भारतीयों ‘अग्निहोत्र का महत्त्व ध्यान में रख प्रतिदिन ‘अग्निहोत्र’ करें !

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‘कोरोना विषाणु का जगभर संसर्ग होने से समस्या निर्माण हो गई है । इस विषाणु का संसर्ग टालने के लिए हमें बार-बार हाथ धोना, सोशल डिस्टन्सिंग (सामाजिक अंतर) जैसे नियम पालने चाहिए । ऐसा कहते हैं कि अपनी भारतीय परंपरा में अग्निहोत्र करने से वातावरण की शुद्धि होती है । इस विषाणु का संसर्ग अभी हाल ही में होने से ‘अग्निहोत्र का कोरोना विषाणु पर क्या परिणाम होता है ?’, इस विषय का शास्त्रीयदृष्टि से अभ्यास नहीं हुआ । तब भी ऐसे कुछ अनुभव हैं कि उससे ‘कोरोना विषाणु की समस्या पर मात करने के लिए अग्निहोत्र की सहायता हो सकती है’, ऐसा हम कह सकते हैं । इस विषय में जर्मनी के अग्निहोत्र के अभ्यासक डॉ. उलरिच बर्क द्वारा प्रस्तुत कुछ सूत्र यहां दे रहे हैं ।

 

१. अग्निहोत्र के अभ्यासक डॉ. उलरिच बर्क द्वारा प्रस्तुत कुछ सूत्र

डॉ. उलरिच बर्क

अ. डॉ. उलरिच बर्क इनका अल्प परिचय

डॉ. बर्क जर्मनी के हैं और उन्होंने ‘तत्त्वज्ञान’ विषय पर पीएचडी की है । इसके साथ ही वे ‘जर्मन असोसिएशन फॉर होम थेरपी’ नामक संस्था के अध्यक्ष हैं । वे ‘अग्निहोत्र विशेषज्ञ’के रूप में पहचाने जाते हैं । वे गत ३५ वर्षाें से अग्निहोत्र कर रहे हैं । साथ ही उस विषय पर शोधकार्य भी कर रहे हैं ।

 

२. अग्निहोत्र के कारण हमें आगे दिए अनुसार सहायता हो सकती है ।

अ. व्यक्ति को संसर्ग होने की संभावना न्यून होती है ।

आ. यदि पहले ही संसर्ग हो चुका है, तो संबंधित विषाणु का प्रभाव थोडा न्यून होता है ।

इ. संसर्ग पर मात करने के लिए शरीर को सहायता मिल सकती है ।

 

३. संसर्ग होने की संभावना न्यून होणे

एक ब्योरे के अनुसार ‘कोरोना विषाणु का संसर्ग अल्प करने के लिए अग्निहोत्र की सहायता हो सकती है ।’

३ अ. स्पेन में एलिसाबेथ एम. का आश्चर्यचकित करनेवाला अनुभव

स्पेन में कोरोना के संसर्ग की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माद्रिद शहर में रहनेवाली एलिसाबेथ एम. ने अपना अनुभव बताया । (युरोप में इटली के उपरांत अधिक संसर्ग स्पेन में हुआ था) एलिसाबेथ अपने पति के साथ एक घर में रहते थे । उस घर का एक कक्ष उन्होंने शहर में रेस्टॉरंट चलानेवाले एक व्यक्ति को किराए पर दी है । वहां यातायात बंदी के पहले वह व्यक्ति अनेक व्यक्तियों के संपर्क में आया था । उसकी कोरोना विषाणु की जांच सकारात्मक (कोरोना पॉसिटिव) आई । इसलिए एलिसाबेथ और उसके पति को चिंता होने लगी । उन्होंने अपनी कोरोना विषाणु की जांच करवाई, तो रिपोर्ट नकारात्मक आई । वास्तव में एलिसाबेथ और उस किराएदार की रसोई एक ही है । वे तीनों एकत्र भोजन करते थे । सभी एक ही स्नानगृह का उपयोग करते । कुछ दिन पहले ही उन्होंने मिलकर जन्मदिन भी मनाया था । जिस आधुनिक वैद्य ने यह जांच की थी, उसे आश्चर्य हुआ कि ‘संसर्ग हुए व्यक्ति के सान्निध्य में रहते हुए भी एलिसाबेथ और उसके पति को विषाणु का संसर्ग नहीं हुआ ।’ एलिसाबेथ एम्. नियमितरूप से अग्निहोत्र करती थीं, इसके साथ ही वे प्रतिदिन अग्निहोत्र की विभूति ग्रहण करती थीं । संभवत: इसलिए उन्हें कोरोना का संसर्ग नहीं हुआ होगा ।

