रामसेतु का तैरता पत्थर । इसका वजन ४ किलो का है, जबकि इसके साथ में रखे पत्थर कम वजन के होते हुए भी पानी में डूब गए ।
प्रभु श्रीरामकालीन सिक्के
तमिलनाडु राज्य के पूर्वकिनारे पर रामेश्वरम् तीर्थक्षेत्र है । रामेश्वरम के दक्षिण में ११ कि.मी. के अंतर पर धनुषकोडी नामक नगर (शहर) है । रामसेतु के इस ओर के भाग को धनुषकोडी (कोडी अर्थात धनुष्य का सिरा) कहते हैं; कारण साडे सत्रह लाख वर्षाें पूर्व रावण की लंका में (श्रीलंका में) प्रवेश करने के लिए श्रीराम ने अपने कोदंड नामक धनुष्य के सिरे से सेतु बांधने के लिए यह स्थान निश्चित किया । एक रेखा में बडे-बडे पत्थरों से युक्त टापुओं की शृंखला रामसेतु के भग्नावशेष के रूप में आज भी हमें देखने मिलती है । रामसेतु नल एवं नील नामक वानरों के वास्तुशास्त्र का एक अद्भुत नमूना है । इस रामसेतु की लंबाई उसकी चौडाई के १० गुना है, ऐसा विस्तृत वर्णन वाल्मीकि रामायण में है । प्रत्यक्ष में भी उसे नापने पर उसकी चौडाई ३.५ कि.मी, तो उसकी लंबाई ३५ कि.मी है । इस सेतु के निर्माणकार्य के समय गिलहरी के छोटे से सहभाग की कथा और पानी में तैरते हुए पत्थरों की बात हम सभी हिन्दुओं को पीढियों से ज्ञात है ।
स: ५१४० का सिक्का आजभी अवेलेबल है