अनुक्रमणिका
- १. शहर के लोगों को मिट्टी के विषय में आनेवाली समस्याएं
- २. प्राकृतिक पदार्थाें का विघटन होकर बननेवाली ‘उपजाऊ मिट्टी (ह्यूमस)’
- ३. ‘उपजाऊ मिट्टी’ बनाने के लिए शहर में उपलब्ध साधन
- ४. सब्जियों के रोपण के लिए क्यारियां कैसे बनाने चाहिए ?
- ५. क्यारियों में प्राकृतिक कचरा बिछाकर उस पर सप्ताह में एक बार जीवामृत छिडकना
- ६. जीवामृत का महत्त्व
- ७. ‘घर-घर रोपण’ अभियान के अंतर्गत प्राकृतिक कचरे से क्यारियां बनाकर उसमें रोपण कीजिए !
- ८. सब्जियों का रोपण करते समय साधिका द्वारा अनुभव की गई ईश्वर की प्रीति
- अ. अरवी के ५ कंदों का रोपण करने पर सब्जी बनाने के लिए कई बार अरवी के पत्ते, साथ ही कई अरवी के कंद मिलना
- आ. मिट्टी के ढेर में अज्ञानवश शेष रहे हल्दी के एक कंद से आधा किलो हल्दी के कंद मिलना
१. शहर के लोगों को मिट्टी के विषय में आनेवाली समस्याएं
पेडों को आधार के लिए, साथ ही अन्नद्रव्य मिलने हेतु मिट्टी की आवश्यकता होती है । शहर के लोगों के सामने यह प्रश्न होता है कि ‘घर में रोपण करने के लिए मिट्टी कहां से लाई जाए ?’ शहर में मिट्टी मिलना कठिन होता है और मिली हुई मिट्टी उपजाऊ होगी ही, ऐसा कहा नहीं जा सकता । घर का रोपण अधिकांश बरामदे में किया जाता है । मिट्टी भारी होने से उसे उठाकर ले जाना कठिन होता है, साथ ही बरामदे को भी मिट्टी का वजन सहना पडता है ।
२. प्राकृतिक पदार्थाें का विघटन होकर बननेवाली ‘उपजाऊ मिट्टी (ह्यूमस)’
सूखी घास, विघटनशील कचरा, पत्तों का कचरा, नारियल की शिखाएं, रसोईघर का गीला कचरा, इन सभी का विघटन कर हम पेडों के लिए आवश्यक ‘उपजाऊ मिट्टी’ बना सकते हैं । ऐसे प्राकृतिक पदार्थाें का विघटन होकर जो ‘मिट्टी’ बनती है, उसे अंग्रेजी में ‘ह्यूमस’ कहते हैं ।
३. ‘उपजाऊ मिट्टी’ बनाने के लिए शहर में उपलब्ध साधन
‘ह्यूमस’ तो पेड के लिए अन्नद्रव्यों की खान है । शहर की सोसाइटियों में जो बडे पेड होते हैं, उन पेडों का कचरा सहजता से उपलब्ध हो सकता है । आम की ऋतु में आम के पिटारों में से सूखी हुई घास मिलती है । घर में उपलब्ध विघटनशील कचरा, साथ ही नारियल की शिखाएं इन सभी का उपयोग कर हम उत्तम गुणवत्तावाला ‘ह्यूमस’ बना सकते हैं ।
४. सब्जियों के रोपण के लिए क्यारियां कैसे बनाने चाहिए ?
