अनुक्रमणिका
१. सायनस
१. पुदिना का रस नाक में डालें ।
२. पुरानी से पुरानी सर्दी में अपामार्ग बीजों का कपडछन चूर्ण नाक में डालें ।
३. २४० मिलीग्राम कपूर, तुलसी के रस में घिसकर नाक में डालें ।
४. केसर को घी में कूटकर नाक में डालें ।
२. मधुमेह
गूलर के कोमल पत्तों का स्वरस मधु (शहद) सहित दें । उसके साथ जामुन के बीज एवं शिलाजीत दें ।
३. ज्वर (बुखार)
१. सर्व प्रकार के ज्वर
चिरायता, सोंठ एवं डिकामाली का अष्टमांश (१/८) काढा बनाकर दें । लेमन ग्रास देने पर पसीना आकर बुखार न्यून होता है ।
२. शीतज्वर
१० ग्राम जीरा करेले के रस अथवा पुराने गुड के साथ दें ।
३. विषमज्वर (मलेरिया)
सुदर्शन चूर्ण अथवा महासुदर्शन काढा, गिलोय, त्रिफला, धमासा एवं कडवी चिचडा (जंगली चिचोण्डा, कडवा परवर) का काढा बनाकर उसकी पाव मात्रा घी डालकर पानी उबलने तक गाढा करें । यह घी विषमज्वर एवं पीलिया में उपयोगी है ।
४. ठंडी लगकर ज्वर
चिरायता, सोंठ, कुटकी, छुहारे एवं कुडे की खाल का काढा बनाकर, उसमें मधु (शहद) डालकर पिएं ।
५. पित्तप्रधान ज्वर
सौंफ एवं सोंठ का काढा दें ।
६. वातप्रधान ज्वर
- चिरायता, नागरमोथा, खस, कटेरी (भटकटैया), बृहती, गिलोय, गोखरू, सोंठ, पृश्निपर्णी, शालिपर्णी एवं पुष्करमूल का काढा दें ।
- चिरायता, गिलोय, धनिया, चंदन, खस, पित्तपापडा एवं फालसा का काढा दें ।
- गम्हड की जडों का काढा दें ।
- गिलोय कूटकर रात्रि पानी में भिगोकर रखें और सवेरे वह पानी छानकर, उसमें शक्कर मिलाकर लें ।
- गिलोय, अनंतमूल, बला एवं शालपर्णी का काढा वातज ज्वर में लें ।
- गिलोय, सोंठ, नागरमोथा, हलदी, पीपली, दारूहल्दी एवं धमासा का काढा लें ।
- दर्भमूळ, बलामूळ एवं गोखरू का काढा शक्कर और शहद मिलाकर लें ।
७. कफप्रधान ज्वर
चिरायता, नीम, पीपली, सोंठ, कपूरकचरी, गिलोय शतावरी एवं बृहती का काढा लें ।
८. पुराना ज्वर
पिंपळी गुड के साथ लें ।
पिंपळी चूर्ण गिलोय का स्वरस मधु (शहद) के साथ लें ।
९. जीर्णज्वर (अनेक सप्ताह से आ रहा बुखार)
छुहारा, किशमिश, शक्कर एवं घी दूध में निकासी कर लें ।
१०. जीर्णज्वर एवं आमवात
३ ग्राम चिरायता २० मि लि. पानी में भिगोकर रखें । सवेरे कपडे से छानकर (कपडछन) उसमें १५० मि. ग्राम कपूर, २५० मि. ग्राम शलाजित एवं १ चम्मच शहद मिलाकर ७ दिन लें ।
(प्रतिकात्मक छायाचित्र)
४. सर्दी
रात को सोते समय बिना छिलकेवाले ताजे भुने हुए चने खाएं ।
सफेद प्याज काटकर सूंघें ।
१. पुरानी सर्दी
चित्रकहरितकी अवलेह दें ।
२. पीनस (सर्दी)
हरी चाय एवं पुदिना अथवा हरी चाय, दालचीनी एवं अदरक का काढा बनाकर, उसमें गुड डालकर लें ।
३. सर्दी, पडसे, बुखार (ज्वर)
