अनुक्रमणिका
- १. सूक्ष्म कार्य की पहचान सभी प्राणियों को हो, तथा वाद्य से प्रक्षेपित शक्ति से सबको आनंद की प्राप्ति हो इस उद्देश्य से भगवान वाद्य का उपयोग करते हैं
- २. विविध देवताओं से संबंधित वाद्य के माध्यम से साधना करने से जीव उस देवता की अनुभूति ले सकता है
- ३. गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी के माध्यम से देहभान भूलकर नादब्रह्म की श्रेष्ठ अनुभूति ली
- ४. वादन में व्यंजन नहीं होते; केवल स्वर होने के कारण स्वर से उत्पन्न नाद लहरें ईश्वर के निर्गुण तत्त्व के समीप होती हैं
- ५. पश्चिमी और भारतीय वाद्यों का सूक्ष्म रूप में होनेवाला परिणाम
‘कला के माध्यम से साधना कर मानव को ईश्वर प्राप्ति करनी चाहिए’, इस उद्देश्य से ईश्वर ने विविध कलाएं दी हैं । विविध प्रकार के वाद्यों का भी इसमें समावेश है । ‘गायन, वादन और नृत्य इन तीनों का एकत्रित समावेश अर्थात संगीत’, यह संगीत की परिभाषा है । हम इस लेख में ईश्वर प्राप्ति हेतु विविध वाद्यों की होनेवाली सहायता देखेंगे ।
१. सूक्ष्म कार्य की पहचान सभी प्राणियों को हो,
तथा वाद्य से प्रक्षेपित शक्ति से सबको आनंद की प्राप्ति
हो इस उद्देश्य से भगवान वाद्य का उपयोग करते हैं
भगवान ने सृष्टि के पालन-पोषण की दृष्टि तथा संगीत के माध्यम से प्राणी को आवश्यक शक्ति प्रदान करने के लिए विभिन्न वस्तुएं और वाद्य निर्माण किए हैं । भगवान केवल शक्ति प्रक्षेपित कर सकते थे; किंतु सूक्ष्म रूप से होनेवाले कार्य की पहचान सभी जीवों को हो तथा प्रक्षेपित होनेवाली शक्ति का सबको आनंद मिले, इस उद्देश्य से उन्होंने वाद्य की निर्मिति की ।
२. विविध देवताओं से संबंधित वाद्य के माध्यम से
साधना करने से जीव उस देवता की अनुभूति ले सकता है
जिस देवता के हाथ में जो वाद्य है, उस वाद्य के माध्यम से उस देवता की अनुभूति आती है, उदा. सरस्वती देवी की वीणा, भगवान शिवजी का डमरू, श्रीकृष्ण की बांसुरी और देवर्षि नारद की वीणा.
३. गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी के
माध्यम से देहभान भूलकर नादब्रह्म की श्रेष्ठ अनुभूति ली
वाद्यस्वर के माध्यम से नादब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ अनुभूति का उत्तम उदाहरण है भगवान श्रीकृष्ण का बांसुरी वादन और गोपियों द्वारा बांसुरी के स्वर से ली हुई नादब्रह्म की अनुभूति ।
४. वादन में व्यंजन नहीं होते; केवल स्वर होने के
कारण स्वर से उत्पन्न नाद लहरें ईश्वर के निर्गुण तत्त्व के समीप होती हैं
साधना में पूर्णता प्राप्त करने के लिए निर्गुण निराकार ईश्वर से एकरूप होना आवश्यक है । वादन में केवल स्वर होने के कारण वे निर्गुण के सान्निध्य में अधिक होते हैं, नीचे की तालिका से यह स्पष्ट होता है :
गायन-वादन | शब्दों का प्रमाण | स्तर |
---|---|---|
१. विविध प्रकार का गायन, उदा. चलचित्र (सिनेमा), संगीत, भावगीत, भक्तिगीत इत्यादि | भाव, भावना व्यक्त करना आवश्यक होने के कारण शब्दों का प्रमाण अधिक होता है । | सगुण |
२. शास्त्रीय संगीत | गाते समय स्वरों की ओर अधिक ध्यान देना पडता है इस कारण शब्दों का प्रमाण कम होता है । | सगुण-निर्गुण |
३. वादन | शब्द न होकर केवल स्वर होते हैं । | निर्गुण |
उपरोक्त तालिका से ध्यान में आता है कि विविध प्रकार के गीत और शास्त्रीय संगीत में शब्दों का प्रमाण अधिक होता है । शब्दों में जडता होने के कारण सगुण अनुभूति आती है । वादन में शब्द न होने से कारण जडता नहीं होती इस कारण वादन के माध्यम से निर्गुण तत्त्व की अनुभूति अधिक प्रमाण में आती है ।
५. पश्चिमी और भारतीय वाद्यों का सूक्ष्म रूप में होनेवाला परिणाम
स्थूल रूप से भारतीय वाद्यों की अपेक्षा पश्चिमी वाद्य अधिक प्रगतिशील प्रतीत होते हैं किंतु सूक्ष्म रूप से देखने पर उसका परिणाम अच्छा नहीं होता । एक कार्यक्रम में इसका प्रयोग किया गया था ।
५ अ. सूर्योदय का वर्णन करने के लिए चार पश्चिमी वाद्यों
का उपयोग करने पर भी सूर्याेदय की अनुभूति न आना किंतु
केवल बांसुरी (भारतीय वाद्य) से सूर्याेदय की अनुभूति आना
सूर्योदय का वर्णन करने के लिए पश्चिमी पद्धति से सिद्ध किए गए चार वाद्यों का उपयोग करने पर भी सूर्योदय हो रहा है ऐसा अनुभव किसी को नहीं हुआ; इसके विपरीत केवल एक भारतीय वाद्य ‘बांसुरी’ बजाने पर ‘सूर्योदय हो रहा है’, ऐसा दृश्य आखों के सामने दिखाई दिया । ‘जैसे जैसे बांसुरी के स्वर प्रखर हो रहे थे, वैसे वैसे सूर्याेदय का स्तर धीरे धीरे बढ रहा है’ ऐसा प्रतीत हो रहा था । भारतीय संगीत ईश्वर को अपेक्षित तथा सत्य से संबंधित होने के कारण उससे इस प्रकार की अनुभूति आती है ।
हमें ऐसे समृद्ध भारतीय संगीत के माध्यम से साधना करने की अमूल्य संधि उपलब्ध हुई है । ‘जीवन का उद्धार करनेवाले संगीत तथा वादन कला के माध्यम से कला प्रेमी जीवों को प्रगति पथ पर आप ही ले जाएं; ’ ऐसी भगवान शिव और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरण कमलों को वंदन करते हुए प्रार्थना करते हैं ।
– कु. तेजल पात्रीकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१०.४.२०१७)