अनुक्रमणिका
- २१. आचार्य देवव्रत एवं उनके सहयोगियों ने प्राकृतिक खेती पर किया कार्य
- २१ अ. हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक किसानों का संगठन बनाकर उनसे प्राकृतिक खेती करवा लेना
- २१ आ. आंध्रप्रदेश में प्राकृतिक खेती का अवलंब करने से पानी की न्यूनता वाले भागों में भी वर्ष में ३ – ३ फसल लेना संभव :
- २१ इ. कृषि शास्त्रज्ञों के लिए खेती पर शोध करवा लेना
- २१ ई. गुजरात में डांग जिला यह भारत का प्रथम १०० प्रतिशत प्राकृतिक खेती करनेवाला जिला घोषित होना :
- २२. प्राकृतिक खेती के कारण भारतीयों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होगा !
- २३. प्राकृतिक खेती में खरीदी गई जैविक (सेंद्रिय) खाद की आवश्यकता ही न होना
- २४. भैंस के अथवा विदेशी वंश की गाय के गोबर से जीवामृत बनना संभव नहीं !
- २५. अत्यंत अल्प खर्च में भारी मात्रा में भूमि की उर्वरता बढानेवाली प्राकृतिक खेती
- २६. भारतीय किसानों, भारतमाता को विषमुक्त करने के लिए प्राकृतिक खेती रूपी क्रांति में सम्मिलित हों !
रासायनिक अथवा जैविक कृषि नहीं, अपितु प्राकृतिक कृषि अपनाइए ! (भाग ३)
गुजरात में प्राकृतिक कृषि के विषय पर राष्ट्रीय परिषद संपन्न हुई । इस परिषद में गुजरात के मा. राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक कृषि पर अपने अनुभवकथन किए । उस भाषण से बनाए हुए लेख के इस अंतिम भाग में आचार्य देवव्रत एवं उनके सहयोगियों द्वारा प्राकृतिक कृषि के प्रसार के लिए किया कार्य अब देखेंगे !
२१. आचार्य देवव्रत एवं उनके सहयोगियों ने प्राकृतिक खेती पर किया कार्य
२१ अ. हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक किसानों का संगठन बनाकर उनसे प्राकृतिक खेती करवा लेना
गुजरात के मा. राज्यपाल आचार्य देवव्रत
‘आदरणीय राष्ट्रपति ने (राज्यपाल के रूप में) मुझ पर (आचार्य देवव्रत पर) हिमाचल प्रदेश का दायित्व सौंपा तब मैं खेती का अनुभव अपने साथ वहां ले गया । सेबों पर १५ – १६ रासायनिक छिडकाव हो रहा है, यह मैंने हिमाचल में देखा । जो फल स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए खाए जाते हैं, वे इस छिडकाव से विष बनते जा रहे थे । मैं लोगों के खेतों में जाता और किसानों को एकत्र करता । तब से हिमाचल में प्राकृतिक खेती विषयी अभियान आरंभ हो गया । २ वर्षाें में शासन का सहयोग लेकर मैंने ५० सहस्र किसानों को प्राकृतिक खेती अभियान के साथ जोडा । उस काल में जब मैंने इस विषय में प्रबोधन किया, तब डॉ. राजेश्वर चंदेल एवं श्री. राकेश कंवर (आय.ए.एस. अधिकारी), ये दोनों मेरे समर्थन में दृढता से खडे हुए और आश्वासन दिया कि हम इस राज्य में यह अभियान सफलतापूर्वक चलाएंगे । डॉ. राजेश्वर चंदेल शास्त्रज्ञ हैं । आजकल वे हिमाचल प्रदेश के नौनी के कृषि विद्यापीठ में शास्त्रज्ञ हैं । इस विद्यापीठ के शास्त्रज्ञों ने मेरे उपरांत भी यह परंपरा रुकने नहीं दी और आज हिमाचल प्रदेश में डेढ लाख से अधिक किसान और बागायतदार अर्थात बागायती (फल एवं वनस्पति के उत्पादनकर्ता) प्राकृतिक खेती कर रहे हैं । साथ ही उनकी संख्या तेजी से बढ भी रही है । प्राकृतिक खेती के कारण कितनों की उत्पन्न बढ गई है । पानी का उपयोग न्यून हो गया है । कितनों के ही शरीर पर रासायनिक औषधियों के छिडकाव से दुष्परिणाम हो रहे थे, वे सभी आज आनंदी हैं कि अब छिडकाव नहीं होगा ।