घर पर ही रोपण करने हेतु जिस क्षेत्र में दिनभर में न्यूनतम ३-४ घंटा धूप मिलती है, ऐसी भूमि का चयन करें । (सब्जियों के रोपण के लिए जितनी अधिक धूप मिलेगी, उतना अच्छा रहता है) इस स्थान पर रोपण के लिए गमले रखने चाहिएं अथवा ईंटों की क्यारियां बना लेनी चाहिएं । क्यारियों की चौडाई को २ फीट तक ही रखनी चाहिए । ऐसा करने से हमें क्यारियों में रोपण करना सरल होता है । घर की खिडकियों में जहां धूप होती है, ऐसे स्थानों पर भी क्यारियां बनाई जा सकती हैं । एक ईंट की जितनी चौडाई होती है, उतनी ऊंचाईवाले अर्थात लगभग ४ इंच ऊंचाईवाली क्यारियां पर्याप्त होती है । ऐसा करने से अटारी को मिट्टी का भार नहीं होता । ‘सुभाष पाळेकर प्राकृतिक खेती’ के तंत्र में पेड को बहुत अल्प पानी देना पडता है; इसके कारण क्यारियों के नीचे प्लास्टिक बिछाने की आवश्यकता नहीं पडती; परंतु तब भी पानी के नीचे रिसने की संभावना लगती हो, तो भूमि पर प्लास्टिक बिछाकर उन पर ईंटों की क्यारियां बनानी चाहिए । (ईंटों की क्यारी कैसे बनानी चाहिए, इसका वीडियो सनातन के जालस्थल पर दिया गया है । उसकी लिंक नीचे की चौखट में दी गई है ।)
५. क्यारियों में प्राकृतिक कचरा बिछाकर उस पर सप्ताह में एक बार जीवामृत छिडकना
हम जिनमें रोपण करनेवाले हैं, उन गमलों या ईंटों की क्यारियों में सूखा हुआ प्राकृतिक कचरा (उदा. नारियल की शिखाएं, सूखी घास, पत्तों का कचरा) बिछाकर उसे दबाएं । उपलब्ध हो, तो उस पर थोडीसी मिट्टी फैलाएं । मिट्टी न डालें तो भी चलेगा; परंतु मिट्टी डालने से कचरे का तुरंत विघटन होता है । उस पर रसोईघर में उपलब्ध गीले कचरे का १ इंच मोटाई का स्तर भी दिया जा सकता है; परंतु गीले कचरे का स्तर १ इंच से अधिक न हो; क्योंकि ऐसे में दुर्गंध फैल सकती है । देसी गाय के गोबर में प्राकृतिक कचरे का विघटन करनेवाली जीवाणु होते हैं । इस गोबर से ‘जीवामृत’ नाम का पदार्थ बनाया जाता है ।
यह जीवामृत बनाकर उसे १० गुना पानी में मिलाकर इस कचरे पर छिडकने से इस कचरे का शीघ्रता से विघटन होता है और इस कचरे से रोपण हेतु उपयुक्त ‘ह्यूमस’ तैयार होता है । ‘जीवामृत’ कैसे बनाया जाता हौ, इसका विस्तृत वीडियो सनातन के जालस्थल पर दिया गया है । प्रत्येक सप्ताह में जीवामृत बनाकर उसे १० गुना पानी में मिलाकर उसका इस कचरे पर एक बार छिडकाव करें । प्रतिदिन सवेरे-सायंकाल गमलों और क्यारियों में स्थित कचरे पर पानी छिडककर वह गीला रहे, इस पर ध्यान दें; परंतु बहुत पानी न डालें । (‘जीवामृत’ बनाकर उसका उपयोग करना आदर्श है; परंतु कुछ कारणवश जीवामृत बनाना संभव नहीं हुआ, तो केवल सवेरे-सायंकाल पानी का छिडकाव करें । घर के जूठे बरतनों को धोकर मिलनेवाले पानी का भी इस कचरे पर छिडकाव किया जा सकता है; परंतु उसमें साबुन नहीं होना चाहिए ।)
६. जीवामृत का महत्त्व
‘जीवामृत’ पेडों को मिट्टी से अन्नद्रव्य उपलब्ध करानेवाले जीवाणुओं का मोरन (कल्चर) है । प्राकृतिक कचरे का शीघ्रता से विघटन कर उसमें विद्यमान अन्नद्रव्यों को पेड को उपलब्ध करा देनेवाले असंख्य जीवाणु देसी गाय के गोबर में होते हैं । पद्मश्री सुभाष पाळेकर ने इन जीवाणुओं की कई गुना वृद्धि करानेवाला एक पदार्थ बनाकर उसे ‘जीवामृत’ नाम दिया है । जीवामृत के कारण प्राकृतिक कचरे का शीघ्रता से विघटन होता है और कचरे को दुर्गंध भी नहीं आती । ‘सुभाष पाळेकर प्राकृतिक खेती’ तंत्र का ‘जीवामृत’ मुख्य आधार है । अतः नियमित रूप से जीवामृत बनाने का नियोजन करना चाहिए ।
७. ‘घर-घर रोपण’ अभियान के अंतर्गत
प्राकृतिक कचरे से क्यारियां बनाकर उसमें रोपण कीजिए !
