अन्न पर भारतीय संस्कार !
कुकर में चावल पकाने से वह चिपचिपा होता है । पानी चावल में रिसता है । चावल से दुगुना पानी लेकर कुकर में २५० सेंटीग्रेड तापमान पर १५ से २० मिनट पकाने पर क्या उसमें जीवनसत्व शेष रहेंगे ? एक ओर गैस की बचत होगी, किंतु दूसरी ओर डॉक्टर पर स्थायीरूप से अधिक व्यय करना पडेगा !
चावल पकाने की हमारी पारंपरिक पद्धति क्या है ? प्रथम चावल के १६ गुना पानी १०० सेंटीग्रेड पर उबालें । उसमें पहले से ही छलनी में धोए चावल डालें । उबलते पानी में ८ से १० मिनट चावल पकाएं और एक दाना निकालकर देखें कि वह भीतर से पक गया है अथवा नहीं ।
पक गया हो, तो अतिरक्त पानी निकालने के लिए चावल को छलनी पर निकालकर रखें । अर्थात चावल का माड निकाल दें और चावल पुनः पतीले में डालकर केवल ५० से ६० सेंटीग्रेड पर १० मिनट के लिए ढक्कन डालकर रख दें । चावल अच्छे से फूल जाते है । निकाला माड पीएं । पोषक अंश (आज की भाषा में, कार्बोहायड्रेटस्) इसमें भी हैं ! इस पद्धति के चावल में, चावल और माड मिलकर सभी जीवनसत्व जीवित रहेंगे ! संस्कार यथावत होने से चावल पचने में हलका और माड भी पचने में हलका ।
ऐसे माड निकाले चावल से पेट बडा नहीं होता और क्लेद बढानेवाला चिपचिपा भाग उचित समय पर अलग करने से शक्कर भी नहीं बढती । समुद्रतटीय क्षेत्र में भोजन में चावल अधिक मात्रा में ग्रहण किया जाता है; परंतु किसी का पेट बडा नहीं दिखता । इसके विपरीत कुकर में पकाए गए चावल प्रचलित होने के उपरांत पेट का मोटापा बढना आरंभ हो गया है और रक्तशर्करा भी बढने लगी है । अब बताएं, कुकर में पकाए चावल में और माड निकाले चावल में भूमि-आकाश समान भेद होगा या नहीं ? यही है, अन्न पर अग्नि का भारतीय संस्कार।
– वैद्य सुविनय दामले, कुडाळ, सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र.