२१ आ. आंध्रप्रदेश में प्राकृतिक खेती का अवलंब करने से पानी की न्यूनता वाले भागों में भी वर्ष में ३ – ३ फसल लेना संभव :
आंध्रप्रदेश के मुख्य सचिव टी. विजयकुमार ने प्राकृतिक खेती के माध्यम से आंध्रप्रदेश के ५ लाख किसानों को जोडा । इस भाग में जहां पानी नहीं, वहां वे इस प्राकृतिक खेती से अब वर्ष में ३-३ फसल ले पा रहे हैं ।
२१ इ. कृषि शास्त्रज्ञों के लिए खेती पर शोध करवा लेना
आपको प्राकृतिक खेती का प्रकल्प देखकर आश्चर्य होगा कि ‘यह ऐसे कैसे हो सकता है ?’, ऐसा प्रश्न आपके मन में आ सकता है । (इन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए ही) हम इन प्रकल्पों में विविध शास्त्रज्ञों को, इसके साथ ही असंख्य किसानों को जोडा है । शास्त्रज्ञों द्वारा किए गए शोध के शोधनिबंध तैयार हैं ।
२१ ई. गुजरात में डांग जिला यह भारत का प्रथम १०० प्रतिशत प्राकृतिक खेती करनेवाला जिला घोषित होना :
कोरोना के काल में भी हमने गुजरात में २ लाख किसानों का संगठन किया । यहां किसानों के पास २ लाख देशी गाएं पहुंचाई और गुजरात राज्य का ‘डांग’ जिला यह भारत का पहला १०० प्रतिशत प्राकृतिक खेतीवाले जिले के रूप में घोषित करने का गौरव गुजरात राज्य में मिला है । इसलिए आज मैं बहुत संतुष्ट हूं ।
२२. प्राकृतिक खेती के कारण भारतीयों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होगा !
आज का दिन किसानों के, इसके साथ ही देश के लोंगों के जीवन में परिवर्तन करनेवाला होगा ! आज जागतिक तापमान वृद्धि का (ग्लोबल वार्मिंग का) हमारे समक्ष बडा आवाहन है । प्राकृतिक खेती द्वारा उससे मुक्ति होगी । आज पानी का बहुत बडा प्रश्न निर्माण हुआ है । आज पीने के पानी की बोतल लेकर घूमना पडता है । उससे भी छुटकारा मिलेगा । २० वर्ष पूर्व जैसे हम कहीं भी पानी पी सकते थे, वैसे अब होगा । जो देशी गाय केवल पूजा के लिए चित्रों में रह गई थी, उसे आज घर-घर में मान-सम्मान मिल रहा है । इससे लोगों का आरोग्य सुरक्षित रहेगा ।
२३. प्राकृतिक खेती में खरीदी गई जैविक (सेंद्रिय) खाद की आवश्यकता ही न होना
प्राकृतिक खेती में किसानों को कोई खर्च नहीं । इस प्राकृतिक खेती में जैविक (सेंद्रिय) खाद की आवश्यकता ही नहीं रहती । इससे खाद, उनके कारखाने इत्यादि का वर्तमान में जो विस्तार है, उसकी आवश्यकता ही नहीं रहेगी । किसानों को खाद के लिए बाजार जाने की आवश्यकता ही नहीं; इसलिए कि गाय उनके घर में ही होती है । गुड खेत में बनाया जा सकता है । खेत में दलहन की फसल तैयार की जाती है । मिट्टी तो होती ही है । इसके अतिरिक्त प्राकृतिक खेती में और कुछ भी नहीं लगता ।
२४. भैंस के अथवा विदेशी वंश की गाय के गोबर से जीवामृत बनना संभव नहीं !
