महायुद्ध, भूकंप इत्यादि आपत्तियाें का प्रत्यक्ष रूप से सामना कैसे करें ? (भाग ८)

Article also available in :

इस लेख में भूस्खलन की जानकारी दी गई है । यद्यपि भूस्खलन सर्वत्र नहीं होता है, तब भी आगामी आपातकाल में पहाडी क्षेत्र में भूकंप के समान इस संकट का भी बडा परिणाम हो सकता है । भूस्खलन होने के कारण, उसकी विभीषिका, भूस्खलन का संकट टालने हेतु कुछ प्रतिबंधात्मक समाधान, भूस्खलन होने से पूर्व मिलनेवाली कुछ सूचना, भूस्खलन होते समय तथा होने के पश्चात क्या करना चाहिए आदि विषयों की जानकारी दी गई है ।

 

७. भूस्खलन

७ अ. ‘भूस्खलन’ शब्द का अर्थ

बडे पहाड अथवा छोटी पहाडी का भाग एकाएक उतार की दिशा में गिरने लगे, तो इसे ‘भूस्खलन’ कहते हैं । कभी यह घटना अति शीघ्र होती है, तो कभी उसे कुछ घंटे, दिन अथवा महीने भी लग जाते हैं । भूस्खलन होते समय अधिकतर पत्थर, मिट्टी, पानी तथा कीचड आदि का मिश्रण अति तीव्र गति से नीचे आता है ।

७ आ. भूस्खलन होने के कारण

७ आ १. नैसर्गिक

अतिवृृष्टि, शीघ्र बर्फ पिघलना, भूकंप, तूफान, ज्वालामुखी का विस्फोट, आग (वृक्षों के घर्षण अथवा तापमान की वृद्धि के कारण निर्माण हुई आग) जैसे अनेक कारणों से भूस्खलन हो सकता है ।

७ आ २. मानवनिर्मित

अ. भूभाग में मानव द्वारा प्रचुर मात्रा में खुदाई करने के कारण भूमि में कंपन होकर दरार निर्माण होती है ।

आ. सुरंग खोदते समय कभी-कभी विस्फोटक भी प्रयुक्त किए जाते हैं; इसके कारण भी भूमि हलकी हो जाती है ।

इ. अनेक बार निर्माणकार्य करते समय अमर्यादित वृक्ष काटने से भी भूस्खलन हो सकता है ।

७ इ. भूस्खलन के संकट की विभीषिका

भारत में सर्वाधिक भूस्खलन हिमालय के परिसर में कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में होता है । देश में प्रतिवर्ष भूस्खलन से लगभग ७०० लोगों की मृत्यु होती है । अभी कुछ दिन पूर्व का उदाहरण देखना हो, तो ३०.७.२०१४ को महाराष्ट्र के माळीण (तहसील आंबेगाव, जिला पुणे) गांव में भूस्खलन होने के कारण ७४ में से ४४ घरों के साथ १५५ से अधिक व्यक्ति तथा अनेक जानवर इत्यादि कुछ क्षणों में ही मिट्टी के ढेर के नीचे दब गए ।

७ ई. भूस्खलन का संकट टालने हेतु आयोजन करने के कुछ प्रतिबंधात्मक उपाय

१. ‘भूस्खलन टालने हेतु जिस क्षेत्र में भूस्खलन की संभावना है अथवा जहां इस प्रकार की घटनाएं पूर्व में हुई हैं, उस क्षेत्र में अधिकाधिक वृक्ष लगाएं । जिससे वे भूमि को दृढता से पकडकर रखें तथा भूस्खलन कुछ सीमा तक टाला जा सके । विशेष कर पहाडी क्षेत्र में बडे वृक्ष, तथा अन्य वनस्पति लगाएं ।

२. पानी का निकास होने के लिए जो संरक्षक दीवार हैं उनके छेद स्वच्छ रखें तथा पानी के नैसर्गिक निकास होने के मार्ग में परिवर्तन न करें । यदि वैसा किया, तो पानी बाहर निकलने का मार्ग न मिलने के कारण उसके दबाव से भूस्खलन का संकट निर्माण हो सकता है ।

३. उतार, किनारा एवं पानी का निकास होने के मार्ग पर निर्माणकार्य न करें । कचरा अथवा सामग्री संग्रहित कर न रखें, ऐसा करने पर भूस्खलन से वह खिसक सकता है तथा अधिक हानि हो सकती है ।

४. शीतकाल से पूर्व पहाडियों का उतार, संकटकारी चट्टानें इत्यादि का निरीक्षण करें तथा आवश्यक समाधान निकालकर भूस्खलन न हो, ऐसा प्रयास करें । इसके लिए संबंधित क्षेत्र के युवक, ग्रामसेवक तथा अनुभवप्राप्त किसानों की सहायता लें । ये लोग ऐसे चट्टानों के स्थान पर ध्यान रख कर कोई भी संकटकारी परिवर्तन ध्यान में आने पर ग्रामीण एवं संबंधित शासकीय तंत्रों को सतर्क एवं जागृत कर सकते हैं ।

