अनुक्रमणिका
- १. बडी मात्रा में प्राणवायु मिलना
- २. तारे होने तक उठना चाहिए
- ३. अपानवायु का कार्य सुलभता से होना
- ४. ब्राह्ममुहूर्त पर शरीर से बाहर नवद्वारों द्वारा गंदगी बाहर निकाल देने का महत्त्व
- ५. ब्राह्ममुहूर्त पर स्नान करने का महत्त्व
- ६. मस्तिष्क में स्मरणशक्ति सहित अन्य शक्ति केंद्र जागृत होना
- ७. ब्राह्ममुहूर्त पर शरीरशुद्धी करने की आवश्यकता
- ८. साधना करने से सप्तचक्र जागृत होना
- ९. पुण्यात्मा एवं सिद्धात्माओं से मार्गदर्शन मिलना
ब्राह्ममुहूर्त यह सवेरे ३.४५ से ५.३० तक ऐसे दो घंटों का होता है । इसे रात्रि का ‘चौथा प्रहर’ अथवा ‘उत्तररात्रि’ भी कहते हैं । इस काल में अनेक बातें ऐसी होती रहती हैं कि जो दिनभर के काम के लिए लगनेवाली ऊर्जा करती हैं । इस मुहूर्त पर उठने से हमें एक ही समय पर ९ लाभ मिलते हैं ।
ब्राह्ममुहूर्त
१. बडी मात्रा में प्राणवायु मिलना
इस काल में ‘ओजोन’ नामक वायु पृथ्वी के वातावरण की सबसे निचली सतह में अधिक प्रमाण में आई होती है । ओजोन में मानव को श्वसन के लिए आवश्यक प्राणवायु (ऑक्सिजन) भारी मात्रा में होती है । इसलिए इस काल में उठकर दाईं नासिका से गहरी दीर्घ सांसें लेने पर रक्तशुद्धि होती है । रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बढने से हीमोग्लोबिन में सुधार होता है । इसलिए ९० प्रतिशत रोगों से मुक्ति मिलती है ।
२. तारे होने तक उठना चाहिए
इस काल में मंद प्रकाश होता है । आंखें खोलने पर एकदम तेज प्रकाश आंखों पर पडने से कुछ समय तक हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता । ऐसा बार-बार होते रहने से आंखों में विकार आना आरंभ हो जाता है और दृष्टि क्षीण हो सकती है । वैसा न हो, इसके लिए तारे होने तक उठ जाना चाहिए ।
३. अपानवायु का कार्य सुलभता से होना
इस काल में पंचतत्त्वों में से वायुतत्त्व अधिक मात्रा में कार्यरत होता है और मानवी शरीर में अपानवायु कार्यरत होती है । अपानवायु मलनिःसारण एवं शरीरशुद्धि का कार्य करती है । इस वायु के कार्यरत रहते हुए मल बाहर निकालने का कार्य सहजता से हो सकता है । जोर लगाने की आवश्यकता पडने से धीरे-धीरे मूलव्याध होने की संभावना होती है । मूलव्याध न हो और उत्तम शरीरशुद्धि हो, इस हेतु इसी काल में मलनिःसारण करना चाहिए, इसके साथ ही इस समय बडी अंतडियों में ऊर्जा कार्यरत होती है ।
४. ब्राह्ममुहूर्त पर शरीर से बाहर नवद्वारों द्वारा गंदगी बाहर निकाल देने का महत्त्व
अपने शरीर में दिनभर एकत्र हुई गंदगी ९ स्थानों से बाहर निकलती है । २ आंखें, २ नासिकाएं, २ कान, १ मुंह, १ मूत्रद्वार और १ गुदद्वार, ऐसे इन ९ स्थानों को नवद्वार कहते हैं । रात को इन ९ स्थानों पर गंदगी जमा हो जाती है । इस गंदगी में अनेक जीवाणु और विषाणु होते हैं, जो रोग उत्पन्न कर सकते हैं । ये जीवाणु और विषाणु को यदि सूर्यप्रकाश मिल जाए तो वे भारी मात्रा में बढ सकते हैं और हम बीमार पड सकते हैं । ऐसा न हो, इसलिए ब्राह्ममुहूर्त पर उठकर यह गंदगी शरीर से बाहर निकाल देनी चाहिए ।
५. ब्राह्ममुहूर्त पर स्नान करने का महत्त्व
सूर्योदय के पहले ब्राह्ममुहूर्त पर स्नान करने से त्वचा के रंध्र खुल जाते हैं । इससे शुद्ध हवा अंदर जाती है और सर्व अवयवों को शुद्ध प्राणवायु मिलने से संपूर्ण शरीर दिनभर के काम के लिए तरोताजा हो जाता है । दिनभर काम करने पर भी हम एकदम उत्साही रहते हैं ।
६. मस्तिष्क में स्मरणशक्ति सहित अन्य शक्ति केंद्र जागृत होना
इस काल में जप करने से मस्तिष्क की स्मरणशक्ति के साथ अन्य शक्ति केंद्र भी जागृत होते हैं । इस अवसर पर विद्याध्ययन करने से अन्य समय की तुलना में अधिक काल तक स्मरण में रहता है ।
७. ब्राह्ममुहूर्त पर शरीरशुद्धी करने की आवश्यकता
सूर्योदय के समय अनेक प्रकार की आरोग्यदायी तरंगें वातावरण में सूर्यकिरणों द्वारा आती हैं । अपनी त्वचा के रंध्र खुले होंगे, तो वे अवशोषित हो जाती हैं । उसके लिए ब्राह्ममुहूर्त पर उठकर शरीरशुद्धि करनी चाहिए ।
८. साधना करने से सप्तचक्र जागृत होना
इस काल में मंत्रजप साधना करने से सप्तचक्र जागृत होते हैं; इसलिए कि इस मुहूर्त पर वातावरण शुद्ध होने से अधिक प्रमाण में कंपन निर्माण होकर इससे कुंडलिनी की जागृति होती है ।
९. पुण्यात्मा एवं सिद्धात्माओं से मार्गदर्शन मिलना
इस मुहूर्त पर अनेक पुण्यात्मा एवं सिद्धात्मा परलोक से पृथ्वीतल पर आई होती हैं । इन पुण्यात्माओं और सिद्धात्माओं से हम साधना द्वारा मिलकर उत्तम मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं । ऐसे ९ लाभ हम ब्राह्ममुहूर्त पर उठकर स्नानादि कर्म करने से प्राप्त कर सकते हैं ।
(संदर्भ : सनातन प्रभात)
Very good
Me shurubaat karna chahuga…