साधकों में साधना की गंभीरता टिकी रहे, इस हेतु संत निरंतर भान करवाते रहते हैं । ‘काल अपना मुंह खोले निगलने के लिए खडा है और प्रारब्ध का पहाड सिर पर है’, इस संतवचन की प्रचीति कोरोना महामारी के रूप में आए आपातकाल में मुझे कुछ मात्रा में अनुभव हुई । इस विषय में गत २ माह की अवधि में आए अनुभव यहां दिए हैं ।
श्री. अतुल देव
१. बुखार आने पर उपचार कराने से भी प्रकृति में सुधार न होना
मेरे छोटे भाई को बुखार आ रहा था और श्वसन का भी कष्ट हो रहा था । प्रारंभ में उसने हमेशा के आधुनिक वैद्य से उपचार लिया; परंतु ३ दिनों उपरांत भी उसकी बीमारी में सुधार नहीं हुआ । इसलिए २.६.२०२० को उसने ठाणे के ‘ज्युपिटर हॉस्पिटल’ में जहां वह काम करता था, वहां उपचार के लिए स्वयं को भरती करवा लिया ।
२. कोरोन का ब्योरा ‘पॉजिटिव’ आने पर ‘न्यूमोनिया’ का निदान होना
३.६.२०२० को भाई की कोरोना की जांच की गई । अगले दिन उसके कोरोना पॉजिटिव होने की रिपोर्ट मिली । निदान हुआ कि उसे न्यूमोनिया हो गया है । इसकारण ५.६.२०२० से उसके ऑक्सिजन की मात्रा अत्यंत कम हो गई । ऑक्सिजन की आपूर्ति के लिए उसे ‘वेंंटिलेटर’की आवश्यकता पडनेवाली थी । इसमें कोई अडचन न आए, इसके लिए कुटुंबियों को नामजपादि उपाय करने के लिए बताया गया ।
३. रुग्णालय में आधुनिक वैद्य और कर्मचारियों ने
कुटुंब के सदस्य समान उपचार करने का आश्वासन देना
कुटुंबीय साधनारत न होने से वे इस प्रसंग में घबरा गए । इसलिए मैंने भाई के लिए नामजप करना प्रारंभ किया । भाई को जिस अस्पताल में उपचार के लिए रखा गया था, वह अस्पताल कोरोना के उपचार के लिए नहीं था । इसलिए हमने उसे अन्य रुग्णालय में भरती करने का निर्णय लिया । वहां ले जाने पर भाई की हालत और अधिक बिगड गई । इसलिए भाई को हम पुन: ‘ज्युपिटर हॉस्पिटल’ में उपचार के लिए लाए, जहां वह काम करता था । उस समय वहां के आधुनिक वैद्य और कर्मचारियों ने मुझे और मेरे भाई को कुटुंब के किसी सदस्य समान उपचार करने का आश्वासन दिया ।
४. आठ दिनों के उपचार के उपरांत
ठीक हो जाने पर भी ऑक्सिजन की मात्रा एवं
हृदय की धडकनें आवश्यक मात्रा में रहने हेतु उपचार चालू रखना
भाई को ‘वेंटिलेटर’पर रखकर उपचार आरंभ हुआ । उसे आध्यात्मिक बल मिलने के लिए मैंने उसके छायाचित्र के निकट नामजप लगाकर रखा । ८ दिनों के उपचार के उपरांत भाई को होश आया । ‘न्यूमोनिया’ ठीक हो गयां, परंतु ऑक्सिजन की मात्रा और हृदय की धडकनें आवश्यक मात्रा में आने के लिए और कुछ समय और लगेगा । आगे २९.६.२०२० तक उपचार चालू रखने पर उसकी प्रकृति में कुछ सुधार हुआ । तदुपरांत उसे घर भेज दिया गया । घर लौटने पर उसने भी नामजप करना आरंभ किया ।
५. नामजप के कारण तनाव पूर्णरूप से न्यून होकर अत्यंत शांत लगना
नामजप, विश्राम, उपचार और नियमित व्यायाम के कारण पूर्णत: ठीक होकर २ माह के उपरांत भाई नौकरी करने जाने लगा । उसने बताया कि नामजप से तनाव पूर्णत: दूर हो गया और शांत अनुभव होने लगा है । प्रत्यक्ष में भी उसका चेहरा प्रसन्न लग रहा था ।
६. अनुभूति
६ अ. गुरुकृपा से प्रारब्ध का भार हलका होने की अनुभूति आना
भाई के उपचार के लिए लगा समय और उपचारों की गुणवत्ता ध्यान में रखते हुए १५ से २० लाख रुपये खर्च हो गए होते; परंतु रुग्णालय प्रशासन ने सर्व उपचार नि:शुल्क किए । गत कुछ वर्षाें से भाई नियमितरूप से मासिक अर्पण करता था । लगता है इसीलिए गुरुकृपा से उसके प्रारब्ध का बहुत भारी बोझ हलका हो गया है ।’
– श्री. अतुल देव, ठाणे (अगस्त २०२०)
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