प्राकृतिक खेती की मोहिम प्रामाणिकता से करनी चाहिए । इसमें गडबड की, तो गुण नहीं आएंगे । कोई कहेगा, ‘देशी गाय के स्थान पर भैंस अथवा जर्सीसमान विदेशी गाय का गोबर लें’; परंतु ऐसा करने पर अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेगा । खेती के लिए पूरक जीवाणु होना, यह गुणधर्म केवल और केवल देशी गाय के गोबर में है । अन्य किसी भी प्राणी की विष्ठा में यह गुणधर्म नहीं पाया जाता । हमने रास्ते में भटकनेवाली देशी गाय के गोबर की जांच करके देखा । हमें गोठे में बंधी हुई देशी गाय के १ ग्राम गोबर में ३०० करोड जीवाणु मिले, तो रास्ते पर भटकनेवाली गाय के १ ग्राम गोबर में ५०० करोड जीवाणु मिले; कारण भटकती गायों की शक्ति का उपयोग दूध बनाने के स्थान पर जीवाणु बनाने के लिए हुआ है । ‘नीमास्त्र’, ‘ब्रह्मास्त्र’, ‘सूंठास्त्र’ ये प्राकृतिक खेती में उपयोग में लाए जानेवाली कीटक प्रतिबंधक औषधियां हैं । कोई भी ये औषधियां स्वयं बना सकता है । इस विषय में मेरे ग्रंथ में जानकारी दी है ।
२५. अत्यंत अल्प खर्च में भारी मात्रा में भूमि की उर्वरता बढानेवाली प्राकृतिक खेती
मेरे अपने खेत में अब रोग नहीं । मेरी उत्पन्न बढ रही है । इस वर्ष मेरे पडोसियों ने रासायनिक खेतीद्वारा धान (चावल) की २८ से ३० कुंटल प्रति एकड उत्पन्न ली और मैंने प्राकृतिक खेती करके लगभग ३३ कुंटल प्रति एकड उत्पन्न ली । मेरा खर्च प्रति एकड केवल १ सहस्र रुपये आया और रासायनिक खेती में १२ से १४ सहस्र रुपये खर्च आया । यह केवल एक फसल के संदर्भ में नहीं, अपितु सभी फसलों के संदर्भ में ऐसा ही है । मेरी भूमि की गुणवत्ता बढ गई है । कृषि विद्यापीठ के शास्त्रज्ञों ने मेरे और पडोसी के खेतों की मिट्टी का परीक्षण किया । रासायनिक खेती करनेवाले पडोसी के खेत की मिट्टी में १ ग्राम में ३१ लाख जीवाणु पाए गए । इसके विपरीत प्राकृतिक खेती में मेरी भूमि की मिट्टी में १ ग्राम में १६१ करोड जीवाणु पाए गए । अब आप ही बताएं कि कौन-सी पद्धति अधिक उत्पन्न देगी ? प्राकृतिक खेती अथवा रासायनिक खेती ?
२६. भारतीय किसानों, भारतमाता को विषमुक्त करने के लिए प्राकृतिक खेती रूपी क्रांति में सम्मिलित हों !
इसीलिए मैं भारत के किसानों को आवाहन करता हूं । आदरणीय प्रधानमंत्री ने हम सभी के कल्याण के लिए प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने का एक बडा निर्णय लिया है । आप भी आगे आएं । आज ही प्राकृतिक खेती करके किसान स्वावलंबी हो गया, तो मेरा देश स्वावलंबी होगा । इससे बहुत बडी क्रांति होगी, इसकी मुझे निश्चिति है । इस अभियान को जनआंदोलन बनाने के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा करेंगे ! अपनी भारत माता की मिट्टी को विषमुक्त करेंगे ! धन्यवाद !
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