हरी चाय, सोंठ एवं मिश्री का अष्टमांश गरम काढा लें ।
५. खांसी
- घृतकुमारी (एलोवेरा) का गुदा शहद या सेंधव और हल्दी के साथ पीसकर लें ।
- घृतकुमारी (एलोवेरा) का रस + अडुळसा के रस में पीपली एवं लौंग का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ दें ।
- खैर (खदिर) की अंदर की छाल ४ भाग, बेहडा २ भाग एवं लवंग १ भाग का चूर्ण शहद के साथ लें ।
१. कफप्रधान खांसी
पीपली, पीपली जड, सोंठ, बेहडा का अवलेह
२. सूखी खांसी
६ ग्राम अलसी के बीजों के चूर्ण में १०० मिलीलीटर पानी डालकर, उसे उबालकर उसमें शहद अथवा शक्कर मिलाकर लें ।
सूखी खांसी में कर्कटशृंगीका चूर्ण तेल सहित लें ।
३. खांसी और दमा
- पिंपली का चूर्ण शहद के साथ लें ।
- पुष्कर जड का चूर्ण शहद के साथ लें ।
- वंशलोचन का चूर्ण शहद के साथ लें ।
४. आवाज बैठना, खांसी एवं दमा
इन रोगों पर खजूर, मनुका एवं पिंपळी पीसकर उसे घी एवं शहद के साथ चाटें ।
५. काली खांसी
काकडशिंगी, मुलैठी, इलायची, स्वर्जिकाक्षार, काला नमक, देसी घी एवं शहद के साथ चाटें । कासविंद्या के पत्तों का रस, शहद के साथ बीच-बीच में चाटें ।
६. रक्तस्राव
- नाक से, गर्भाशय से, मूळव्याधि से रक्तस्राव, उलटी अथवा जुलाब से रक्तस्राव अथवा शरीर में कहीं भी रक्तस्राव हो रहा हो, तो गूलर के फलों का स्वरस लें ।
- मासिक धर्म, मूलव्याधि से अथवा जख्म से होनेवाला रक्तस्राव अधिक मात्रा में हो रहा हो, तो गिलोय का स्वरस गेरू शहद के साथ लें ।
७. सिर में वेदना
- बकुळी के फूलों का चूर्ण नाक में जोर से सूंघें ।
- बादाम एवं केशर गाय के घी के मक्खन में पीसकर, नाक में डालें अथवा बदाम की खीर पिएं ।
- जायफल घिसकर लेप बनाएं ।
- बादाम एवं कपूर को दूध में घिसकर, उनका लेप माथे पर लगाएं ।
- केशर घी में घिसकर उसे मलें अथवा नाक में डालें ।
१. अर्धशिशी
गुड एवं देसी घी एकत्र कर खाएं, दूध में तिल एवं वायविडंग पीसकर उसका लेप मस्तक पर लगाएं ।
२. सर्दी से सिर में वेदना
दालचीनी घिसकर गरम लेप लगाएं ।
८. पेट में वात (गैसेस)
- पिंपळी, पिंपळी की जड, अजवायन, चव्य से तैयार की गई कण्हेरी अर्थात सभी को भूनकर, उसे दरदरा पीसकर मिश्रण को पकाकर दें ।
- अरबी के पत्तों का रस दें ।
- गूलर के पके हुए फल सारक हैं और शरीर को पुष्टि देते हैं ।
९. मुंह में छाले आना
- जामुन के अथवा बबूल के अंदर की छाल कूटकर और उसे पानी में उबालकर, उससे गरारे करें ।
- गूलर की छाल के अथवा पत्तों के काढे के गरारे करें ।
- इमली के पत्ते मुंह में चबाएं और पत्तों के काढे के गरारे करें ।
- जीरा कूटकर, उसके पानी में चंदन घिसकर और उसमें पिसी हुई इलायची एवं फिटकरी डालकर गरारे करें ।
