अनुक्रमणिका
हिमाचल प्रदेश के कुल्लु जिले में स्थित ‘मणिकर्ण तप्तकुंड’ के श्रीचित्शक्ति (सौ.) अंजली गाडगीळ ने दर्शन किए । इस दैवीय यात्रा का वृत्तांत प्रस्तुत है ।
श्रीचित्शक्ति (सौ.) अंजली गाडगीळ
१. कुलांतपीठ, देवताओं का निवासस्थान ! अर्थात देवभूमि हिमाचल स्थित कुल्लु !
गरम पानी युक्त मणिकर्ण कुंड एवं वहां की शिव मूर्ति
२. देवी पार्वती के कर्णभूषण का मणि जहां गिरा था वह स्थान, अर्थात मणिकर्ण का ‘तप्तकुंड’ !
२ अ. मणिकर्ण स्थान का इतिहास
शिव एवं पार्वती इस स्थान पर जब पहुंचे तब उन्होंने वहां कुछ काल रहने का निश्चय किया । पार्वती नदी के किनारे शिव ने ११ सहस्र वर्ष तपश्चर्या की । एक दिन पार्वतीमाता इस नदी में जलक्रीडा कर रही थीं । उनके कर्णभूषण का मणि पानी में गिर गया । शिव ने उस मणि को ढूंढने के लिए अपने शिवगणों को आदेश दिया; परंतु बहुत ढूंढने पर भी वह मणि नहीं मिला । तब शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोला । उससे नैनादेवी प्रगट हुईं । उन्होंने कहा, ‘‘देवी पार्वती के कर्णभूषण का मणि शेषनाग पाताल लोक ले गया है ।’’ तब शेषनाग के ध्यान में आया कि ‘अब मणि लौटाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं । उसने पाताल से फुफकारा । उसकी फुफकार से पृथ्वी पर गरम पानी के कुंड तैयार हो गए और वह मणि ऊपर आया । इस स्थान पर देवी के कर्णभूषण का मणि गिरने से इस स्थान का नाम ‘मणिकर्ण’ पडा । यहां अनेक स्थान पर गरम पानी के तप्त कुंड हैं ।
मणिकर्ण कुंड को नमस्कार करती हुईं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ
२ आ. यहां की विशेषता यह है कि मणिकर्ण में घर-घर में भूमि से ही गरम पानी आता है । इसलिए यहां किसी के भी घर में स्नान के लिए पानी गरम करने के साधन नहीं हैं ।
– श्री. विनायक शानभाग, कुल्लु, हिमाचल प्रदेश.
क्षणिकाएं
श्री. विनायक शानभाग
१. मणिकर्ण कुंड जाते समय, उससे लगभग २०० मीटर पहले श्रीराम का एक प्राचीन मंदिर है । ऐसा कहा जाता है कि श्रीराम की यह मूर्ति कुल्लु नरेश विश्वनाथ महाराज अयोध्या से लाए थे । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ने इस मंदिर में जाकर श्रीराम से ‘रामराज्य की स्थापना (हिन्दू राष्ट्र की स्थापना) शीघ्र से शीघ्र होने दें ।’, ऐसी प्रार्थना की ।
२. ‘मणिकर्ण कुंड के पानी से जोडों के दर्द जैसी व्याधियां दूर हो जाती हैं’, ऐसी अनेक लोगों को अनुभूतियां हुईं हैं ।
– श्री. विनायक शानभाग, कुल्लु, हिमाचल प्रदेश.
सनातन की श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ने अब तक लगभग ८ लाख से भी अधिक कि.मी. की यात्रा कर ऐसे प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन किए । इसलिए हमें इतिहास के गर्भ में छिपे दैवीय स्मृतियों के छायाचित्रमय दर्शन हो रहे हैं ! उसके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ के श्रीचरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता ! |