१. कुमारी
इस पूजामें फूल, फूलोंकी माला, घास, पत्ते, पेडकी छाल, कपासका धागा, हलदी, सिंदूर, कुमकुम इत्यादिका महत्त्व होता है । जो वस्तुएं छोटी बालिकाओंको भाती हैं; वे इस देवीको अर्पण करते हैं ।
२. रेणुका, अंबाबाई एवं तुळजाभवानी
ये जिनकी कुलदेवता होती हैं, उनके घर विवाह जैसी विधिके पश्चात देवीकी स्तुति करते हैं । उसी प्रकारसे जैसे कुछ लोगोंके यहां विवाह जैसे कार्य निर्विघ्न होने हेतु सत्यनारायणकी पूजा करते हैं अथवा महाराष्ट्रके कोंकण क्षेत्रके ब्राह्मण देवीको दूध, दही, मधु, रोटी, चावल मिलाकर बनाया गया खाद्यपदार्थ अर्पित करते हैं ।
३. अंबाजी
गुजरातमें अंबाजीके (अंबामाताके) मंदिरके दीपमें तेलका उपयोग नहीं करते । वहां घीका अक्षयदीप (अखंड) जलता रहता है ।
४. त्रिपुरसुंदरी
‘ये एक तांत्रिक देवता हैं । इनके नामपर एक पंथ प्रचलित है । उक्त पंथकी दीक्षा लेनेके उपरांत ही इस देवीकी उपासना की जाती है ।
५. त्रिपुरभैरवी
माना जाता है ‘ये एक तांत्रिक देवता हैं, जो धर्म, अर्थ व कामके तीन पुरुषार्थोंकी प्रदात्री हैं ।’ ये शिवलिंगका भेदन कर बाहर आई हैं । कालिकापुराणमें इसका ध्यान (वर्णन) किया गया है । भैरवीको त्रिपुरका प्रभावी रूप समझा जाता है । इनकी पूजा बाएं हाथसे करते हैं । इन्हें लाल रंग बहुत भाता है । रक्तवर्ण मदिरा, लाल फूल, लाल वस्त्र एवं सिंदूर इन्हें प्रिय हैं ।’
६. महिषासुरमर्दिनी
किसीमें देवीकी शक्ति सहन करनेकी क्षमता न हो, तो प्रथम शांतादुर्गा, फिर दुर्गाका और अंतमें महिषासुरमर्दिनीका आवाहन करते हैं । इससे देवीकी शक्ति सहन करनेकी क्षमता धीरे-धीरे बढने लगती है एवं महिषासुरमर्दिनीकी शक्ति सहनीय हो जाती है ।
७. काली
‘बंगालमें कालीकी उपासना प्राचीन कालसे प्रचलित है । पूर्णानंदजीका ‘श्यामारहस्य’ और कृष्णानंदजीका ‘तंत्रसार’, ये दो ग्रंथ सुप्रसिद्ध हैं । इस पूजामें सुरा (मद्य) अत्यावश्यक है । मंत्रद्वारा उसे शुद्ध कर उसका सेवन किया जाता है । कालीपूजा हेतु प्रयुक्त कालीयंत्रपर त्रिकोण, पंचकोण अथवा नौकोण बनाएं’, ऐसा ‘कालिकोपनिषद्’में कहा गया है । कभी-कभी इसे पंद्रह कोणोंका भी बनाते हैं । कालीपूजा कार्तिक कृष्ण पक्षमें, विशेषतः रात्रिके समय, फलद बताई गई है । इस पूजामें कालीस्तोत्र, कवच, शतनाम एवं सहस्रनामका पाठ विहित है ।’
८. कामाख्या
‘गुवाहाटीके कामाख्या मंदिरमें देवीकी मूर्ति न होकर मंदिरके भीतरवाली गुफामें एक पत्थरपर योनिकी आकृति उकेरी गई है । निकट ही एक झरना है, जिसके बहते हुए पानीसे यह पत्थर सदैव गीला रहता है । इस योनि प्रतीकपर ही फूल-पत्ते चढाकर उसकी पूजा करते हैं । योनिरूपी कामाख्या भूदेवी ही हैं ।’ (गंधकको पार्वतीका रज मानते हैं और पारेको शिवका वीर्य मानते हैं । आर्तव अर्थात स्त्रीबीज एवं असृज् अर्थात रक्त ।) आषाढ माहमें देवीके ऋतुधर्मके वार्षिक चार दिन, मंदिरके द्वार बंद कर सतत पूजा करते हैं । इसे ‘एकांतपूजा’ कहते हैं । तदुपरांत माहवारीके प्रतीक, लाल रंगके वस्त्र एवं उसके टुकडे भक्तोंको प्रसादके रूपमें देते हैं ।
