औषधीय वनस्पतियों की संख्या अगणित है । ऐसे समय पर कौन-सी वनस्पति लगाएं ? ऐसा प्रश्न हमारे मन में निर्माण हो सकता है । प्रस्तुत लेख में कुछ महत्त्वपूर्ण औषधि वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ?, इस विषय में जानकारी दी है । ये वनस्पतियां रोपण करने के लगभग ३ महिने पश्चात औषधियों के रूप में उपयोग में लाई जा सकती हैं । आजकल आपातकाल में ध्यान में रखकर वृक्षवर्गीय वनस्पतियों के रोपण की अपेक्षा यदि ऐसी वनस्पतियों को प्रधानता दी जाए, तो हमें इन वनस्पतियों का तुरंत उपयोग हो सकता है । औषधि वनस्पतियों के पौधे सहजता से सर्वत्र उपलब्ध नहीं होते । इस समस्या पर उपाययोजना भी इस लेख से मिलेगी । पाठक इस लेख में दी गई वनस्पतियों के अतिरिक्त अन्य वनस्पतियां भी लगा सकते हैं ।
भाग ४ पढने के लिए यहां क्लिक करें – महत्त्वपूर्ण औषधीय वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ? भाग – ४
२२. पारिजातक
पारिजातक
२२ अ. महत्त्व
ज्वर एवं जोडों की वेदना के लिए पारिजातक का अच्छा उपयोग होता है । घर के समीप एक-आध पेड होना चाहिए ।
२२ आ. रोपण
इसकी टहनी से अभिवृद्धि की जा सकती है । फरवरी – मार्च माह में इसकी टहनी को रेत में गाढकर रखने से जून तक अच्छे रोप तैयार हो जाते हैं और फिर वर्षाकाल में उन्हें लगा सकते हैं ।
२३. बेल
बेल की छाल, पत्ते और फल का औषधियों में उपयोग होता है । शौच में आंव पडने पर बेलफल का मुरब्बा बनाकर खाने से लाभ होता है । पत्तों का रस रक्त में ‘हीमोग्लोबिन’ बढाने के लिए उपयुक्त है । इसलिए एक-आध पेड अपने आसपास होना चाहिए ।
२३ आ. रोपण
बेल के रोप खरीद सकते हैं । पेड पर से पककर नीचे गिरे बेलफल के बीज बोने पर अपनेआप ही रोप आ जाते हैं ।
२४. खस
१. खस का गुच्छ २. खस की जडें
२४ अ. महत्त्व
इसकी जडें अत्यंत सुगंधित एवं शीतल होती हैं । गर्मी के दिनों में इसका विशेष उपयोग होता है । खस की जडें मिट्टी को कसकर पकडे रहने से मिट्टी का कटाव (भू-क्षरण / soil erosion) रोकती हैं । खस की जडें धूप में सुखाकर, फिर उन्हें प्लास्टिक की थैली में डालकर कपडों की अलमारी में रखने से वह ५ – ६ वर्ष टिकती हैं । इससे कपडों को भी सुगंध आती है और हम जब चाहें तब खस का उपयोग भी कर सकते हैं ।
२४ आ. रोपण
खस के पौधे रोपवाटिका से खरीद कर ला सकते हैं । हरी चाय समान खस के भी गुच्छे होते हैं । किसी के पास खस का गुच्छा हो, तो जैसे हरी चाय के (रोप) निकालकर, उनका रोपण किया जाता है, वैसे ही खस के भी पौधे रोपण कर सकते हैं । खस जमीन में लगाने पर उसकी जडें खोदते समय वे टूटकर व्यर्थ जाती हैं । ऐसा न हो, इसलिए खस का रोपण प्लास्टिक की बोरियों में करें । इसके लिए २५ किलो अनाज की खाली बोरियां लें । उसके तले पर सडा हुआ गोबर डालें एवं रेतमिश्रित मिट्टी बोरियों में भरकर उसपर खस का पौधा लगाएं । नीचे गोबर होने से उसे लेने के लिए खस की जडें लंबी-लंबी बढती हैं और सामान्य तौर पर एक-डेढ वर्ष में बोरी भर कर खस की जडें मिलती हैं । खस की जडें निकालते समय वे मिट्टी सहित ही कुछ समय तक पानी में भिगोकर रखते हैं और फिर पानी को हिलाकर मिट्टी निकाल दी जाती है । इससे स्वच्छ जडें मिलती हैं ।
२५. अश्वगंधा
अश्वगंधा
२६ अ. महत्त्व
