राजस्थान के पाली जनपद में धरमदारी गांव में, पाली से १५ कि.मी.ऊपर पहाडी पर गाजणमाता का देवस्थान है । इस मंदिर की स्थापना १०५० वर्ष पूर्व हुई थी । मंदिर परिसर के आसपास १५ कि.मी.तक जंगल है । आषाढ शुक्ल पक्ष ९ (१३.७.२०१६)को यहां उत्सव हुआ था । इस निमित्त देवी गाजणमाता की महिमा इस लेख द्वारा प्रस्तुत कर रहे हैं ।
मंदिर का इतिहास
बहुत वर्ष पूर्व जोधपुर में राजा परिहारों का राज था । उनकी कुलदेवी चामुण्डा माता थी । अपने राजपुत्र के विवाह हेतु राजा ने देवी चामुण्डा से बारात में चलने की प्रार्थना की,तब देवी मां ने वचन दिया -मैं तेरे साथ चलती हूं । परंतु जहां मुझे कोई भक्त रोक देगा,मैं वहीं रुक जाऊंगी । बारात में जालोर जनपद के रमणीयां गांव के कृपासिंहजी भी अपनी १००० गायें लेकर आए थे । बारात जंगल से जा रही थी । साथ चल रहे रथ,घोडों और संगीत की ध्वनि से गायें डरकर भडक गईं । तब कृपासिंहजी ने गौमाता को पुकारा,हे मां !हे मां ! उसी क्षण मां चामुण्डा पहाड फाडकर अंतर्धान हुईं ! उसी दिन से गाजणमाता नाम प्रचलित हुआ । उस समय राजा के देवी मां से प्रार्थना करने पर मां ने कहा,अब मैं तुम्हारे साथ नहीं चलूंगी । अपने पुत्र के विवाह के पश्चात जहां तुम बंदनवार बांधने जाओगे वहां पीछे हटना क्योंकि बंदनवार बांधने के पश्चात छत गिर जाएगी । इससे तुम्हारी जान बच जाएगी । राजा ने विनम्रतापूर्वक मां से पूछा,इस सुनसान-घने जंगल में आपकी नित्य पूजा कौन करेगा ? मां ने कहा,जिस भक्त ने मुझे रोका है,वही मेरी पूजा करेगा । तभी से गाजणमाता की पूजा प्रारंभ हुई और उस गांव का नाम धरमदारी रखा । इसी प्रकार कृपासिंहजी के परिवार से यह पूजा आज तक संपन्न की जा रही है । जोगसिंहजी राजपुरोहितजी के पश्चात अब भंवरसिंहजी राजपुरोहितजी मां की पूजा-अर्चना करते हैं ।
भक्तों के निवास हेतु मंदिर में सुव्यवस्था
अ. दोनों नवरात्रि में यहां होमहवन और विशेष पूजा होती है । आषाढ मास की नवमी को गुजरात,राजस्थान से हजारों भक्त मां के दर्शन के लिए पैदल यात्रा कर अपनी मनोकामना मांगने आते हैं । पहाड पर जंगल में यह मंदिर होते हुए भी यहां अभी तक चोरी नहीं हुई।
आ. पहाड पर बसे मंदिर तक जाने के लिए पहाड के दोनों ओर से ३०० सीढियां हैं । ऊपर तक गाडी जाने की व्यवस्था भी अभी की गई है । भक्तों के निवास के लिए भी व्यवस्था उपलब्ध है ।
-श्री.भागीरथ सिंह राजपुरोहित,सिंहगड मार्ग,पुणे.
देवी मां को प्रसन्न करने के लिए…
देवी मां की उपासना के प्रत्येक कृत्य का एक शास्त्र है । आदिशक्ति श्री दुर्गादेवी एवं अन्य सर्व देवियों के पूजन से संबंधित सामान्य कृत्यों की जानकारी आगे दी है ।
विशिष्ट देवी को विशिष्ट फूल चढाने का अध्यात्मशास्त्रीय आधार
विशिष्ट फूलों में विशिष्ट देवता के पवित्रक, अर्थात उस देवता के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण आकर्षित करने की क्षमता होती है । ऐसे फूल जब देवता की मूर्ति पर चढाते हैं, तो मूर्ति को जागृत करने में सहायता मिलती है । चढाने हेतु उपयुक्त फूलों के नाम – श्री दुर्गा-मोगरा, श्री लक्ष्मी-गेंदा, श्री शारदा-रातरानी, श्री वैष्णोदेवीरजनीगंधा, श्री विंध्यवासिनी-कमल ।