७ उ. भूस्खलन होने से पूर्व मिलनेवाली कुछ सूचनाएं

‘प्रत्येक समय भूस्खलन की पूर्वसूचना मिलती ही है, ऐसा नहीं है । कभी-कभी पूर्वसूचना मिलती है; परंतु उसका अर्थ ध्यान में लेना महत्त्वपूर्ण है । यदि वैसा नहीं किया, तो पूर्वसूचना मिलने पर भी भूस्खलन से पूर्व की तैयारियां करना संभव नहीं होगा । कभी-कभी हमारे चारों ओर धीमी गति से आगे दिएनुसार परिवर्तन बडे भूस्खलन के कारण होते हैं । ऐसी नैसर्गिक सूचनाओं की ओर ध्यान दें ।

१. दरवाजे एवं खिडकियों का अचानक जकड जाना

२. घरों की नीव धंस जाती है । इसलिए कुछ मात्रा में घर भूमि के नीचे आ जाते हैं अथवा घरों में दरारें हो जाती हैं ।

३. भूमिगत वाहिनियों का (विद्युत, जल आदि) एकाएक अथवा अपनेआप टूटना

४. चट्टानों अथवा भूमि का एकाएक तडकना

५. नदी का पानी एकाएक गंदा हो जाना

६. वर्षा होते समय अथवा तुरंत रुकने पर नदी का पानी एकाएक अल्प होना

७. वृक्ष, बाड, खंभे, संरक्षक दीवार आदि का एक के पीछे दूसरे का झुकना

८. उतार पर भूपृष्ठभाग का ऊपर आना (सूजन आने के समान दिखाई देना)

९. भूमि पर नए झरने निर्माण होना’

संदर्भ : pocketbook-do-dont-1.pdf, pg76 तथा usgs.gov/natural-hazards/landslide-hazards/science/landslide-preparedness

७ ऊ. भूस्खलन होते समय यह करें !

१. ‘भूस्खलन के समय यदि अपनी दिशा में ढेर आ रहा है, तो मार्ग तथा पुल पार करना टालें तथा जितना संभव हो उतनी शीघ्रता से ढेर के मार्ग से दूर ऊंचे क्षेत्र में जाने का प्रयास करें । भूस्खलन होते समय ढेर गहरे क्षेत्र में संग्रहित होता है, इसलिए वहां तथा नदी के पास जाना टालें ।

२. एकाएक वृक्ष टूटने तथा पत्थर खिसकने की ध्वनि सुनाई देने पर तुरंत उतार अथवा गहरे क्षेत्र से दूर जाएं ।

३. यदि भूस्खलन के समय हमें उस क्षेत्र से निकलना संभव न हो, अथवा ‘ढेर के नीचे दब जाएंगे’, ऐसा प्रतीत होता हो, तो बडे टेबल अथवा उसके समान भारी वस्तु के नीचे छिपें । सर की रक्षा करने हेतु तकिया का उपयोग कर सकते हैं । खिडकी एवं दरवाजे के पास खडे रहना टालें ।’

७ ए. भूस्खलन के पश्चात ये करें !

१. ‘मिट्टी अथवा वस्तुओं को स्पर्श न करें तथा उनके ऊपर से न चलें । भूस्खलन से दबाव आने पर ऐसी मिट्टी तुरंत खिसक सकती है तथा उससे जीव हानि हो सकती है ।

२. बिजली का धक्का लगने की संभावना होने के कारण विद्युत तार अथवा खंभे से दूर रहें । संभव हो, तो संबंधित (विद्युत, जल आदि) विभागों से संपर्क कर भूस्खलन की सूचना दें । इसलिए विद्युत, जल आदि प्रवाह बंद होने से आगे की हानि टलेगी ।

३. उतार अथवा गहरे भाग से दूर जाएं ।

४. भूस्खलन से नदियां, झरने, कुएं इत्यादिे का पानी दूषित होने की संभावना होने से वहां के पानी का निर्जंतुकीकरण किए बिना पानी नहीं पीना चाहिए ।

५. जहां भूस्खलन हो गया हो, ऐसे क्षेत्र से दूर रहें । वहां एक के पीछे एक भूस्खलन होने अथवा बाढ आने की संभावना होती है । विशेषज्ञों द्वारा सुरक्षा की पुष्टि आने तक भूस्खलन हुए स्थान से दूर रहें ।

६. वर्षाऋतु में भूस्खलन के क्षेत्र में बाढ आने की संभावना होने से वहां मलबा डाल कर शीघ्रातिशीघ्र भूमि पूर्ववत करके वृक्ष लगाएं ।’

संदर्भ : pocketbook-do-dont-1.pdf (pg77 & 78)

Leave a Comment