यह बैंगन की जाति की वनस्पति है । इसकी जडें शक्तिवर्धक हैं । यह अधिक उपयोग की जानेवाली औषधि है ।
२६ आ. रोपण
यह ६ माह की फसल है । वर्षा ऋतु के उपरांत धान की कटाई हो जाने के पश्चात अश्वगंधा की फसल तैयार कर सकते हैं । उसके लिए अलग से पानी की आवश्यकता नहीं होती, ओस ही काफी होती है । बीजों से इसका रोपण कर सकते हैं । भारी मात्रा में व्यावसायिक स्तर पर रोपण करना हो, तो ‘नागोरी’ जाति के अश्वगंधा के बीजों का उपयोग करें । इस जाति के पौधों की जडें अंगूठे समान बडी होती हैं । घरेलु स्तर पर रोपण करना हो, तो न्यूनतम २ से ४ पौधे लगाएं । घर के आसपास जगह हो, तो ५० से १०० पौधे लगाने पर ही उनका उपयोग होता है । फल लगने पर उनका रंग लाल हो जाता है और पत्ते गिरने लगते हैं । तब जडें खोदकर निकालें । जडों को धोकर, उन्हें सुखाकर उसका चूर्ण बनाकर रखें । फलों से मिलनेवाले बीजों से इस वनस्पति का पुन: रोपण कर सकते हैं । वनस्पति का ऊपरी भाग मवेशियों के लिए चारा के रूप में उपयोग होता है ।
२६. गेंदा
घर के आसपास गेंदे के पौधे होने से मच्छरों की समस्या न्यून होती है । घाव भरने के लिए गेंदे के रस का उपयोग होता है । फूलों की पंखुडियों को सुखाकर उसका उपयोग बीज के रूप में करते हैं ।
२७. उपलसरी (सारिवा अथवा अनंतमूल)
उपलसरी (सारिवा अथवा अनंतमूल)
२७ अ. महत्त्व
यह रक्तशुद्धि करनेवाली एक श्रेष्ट औषधि है । इसकी जडों का उपयोग औषधि के रूप में करते हैं । ये जडें अत्यंत सुगंधित होती हैं । इसके नित्य सेवन से गर्भाशय की गांठ को घुलने में सहायता होती है । यह वनस्पति कोकण में बहुत पाई जाती है; परंतु अब यह लुप्त होने के मार्ग पर है । जितनी अधिक मात्रा में संभव हो, यह वनस्पति लगाएं ।
२७ आ. रोपण
इस वनस्पति के पत्ते तोडने पर सफेद रंग का चीक आता है । कोकणी में इस वनस्पति को ‘दूधशिरी’ कहते हैं । पत्ते छोटे सिरवाले और हरे होते हैं । उन पर सफेद रंग की आडी-खडी रेखाएं होती हैं । इसकी जडें गहरी होती हैं । जडें खोदने पर मिलनेवाले पौधे घर में लगाएं । जहां कहीं भी ये पौधे मिलें, वहां से इसे खोदकर लाएं । इसके तने अथवा जडों के टुकडों से भी रोपण किया जा सकता है । २ वर्षाें के उपरांत उसकी जडें औषधिरूप में उपयोग में लाने हेतु तैयार हो जाती हैं ।’
संकलकश्री. माधव रामचंद्र पराडकर एवं वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. मार्गदर्शकडॉ. दिगंबर नभु मोकाट, सहायक प्राध्यापक, वनस्पतिशास्त्र विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे तथा प्रमुख निर्देशक, क्षेत्रीय सहसुविधा केंद्र, पश्चिम विभाग, राष्ट्रीय औषधि वनस्पति मंडल, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार. |
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘जगह की उपलब्धतानुसार औषधीय वनस्पतियों का रोपण’, ‘११६ वनस्पतियों के औषधीय गुणधर्म’ एवं ‘९५ वनस्पतियों के औषधीय गुणधर्म’
