में भी किया जाता है ।
५. चीनी कपूर के दुष्परिणाम !
भारत, कृषिप्रधान देश है । कपूर वृक्ष के लिए आवश्यक पोषक वातावरण, इसके साथ ही कपूर वृक्ष की भूमि, हवा, पानी एवं अन्य वृक्षों पर होनेवाला विशिष्ट दूरगामी परिणाम का अभ्यास अपने पूर्वजों ने किया होगा । आयुर्वेद में उपयोग में लाया जानेवाला ‘भीमसेनी कपूर’ एवं ‘चीनी कपूर’ विदेशी वृक्षों से मिलता है । ये कपूर आज भी आयात किए जाते हैं; केवल भारत में इन वृक्षों का रोपण अत्यल्प मात्रा में किया जाता है । चीनी कपूर वृक्षों का भारतीय वृक्ष परिसंस्था पर विपरीत परिणाम होता है । वर्तमान में चीनी कपूर के वृक्षों के पौधे अनेक रोपवाटिकाओं में उपलब्ध हैं । चीनी कपूर वृक्षों के विषय में प्रसारित संदेश एवं कपूर का धार्मिक महत्त्व के कारण अनेकों को लगता होगा कि हमारे पास भी यह वृक्ष होना चाहिए । इसलिए वर्तमान में चीनी कपूर वृक्षरोपों की बिक्री का व्यवसाय तेजी से बढ रहा है; परंतु विदेशी नीलगिरी, ग्लिरिसिडीया, सुरु, ऑस्ट्रेलियन बबूल/बाभूळ, विदेशी शमी समान अन्य भी विदेशी वृक्षों के रोपण के कारण निर्माण हुई अडचनें हम अब भी सहन कर रहे हैं । इसका भान वृक्षप्रेमी, पर्यावरणप्रेमी एवं किसान बंधुओं को रखना चाहिए ।
पक्षी चीनी कपूर वृक्षों के फल खाते हैं । उनकी विष्ठा से चीनी कपूर के वृक्षों के बीजों का प्रसार वेग से होता है । इन वृक्षों के बीजों के उगने की क्षमता प्रचंड है । इसके साथ ही वे वृक्ष किसी भी हवामान में डटे रहते हैं और फूलते-फलते हैं । इसलिए यह वृक्ष समय बीतने पर अन्य स्थानीय वृक्षों के लिए घातक होता है । इसका मुख्य कारण है चीनी कपूर वृक्षों की पतझड । पतझड से जब पत्ते भूमि पर गिरकर सडते हैं, तब उनमें विद्यमान कपूर का अंश मिट्टी में मिल जाता है । इससे अन्य वनस्पतियों के बीजों के अंकुरित होने की क्षमता एवं भूमि की ऊर्वरता नष्ट करता है । इसलिए अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया खंड के देशों में इन वृक्षों के रोपण पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाया गया है । कपूर के वृक्षों को नष्ट कर, उसे ‘उपद्रवी वृक्ष’ के रूप में घोषित किया है ।
६. भारतीय वृक्षों का रोपण करें !
भारतीय इस पर विशेष ध्यान दें और विदेशी वृक्ष एवं विदेशी वनस्पतियों के मोहजाल में न अटकें । सामाजिक जालस्थलों के माध्यम से प्रसारित होनेवाले अवैज्ञानिक संदेशों की बलि न चढ, चीनी कपूर के वृक्षों का रोपण जानबूझकर टालें । भारतीय वृक्षों का रोपण कर, स्थानीय जैवविविधता संपन्न एवं सुदृढ बनाकर, उसका जतन एवं संवर्धन करें ।’