तन-मन-धन अर्पित कर गुरुसेवा करनेवालीं,
साधकों को आध्यात्मिक स्तर पर आधार देते हुए मां की ममता
बरसानेवालीं पू.(श्रीमती)सुशीला मोदी भाभी की ध्यान में आई कुछ गुणविशेषताएं !
अन्य महिलाएं इस आयु में अपने नाती-पोतों में व्यस्त रहती हैं । अधिक से अधिक भजन,पाठ आदि में सहभागी होकर व्यष्टि अर्थात अपनी व्यक्तिगत साधना करती हैं । इसके विपरीत पू.मोदी भाभी सक्रिय धर्मप्रसार कर समष्टि साधना करते हुए ही व्यष्टि साधना भी उतनी ही गंभीरता से करती हैं ।
१. गृहकार्य में सहायता करना
श्रीमती सुशीला मोदीभाभी सेवा के लिए बाहर जाने से पहले प्रतिदिन विविध गृहकार्यों में अपनी बहुआें की सहायता करती हैं ।
२.सेवा का ही ध्यास होने से एक साथ अनेक सेवाएं करना
२ अ. प्रतिष्ठित परिवार की होने पर भी झोंककर गुरुसेवा करना
मोदीभाभी पाक्षिक सनातन प्रभात का वितरण करना,पाक्षिक के लिए विज्ञापन लाना,विद्यालयों में सनातन बहियां तथा क्रांतिकारियों की प्रदर्शनी पहुंचाने के लिए प्रयत्न करना,अधिकाधिक लोगों तक सनातन पंचांग पहुंचाना,ऐसी अनेक सेवाआें में निरंतर व्यस्त रहती हैं । माहेश्वरी समाज की महिलाआें को कुछ सामाजिक बंधन होते हैं,तब भी उनका अपनेआप को गुरुसेवा के लिए समर्पित कर देना प्रशंसनीय है ।
२ आ. दूर के गांव में अकेले जाकर प्रसार करना
अधिक आयु होने पर भी भाभी ने जोधपुर से बस यात्रा की है । कुछ घंटों की दूरी पर स्थित सोजत,भिलाडा,पाली आदि गांवों में वे प्रतिमाह मासिक वितरण,विज्ञापन लाना, संपर्क करना आदि सेवाआें के लिए जाती हैं ।
भाभी के केवल दूरभाष करने पर भी विज्ञापन देंगे, ऐसे अनेक लोग हैं । वे प्रत्येक सेवा ध्येय रखकर पूर्ण करती है । पिछले वर्ष गुरुपूर्णिमा विज्ञापन के लिए,१०० विज्ञापन का ध्येय रखा था,वह उन्होंने पूर्ण किया । इस वर्ष उज्जैन कुंभ तथा अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन हेतु बडी अर्पण राशी का ध्येय लिया था,वह भी उन्होंने पूर्ण किया ।
३. अंतर्मुख रहकर गलतियों का
निरीक्षण करना और तत्परता से क्षमायाचना करना
भाभी सेवा के साथ साधना के प्रति भी गंभीर हैं । अपनी चूकों का वे सूक्ष्म निरीक्षण करती हैं । सेवा पूर्ण होने पर वे अपनी क्या गलतियां हुईं ?और क्या प्रयत्न करने चाहिए? ऐसा भी बीच-बीच में पूछती हैं । अपनी सेवा में हुई गलतियां वे स्वयं भ्रमणभाष कर बताती हैं और गलतियों का उन्हें खेद होता है ।
४. नए सूत्र सीखने की लगन
इस आयु में भी उनकी सीखने की वृत्ति प्रशंसनीय है । कई बार उन्होंने हमसे कहा है कि,दृश्य-श्रव्य चक्रिका (वाडियो सीडी)कैसे लगानी है ?,प्रसार में जानकारी कैसे देनी चाहिए ?,यह आप मुझे बताइए,जिससे आप न होने से मुझे अडचन नहीं आएगी । भ्रमणभाष के एप पर दैनिक पढना सीखकर लिया ।
५. मां की ममता से साधकों की देखभाल करना
प्रसार के लिए गए हम सभी की वे अत्यंत प्रेम से देखभाल करती हैं । अन्य कहीं भी हमारी निवास अथवा भोजन व्यवस्था होने पर भी,हमें उसमें कोई अडचन न आए,इसकी ओर वे सदैव ध्यान देती हैं ।
प्रत्येक सेवा ईश्वर ने ही करवा ली है,ऐसा उन्हें मनःपूर्वक लगता है । उनकी बातों में कर्तापन प्रतीत नहीं होता है ।
६.विनम्रता
वे कोई भी सूत्र बताती है,चाहे वो किसी के विषय में ध्यान में आया,सीखने को मिला सूत्र हो,या फिर कोई चूक हो वे इतनी विनम्रता से बताती हैं कि वह सभी को सहजता से स्वीकार हो जाता है ।
७. घर की सब अडचनों की ओर वे साक्षीभाव से देखना
उनके पति की तबियत बहुत खराब होते हुए भी उन्हें,उनकी चिंता नहीं होती है । गुरुदेव सब देख रहे हैं,वे ही सब करनेवाले हैं,ऐसा उनका भाव रहता है ।
८. प्रतिकूल परिस्थिति में भी सकारात्मक रहना
प्रतिकूल परिस्थिति में भी सकारात्मक रहना एवं ईश्वर ने कैसे सहायता की, इसका ही विचार करना समाज में प्रसार के लिए जाने पर कितनी भी प्रतिकूल परिस्थिति क्यों न हो,तब भी वे उसका विचार नहीं करती हैं । इसके विपरीत ईश्वर ने प्रसार की सेवा में कैसे सहायता की,इसके विषय में ही वे चिंतन करती हैं । राजस्थान में सेवा करने में मुझे बाधा आ रही थी । तब पू.भाभी ने मुझे समझाया कि सकारात्मक रहकर प्रयास कैसे करना चाहिए । समाज में लोगों से संपर्क करते समय भी पू.भाभी का सतत प्रार्थना एवं नामजप चलता रहता है । सेवा पूर्ण होने पर उन्हें अत्यधिक कृतज्ञता लगती है ।
– श्री.आनंद जाखोटिया, श्री.गजानन केसकर, कु.पूनम चौधरी जोधपुर,राजस्थान तथा श्री.प्रणव मणेरीकर एवं कु.कृतिका खत्री, देहली सेवाकेंद्र (१०.७.२०१५)