क्या अग्निहोत्र के कारण विषाणु नष्ट होते हैं, यह तो पता नहीं । अग्निहोत्र के कारण जिवाणु की संख्या अल्प होती है । जो जिवाणुओं के संदर्भ में हुआ, वह विषाणुओं के संदर्भ में भी हो सकता है क्या, इस विषय में शीघ्र से शीघ्र शोध होना आवश्यक है ।

 

४. अग्निहोत्र का जिवाणुओं पर होनेवाले परिणाम
के विषय में विभिन्न संस्थाओं एवं विद्यापीठों में किए गए शोध

४ अ. फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में किए गए प्रयोग के अनुसार

‘ऐसा ध्यान में आया है कि अग्निहोत्र के धुएं से हवा में सूक्ष्म जंतुओं की संख्या घटती है ।
हाल ही में ‘फर्ग्युसन’ कॉलेज, पुणे में अग्निहोत्र का जिवाणुओं की वृद्धि पर होनेवाला परिणाम देखने के लिए प्रयोग किए गए । इस प्रयोग के निष्कर्ष में ऐसा पाया गया कि ‘अग्निहोत्र के धुएं के कारण हवा में सूक्ष्म जंतुओं की संख्या घट गई ।

४ आ. संसर्ग हुए लोगों को अग्निहोत्र किस प्रकार सहायता कर सकता है ?

हृदयरोग अथवा उच्च रक्तदाब, श्वसनसंस्था के विषय में दमा जैसे गंभीर रोग, मधुमेह, कर्करोग, प्रतिकारशक्ति अल्पवाले, इसके साथ ही वयोवृद्ध लोगों को कोरोना का अधिक धोका होता है । जैसे-जैसे आयु बढती जाती है, वैसे-वैसे मनुष्य की प्रतिकारशक्ति न्यून हो जाती है । अब तक कोरोना विषाणु के कारण जिन लोगों की मृत्यु हुई है, उनमें अनेक लोगों को उपरोक्त रोग थे ।

४ इ. हृदयरोग एवं उच्च रक्तदाब

अग्निहोत्र के कारण रक्तदाब सामान्य स्थिति में आने में सहायता होती है । इसके लिए अग्निहोत्र करने से पूर्व और अग्निहोत्र करने के उपरांत कुछ लोगों में रक्तदाब जांचा गया । इस प्रयोग में ऐसा पाया गया कि अग्निहोत्र के उपरांत रक्तदाब सामान्य स्थिति में आ गया है ।

४ ई. अग्निहोत्र नियमित करने से पेरू देश की मगदा लोपेज के अनुभव

पेरू देश की मगदा लोपेज ने ‘अग्निहोत्र का हृदय पर होनेवाले परिणाम’ का अनुभव कथन किया । उन्होंने कहा, ‘‘१० वर्षाें पूर्व मेरी मां बीमार थीं । उनका इलेक्ट्रोकार्डिओग्राम (इ.सी.जी.) निकालने पर ज्ञात हुआ कि उन्हें पहले ही हृदयविकार का झटका आकर गया है; अर्थात उनके हृदय का एक भाग मृत हो चुका था और उसमें पुन: सुधार संभव नहीं । गत ४ वर्ष हम अनियमितरूप से अग्निहोत्र कर रहे थे; परंतु गत कुछ माहों में हम प्रतिदिन अग्निहोत्र कर रहे थे । २ सप्ताह पूर्व मां का दूसरी बार ‘इ.सी.जी.’ निकालकर उस संबंध में आधुनिक वैद्यों को पूछने पर वे बोले, ‘‘मां का हृदय ठीक है और उसे पहले हृदयविकार का झटका आने का कोई भी लक्षण नहीं है ।’’ यह सुनकर हमें बहुत आश्चर्य हुआ । हम प्रतिदिन अग्निहोत्र कर दिन में ३-४ बार अग्निहोत्र की विभूति उसे ग्रहण करने के लिए देते थे ।

