औषधि वनस्पतियों की संख्या अगणित है । ऐसे समय पर कौन-सी वनस्पति लगाएं ? ऐसा प्रश्न निर्माण हो सकता है । प्रस्तुत लेख में कुछ महत्त्वपूर्ण औषधि वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ?, इस विषय में जानकारी दी है । ये वनस्पतियां रोपण करने के लगभग ३ महिने पश्चात औषधियों के रूप में उपयोग में लाई जा सकती हैं । आजकल आपातकाल में ध्यान में रखकर वृक्षवर्गीय वनस्पतियों के रोपण की अपेक्षा यदि ऐसी वनस्पतियों को प्रधानता दी जाए, तो हमें इन वनस्पतियों का तुरंत उपयोग हो सकता है । औषधि वनस्पतियों के पौधे सहजता से सर्वत्र उपलब्ध नहीं होते । इस समस्या पर उपाययोजना भी इस लेख से मिलेगी । पाठक इस लेख में दी गई वनस्पतियों के अतिरिक्त अन्य वनस्पतियां भी लगा सकते हैं
भाग १ पढें – महत्त्वपूर्ण औषधि वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ? भाग – १
७. निर्गुंडी
निर्गुंडी के पत्ते
७ अ. महत्त्व
यह वात पर रामबाण औषधि है । निर्गुंडी के पत्ते सेंकने (सिंकाई) के लिए उपयोग में लाए जाते हैं । ४ जनों के परिवार के लिए १ – २ पौधे होने चाहिए ।
७ आ. परिचय
इसके पत्ते बेल के पत्तों समान त्रिदल; परंतु लंबे होते हैं । पत्तों में विशिष्ट गंध होती है । इसके पत्ते मवेशी नहीं खाते । इसलिए गावों में अधिकांश खेतों की बाड (Fence) में ये लगाए जाते हैं । रास्ते के किनारे ये पेड कभी-कभी ही मिलते हैं । इसे नीले रंग के पुंकेसर (स्टेमन) आते हैं ।
७ इ. रोपण
टहनियों को लगाकर इसकी अभिवृद्धी कर सकते हैं । यह पौधा बाड (fence) को लगाएं ।
८. सहजन
सहजन के पेड पर लगनेवाली फलियां
८ अ. महत्त्व
सभी सहजन के पेड से परिचित हैं । सहजन के पत्ते, फूल, फलियों का उपयोग सब्जी एवं दाल बनाने में किया जाता है । स्वास्थ्य के लिए सहजन की सब्जी अच्छी होती है । आपातकाल में अन्न की सुविधा हो, इसलिए अधिकाधिक मात्रा में सहजन के पेड अपने आसपास लगाना अच्छा होगा । सहजन की छाल का भी औषधीय उपयोग है । सहजन में कैल्शियम इत्यादि खनिज भरपूर मात्रा में होते हैं ।
८ आ. रोपण
इसका रोपण बीजों से रोप (पौधे) बनाकर करते हैं । सहजन की फलियों के बीज बोने से पहले उन्हें गुनगुने पानी में रात भर भिगोकर रखें और सवेरे बोएं । ऐसा करने से रोप फलने की संभावना बढ जाती है । वर्षा ऋतु के आरंभ में इसका खूंटा भी (लाठी समान मोटी टहनी भी) लगाने पर उसमें जडें आकर पौधे तैयार हो जाते हैं । वर्षाकाल में रोपण करने पर खूंटा सड जाता है । इसलिए खूंटा लगाना हो, तो उसका रोपण वर्षाकाल आरंभ होने के पहले अथवा समाप्त हो जाने पर करें । लगाए गए खूंटों से १५ दिनों में जडें निकलती हैं ।
९. हरी चाय
९ अ. महत्त्व
वर्षाकाल में, इसके साथ ही ठंड के दिनों में सदा चाय के स्थान पर (बिना दूध के) हरी चाय लेना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है । इससे पेशाब साफ होती है । ज्वर हो, तो उतर जाता है । ४ जनों के परिवार के लिए २ से ४ हरी चाय के पौधे लगाएं ।
९ आ. रोपण