- मुलैठी (जेष्ठमध), नीलकमल, लोध्र एवं गाय के दूध से तैयार किए गए तिल के तेल को मुंह में लगाएं और नाक में डालें ।
- मुंह में छाले आने पर सफेद गुंज के पत्ते, कंकोल एवं मिश्री मुंह में चबाएं और बनी लार निगल लें ।
१०. वेदना की लहर उठना
डिकामाली, रेवाचिनी एवं ग्वारपाठा के पत्तों की गोंद को गरम पानी में पीसकर वेदनावाले स्थान पर लगाएं ।
११. पीठ, कमर और जोडों में वेदना
१० ग्राम कपूर ४० मिलीलीटर तिल के अथवा एरंडेल तेल में घिसकर, उससे वेदनावाले स्थान पर मालिश करें ।
१२. पचनसंस्था के विकार एवं उपाय
अ. पेट में वेदना (शूल)
- अजवायन एवं सौवर्चल गरम पानी के साथ लें ।
- कुल्थ उबालकर उसमें हींग, काला नमक एवं सोंठ का चूर्ण डालकर पिएं ।
आ. पेट में वेदना एवं अजीर्ण
चिरायता के गीले पत्तों का रस निकालें एवं उसमें काली मिर्च, हींग एवं सैंधव डालकर पिएं । धनिया एवं सोंठ का काढा दें ।
इ. अजीर्ण
पके हुए अनानास के पतले टुकडे कर उस पर काली मिर्च एवं सैंधव नमक को पीसकर उसका चूर्ण डालकर खाएं ।
ई. पेट फूलना
अजवायन का चूर्ण एवं गुड लें अथवा अजवायन एवं गुड का काढा पिएं । अजवायन, सोंठ, पीपली एवं जीरा का चूर्ण शहद के साथ लें ।
उ. भूख न लगना
अजवायन मुंह में रखें ।
ऊ. इसबगोल (अश्वगोल)
इसबगोल के बीज पानी में कुछ समय रखने पर उसके पानी अवशोषित कर लेने से वे फूल जाते हैं । उसे आधे कप पानी में थोडी देर रख लें और उसमें शक्कर मिलाकर पिएं ।
ए. मलावरोध, अतिसार
६ ग्राम चूर्ण दही के साथ लें । रक्ती आंव में गुलाबजल अनार के रस के साथ लें ।
ऐ. शौच (मल) कडक; परंतु चिपचिपा हो
इसबगोल ६ ग्राम एवं एरंडेल तेल २० मिलीलीटर एक कप दूध के साथ लें ।
ओ. मलावरोध
१० ग्राम इसबगोल पानी के साथ अथवा दूध के साथ लें ।
औ. आंव
अनेक दिनों से आंव हो रही है, तो पीपली मिर्ची का सूक्ष्म चूर्ण मठ्ठे में डालकर लें ।
अं. जुलाब
कुटजारिष्ट एवं इसबगोल देने से सर्व प्रकार के अतिसार (जुलाब) एवं प्रवाहिका नष्ट होती हैं ।
क. अतिसार एवं प्रवाहिका
६ ग्राम इसबगोल दें । इसबगोल मूत्राशय, श्वासमार्ग एवं जननेंद्रिय में जलन एवं दाह एवं शोथ कम करनेवाला और रक्तस्राव रोकनेवाला है । नींबू का रस पानी और शहद के साथ लें । इसबगोल कूटकर न खाएं ।
ख. कृमि
- पळसपापडी के बीज दूध में घिसकर पिलाएं अथवा ११ वायविडंग का चूर्ण नींबू के रस एवं शहद के साथ दें ।
- पीपली की जडें बकरी के मूत्र के साथ दें ।
ग. वायु एवं कृमि
इन पर पुदिना का रस दें । अपामार्ग एवं शिरीष, इन दोनों का स्वरस शहद के साथ दें । नीम के पत्ते हींग के साथ खाएं ।
घ. कृमि
काफी मात्रा में अनानास खाएं । करेले के पत्तों का अथवा फलों का रस लें ।