९. चामुंडा
आठ गुप्ततर योगिनी मुख्य देवताके नियंत्रणमें विश्वका संचलन, वस्तुओंका उत्सर्जन, परिणाम इत्यादि कार्य करते हैं । ‘संधिपूजा’ नामक एक विशेष पूजा अष्टमी एवं नवमी तिथियोंके संधिकालमें करते हैं । यह पूजा दुर्गाके चामुंडा रूपकी होती है । उस रातको गायनवादन, खेलके योगद्वारा जागरण करते हैं ।
१०. दुर्गा
श्री दुर्गामहायंत्र श्री भगवतीदेवीका (दुर्गाका) आसन है । नवरात्रिमें दुर्गाके नौ रूपोंकी उपासना करते हैं ।
११. उत्तानपादा
यह मातृत्व, सृजन तथा विश्वनिर्मितिके त्रिगुणोंसे युक्त है । छिन्नमस्ता अथवा लज्जागौरी देवीकी मूर्ति पूजनेकी प्रथा प्राचीन कालसे चली आ रही है । मूर्तिकी पीठ भूमिपर तथा घुटने पूजककी ओर मुडे होते हैं । शिवपिंडीके नीचे स्थित अरघेकी (जलहरीकी) जैसी रचना होती है, उसी अवस्थामें यह भी पूजी जाती हैं । इसपर जलधाराका अभिषेक चढानेके उपरांत, जलके बहने हेतु एक मार्ग भी बनाया जाता है, जिसे ‘महाशिवके महाभगका महामार्ग’ कहते हैं ।
प्रणाम
हमारे घर के पास मां शीतला माता का मंदिर ही जो रोज पूजा होता है, आप हमें कुछ मार्ग दे जिजसे हम और लाभ l
नमस्कार श्री. विनोदजी,
हमें संपर्क करने के लिए धन्यवाद । आपके घर के पास शीतला माता का मंदिर है तथा आप उसका अधिकाधिक लाभ लेना चाहते है या सुनकर आनंद हुआ ।
माता की कृपा प्राप्त करने के लिए –
१. घर पर अथवा ऑफिस में हो तो, मंदिर में स्थित माता की शक्ति का लाभ हो इसलिए अधिकाधिक संख्या में भक्तिभाव से प्रार्थना करें – ‘हे मां, मुझे आपका चैतन्य दिन भर प्राप्त हो । उसके लिए आप ही मुझसे साधना हेतु प्रयास करवाकर लीजिए ।’
२. मंदिर में नियमित दर्शन हेतु जा सकते है ।
३. मंदिर में जाकर नामजप कर सकते है । मंदिर में चैतन्य तथा शांति अधिक होने से, ऐसे वातावरण में साधना करना आसान होता है और नामजप अधिक अच्छा होता है ।
४. मंदिर में अपनी क्षमता के अनुसार धन का त्याग अर्थात दान कर सकते है ।
५. मंदिर में अपनी क्षमता के अनुसार सेवा कर सकते है । जैसे स्वच्छता करना, कार्यक्रम आयोजित करना, मंदिर की पवित्रता बनाए रखना इत्यादी ।
देवालय में दर्शन करने की उचित पद्धति जान लें तथा अन्यों को भी बताएं –
https://www.sanatan.org/hindi/a/category/practicing-spirituality/ritualistic-worship/darshan-in-temple
देवी उपासना के विषय में पढें –
https://www.sanatan.org/hindi/a/category/hindu-dharma/hindu-deity/devi
जैसे आपको मंदिर का लाभ होने के लिए कुछ करना चाहिए ऐसे लगा, वैसे अन्य लोगों को भी भान होने के लिए प्रयास कर सकते है । उन्हें भी मंदिर का महत्त्व बता सकते है । इसके लिए मंदिर में अथवा मंदिर परिसर में सनातन के देवी की जानकारी देनेवाले फ्लेक्स लगा सकते है, सनातन के आध्यात्मिक ग्रंथ पढने अथवा खरीदने के लिए रख सकते है । सनातन के ग्रंथ http://www.SanatanShop.com पर उपलब्ध है ।
– सनातन संस्था