हरी चाय अनेक लोगों के पास होती है । जिनके पास है, उनसे मांगकर अपने घर में लगा सकते हैं । वर्षाकाल के आरंभ में हरी चाय के गुच्छे और उसकी जडों से आनेवाले नए रोपों को अलग-अलग कर लगाएं । नए रोप लगाते समय जड से बित्ता भर की दूरी पर पत्ते काटें । हरी चाय के गुच्छे को वर्षा ऋतु के पहले खोद कर उसे अलग-अलग कर यदि नहीं लगाया जाए, तो उनके सडने की संभावना होती है ।
१०. दूर्वा (दूब)
दूर्वा
१० अ. महत्त्व
यह वनस्पति अत्यंत शीतल है । इसलिए उष्णता के विकारों पर बहुत महत्त्वपूर्ण है । दूर्वा गर्भपात होने से रोकती है । बुरे स्वप्न आते हैं, तो दूर्वा का उपयोग होता है । घर के आसपास अधिकाधिक दूर्वा होनी चाहिए ।
१० आ. रोपण
वर्षाकाल में दूर्वा प्राकृतिकरूप से उगती है । इस दूर्वा को निकालकर जहां इसे पानी मिले, वहां लगाएं । दूर्वा के २ से ४ रोप लाकर लगाने से भी वह भारी मात्रा में फैल जाती है । वर्षाकाल के उपरांत दूर्वा को पानी न मिलने से वह मुरझा जाती है ।
११. पानबेल (पान के पत्तों की बेल)
११ अ. महत्त्व
वर्षाकाल के दिनों में भोजन के पश्चात पान का बीडा खाने से भोजन पचने में सहायता होती है । खांसी, कफ, पचनशक्ति मंद होना इत्यादि के लिए इसका उपयोग होता है । ४ जनों के परिवार के लिए एक बेल पर्याप्त है ।
११ आ. रोपण
बडी बेल की टहनी काटकर लगाने से यह पेड उग जाता है । यह बेल अनेक लोगों के पास होती है । इसके पौधे रोपवाटिका में बिकते हैं । बेल को आधार लगता है । इसलिए यह बेल सहजन, नारियल, सुपारी जैसे वृक्षों की जडों में लगाएं । इस बेल के लग जाने पर वह बहुत बढती है ।
१२. अपामार्ग
अपामार्ग
१२ अ. महत्त्व
आघाडा चूहे, बिच्छू, कुत्ते के विष पर, इसके साथ ही दांतों में वेदना पर भी रामबाण औषधि है । कहते हैं, बीजों को दूध में पकाकर उसकी खीर बनाकर खाने से भूख नहीं लगती । वजन कम करना अथवा बिना अन्न के रह पाएं, इसलिए इसका उपयोग हो सकता है । ‘प्रसूती (delivery) होते समय अपामार्ग की जडों को महिला की कमर में एवं केश में बांधने पर प्रसूती सहज होती है । प्रसूती के उपरांत बांधी गई जडें तुरंत निकालकर, उसे हलदी-कुंकू लगाकर विसर्जित करें, अन्यथा अपाय भी हो सकता है । पुराने लोगों का कहना है कि गर्भ में मृत बच्चा भी इस उपाय से प्रसूत हो जाता है ।’
१२ आ. पहचान
पहली वर्षा होने पर इसके रोप अपनेआप उगते हैं । वर्षाकाल के समाप्त होते-होते अपामार्ग को पुंकेसर आते हैं । ये पुंकेसर कपडों में चिपक जाते हैं । इसमें चावल समान बीज होते हैं ।
१२ इ. रोपण
वास्तव में ये खरपतवार (weeds) है । इसका रोपण करने की आवश्यकता नहीं होती; परंतु ऐन समय पर ढूंढना न पडे; इसलिए इसके कम से कम २ से ४ पौधे अपने घर अथवा उसके आसपास हों ।
संकलकश्री. माधव रामचंद्र पराडकर तथा वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. मार्गदर्शकडॉ. दिगंबर नभु मोकाट, सहायक प्राध्यापक, वनस्पतिशास्त्र विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे तथा प्रमुख निर्देशक, क्षेत्रीय सहसुविधा केंद्र, पश्चिम विभाग, राष्ट्रीय औषधि वनस्पति मंडल, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार. |
भाग ३ पढें… महत्त्वपूर्ण औषधीय वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ? भाग – ३