अधिक मात्रा में औषधीय वनस्पतियों के पौधे अथवा बीज मिलने का स्थान१. क्षेत्रीय सहसुविधा केंद्र, पश्चिम विभाग, राष्ट्रीय औषधीय वनस्पति मंडल, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार, द्वारा वनस्पतिशास्त्र विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे. संपर्क क्रमांक : ९०२१०८६१२५ इस केंद्र द्वारा किसानों को रोपण के विषय में विस्तृत मार्गदर्शन किया जाता है । डॉ. दिगंबर नभु मोकाट, सहायक प्राध्यापक, वनस्पतिशास्त्र विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे केंद्र, इस केंद्र के प्रमुख संचालक हैं । किसान औषधीय वनस्पतियों का रोपण करें, इस हेतु गत २० वर्ष महाराष्ट्र के विविध भागों में कार्य कर रहे हैं । २. औषधीय एवं सुगंधी वनस्पति शोध संचालनालय, बोरीयावी, गुजरात. (०२६९२-२७१६०२) यहां पर इस लेखमाला में दी हुई वनस्पतियों में से तुलसी, कालमेघ, शतावरी एवं अश्वगंधा जैसी वनस्पतियों का रोपण भारी मात्रा में रोपण करना हो, तो उसके बीज मिलते हैं । ग्वारपाठा (घृतकुमारी), मंडूकपर्णी (ब्राह्मी), हरी चाय, अडुलसा एवं गिलोय के पौधे भी यहां बडी मात्रा में खरीदे जा सके हैं । इच्छुक पाठक यहां संपर्क कर कुरियर द्वारा बीज की उपलब्धता के विषय में पूछताछ कर सकते हैं । इस स्थान पर उपलब्ध पौधे अथवा बीज के विषय में जानकारी आगे दी गई मार्गिका पर उपलब्ध है । https://dmapr.icar.gov.in/HeadPage/Pricelist.html ३. यदि अधिक मात्रा में औषधीय वनस्पति चाहिए, तो नीचे दिए गए स्थान पर भी मिल सकती हैं । संस्था के नाम के आगे कंस में उस संस्था का संपर्क क्रमांक दिया है । महाराष्ट्र के कृषि विद्यापीठ एवं उसके उपविभाग१. डॉ. बाळासाहेब सावंत कोकण कृषि विद्यापीठ, दापोली, जि. रत्नागिरी (०२३५८-२८२०६४) २. डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ, अकोला (०७२४-२२५८३७२) ३. सुगंधी एवं औषधीय वनस्पति, वसंतराव नाईक मराठवाडा कृषि विद्यापीठ, परभणी. (०२४५२- २३४९४०८) ४. अखिल भारतीय औषधीय सुगंधी वनस्पति एवं पानवेल शोध योजना, वनस्पति रोगशास्त्र एवं कृषि अणुजीवशास्त्र विभाग, महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी. (०२४२६-२४३३१५, २४३२९२) महाराष्ट्र की कुछ निजी रोपवाटिका (नर्सरी)१. कोपरकर नर्सरी, गवे, ता. दापोली, जि. रत्नागिरी. (०२३५८-२८२१६५/२६७५२१, ९४२२४३१२५८) २. इको फ्रेंडली नर्सरी, परंदवाडी, सोमटणे फाट्याजवळ, तालुका मावळ, जि. पुणे. (९४२२२२४३८४, ९२२५१०४३८४) ३. ए.डी.एस्. नर्सरी, कशेळे, कर्जत-मुरबाड रस्ता, जि. रायगड. ४. धन्वन्तरि उद्यान, पिंपळगाव उज्जैनी, जि. नगर. (९६७३७६९६७६) गोवा में औषधीय वनस्पतियां निम्न स्थानों पर उपलब्धगोवा के वनविभाग के ‘रिसर्च एंड युटिलायजेशन’ द्वारा औषधीय वनस्पतियों के रोपण को प्रोत्साहन दिया जाता है । इस विभाग की वालकिणी, सांगे एवं घोटमोड, उसगांव, फोंडा आदि स्थानों पर रोपवाटिकाएं हैं । इनमें से वालकिणी गांव की रोपवाटिका में भारी मात्रा में विविध छोटी औषधीय वनस्पतियों के रोप अल्प मूल्य में मिलते हैं । देवस्थान कमिटी, समाजसेवी संस्था आदि को गोवा के वनखाते के ‘वनमहोत्सव’ इस उपक्रम के अंतर्गत औषधीय वनस्पतियों का निशुल्क वितरण भी किया जाता है । गोवा के इच्छुक व्यक्ति औषधीय वनस्पतियों के रोपों के लिए गोवा के वनविभाग के ‘रिसर्च एंड युटिलायजेशन’ इस विभाग से संपर्क कर सकते हैं । संपर्क के लिए पताDy. Conservator of Forests, Research and Utilisation Division and CEO State Medicinal Plants Board Goa. Phone : 0832 – 2750099 |
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