इस लेख में रोपण की जो पद्धति दी गई है, वह हम आते-जाते कर सकें ऐसी सरल है । इसके लिए दिन में केवल १५-२० मिनट निकालकर सभी स्मरणपूर्वक यह रोपण करें । आरंभ में प्राकृतिक कचरे का विघटन होकर मिट्टी बनने में थोडा समय लगता है; परंतु एक बार यह मिट्टी बनकर तैयार होती है, तब हम उसमें हमारे लिए आवश्यक सब्जियों का नियोजनबद्ध रोपण कर घर पर ही सब्जियां लगाकर खा सकते हैं ।’
– एक कृषि विशेषज्ञ, पुणे, महाराष्ट्र (८.१२.२०२१)
८. सब्जियों का रोपण करते समय साधिका द्वारा अनुभव की गई ईश्वर की प्रीति
हम पिछले डेढ वर्ष से आपातकाल की तैयारी के रूप में छत पर सब्जियों का रोपण कर रहे हैं । इसमें मिलनेवाले विविध अनुभव प्रकृति के संदर्भ में नई बातें सिखानेवाले, आनंद देनेवाले, साथ ही प्रकृतिरूपी भगवान के प्रेम का अनुभव करानेवाले हैं ।
अ. अरवी के ५ कंदों का रोपण करने पर
सब्जी बनाने के लिए कई बार अरवी के पत्ते, साथ ही कई अरवी के कंद मिलना
जिसे हम ‘अरवी’ के नाम से जानते हैं, बाजार में मिलनेवाले उस अरवी के ४-५ कंद हमने छत पर लगाए थे । इस वर्ष की संपूर्ण वर्षा ऋतु में हम इन ४ पौधों की कई बार पतली सब्जी बना सके । बडा हुआ पत्ता निकालने पर उसमें पुनः नए पत्ते आते रहते हैं । लगभग अक्टूबर महिने में धीरे-धीरे यह पौधा सूखने लगता है अथवा वर्षा ऋतु की भांति बहुत पत्ते नहीं आते । पौधों के नीचे भूमि में इसके कंद अपनेआप तैयार होते हैं । इन पौधों को ‘खाद-पानी’ देने जैसा कोई भी ध्यान रखना नहीं पडता । अब हमने इन चारों पौधों को उखाडकर उसके कंदों को अलग किया । उनका वजन १ किलो ३०० ग्राम मिला । (छायाचित्र १ देखिए)
ये कंद अत्यंत पौष्टिक और स्वादिष्ट होते हैं । पत्तों की भांति कंद को भी थोडीसी खुजलाहट होने से उन्हें पकाते समय उसमें इमली डालते हैं । इन कंदों को उबालकर खाया जा सकता है, साथ ही आलू जैसी सब्जी और भरता भी अच्छा होता है । वर्षा ऋतु आरंभ होने से पूर्व लगभग मई महीने में इसका रोपण किया जा सकता है ।
आ. मिट्टी के ढेर में अज्ञानवश शेष रहे हल्दी के एक कंद से आधा किलो हल्दी के कंद मिलना
छत पर एक कोने में मिट्टी का एक अतिरिक्त ढेर था । उसमें अज्ञानवश यह हल्दी का कंद रहा होगा । वर्षाऋतु आरंभ होने पर उससे हल्दी का एक पौधा अपनेआप उग गया । नवंबर महीनेतक वह वर्षा की पानी पर बढता चला गया । हमने उसका कोई ध्यान नहीं रखा । अब उस पौधे को उखाडकर नीचे जो हल्दी के कंद मिले, उसका वजन आधा किलो मिला ।
– श्रीमती राघवी मयुरेश कोनेकर, ढवळी, फोंडा, गोवा. (७.१२.२०२१)
घर में प्राकृतिक पद्धति से रोपण किस प्रकार करें, इस विषय में विस्तृत जानकारी हेतु निम्न लिंक देखें !
https://www.sanatan.org/hindi/a/34832.html (सीधे इस लिंक पर जाने के लिए साथ में दिया ‘QR कोड’ (टिप्पणी) ‘स्कैन’ करें !)
क्यूआर कोड (QR Code) क्या है ?
‘QR कोड’ अर्थात ‘Quick Response कोड’। आजकल सभी ‘स्मार्ट फोन’ में ‘QR कोड स्कैनर’ प्रणाली (एप) उपलब्ध होती है । (उपलब्ध न हो, तो ‘डाउनलोड’ कर सकते हैं ।) यह प्रणाली आरंभ कर ‘स्मार्ट फोन’ के छायाचित्रक (कैमरे) को ‘QR कोड’ पर केंद्रित करने पर, अपनेआप ‘कोड’ ‘स्कैन’ होता है और ‘स्मार्ट फोन’ में जालस्थल (वेबसाइट) की लिंक अपनेआप खुलती है । उसका टंकण (‘फीडिंग’) नहीं करना पडता ।