 

५. अग्निहोत्र के कारण दमे की बीमारियां भी दूर होने के उदाहरण

कोरोना का फेफडों पर अधिक परिणाम होने से जिन्हें ‘अस्थमा’ है ऐसों को विशेष सावधानी रखने के लिए बताया जाता है । अग्निहोत्र के कारण अपने फेफडे बलशाली होने में सहायता होती है और श्वसनविषयी शरीर का लचीलापन बढता है । इस विषय में अनेक उदाहरण सामने आए हैं । उनमें से २ उदाहरण आगे दिए हैं ।

५ अ. अग्निहोत्र करने से दमे की बीमारी से पूर्णत: ठीक हो जानेवाली अमेरिका की डोन्ना

सांता क्लारिटा, अमेरिका में रहनेवाली डोन्ना एस. ने अपना अनुभव लिखा है । उनका कहना है कि, ‘‘मैं बहुत बीमार थी, तब युनिवर्सिटी ऑफ विर्जिनिया में श्वसनरोग विषय के विशेषज्ञों से मिले । उन्होंने मुझे फेफडों की ‘क्ष’ किरण (एक्स-रे) रिपोर्ट मुझे दिखाई । उसमें मेरे फेफडे पूर्णत: काले दिख रहे थे । केवल ४ सेंटीमीटर का स्थान खाली दिखाई दे रहा था । मैंने अग्निहोत्र करना प्रारंभ किया । पहले ही सप्ताह के उपरांत मैंने अपनी दमें की गोलियां बंद कर दीं और कुछ समय पश्चात ‘स्टीरॉयड्स’ लेना बंद किया । तदुपरांत ३ माह में मैं आधुनिक वैद्य के पास गई । उन्होंने मेरे फेफडों की क्ष किरण की जांच की । उसका ब्यौरा देखने पर वे बोले, ‘‘आपने क्या किया, यह मुझे नहीं पता; परंतु तुम्हारे फेफडे एकदम खुल गए हैं । अब आपको औषधियां लेने की आवश्यकता नहीं है ।

५ आ. पोलंड में फ्रान बी की आयु के ११ वें वर्ष दमे का
तीव्र कष्ट होना और आयु के २५ वें वर्ष अग्निहोत्र करना आरंभ करने से दमा ठीक होना

वायसोका, पोलंड में रहनेवाले फ्रान बी ने कहा है कि, ‘‘आयु के ११ वें वर्ष से मुझे दमा का तीव्र कष्ट था । २० वर्षाें उपरांत मेरी स्थिति और बिगड गई । साधारणत: मुझे दमे का झटका रात को देर से आता था और स्थानीय रुग्णालय में जाकर उपचार लेना पडता था । ‘दमा हवा के प्रदूषण से संबंधित है’, ऐसा मुझे लगता था । आयु के २५ वें वर्ष मैं सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय अग्निहोत्र करने लगी । २ सप्ताहों में मेरे दमे का कष्ट अच्छा हो गया । तदुपरांत मुझे वह बीमारी पुन: नहीं आई ।

 

६. अग्निहोत्र के कारण प्रतिकारशक्ति बढने में सहायता मिलना

६ अ. एच.आय.वी. इस रोग पर अग्निहोत्र का परिणाम

‘कोरोना विषाणु पर अग्निहोत्र का क्या परिणाम होता है ?’, इसका अभ्यास नहीं किया गया है; परंतु विषाणु के कारण होनेवाले एच.आय.वी रोग को नियंत्रण में लाने के लिए अग्निहोत्र एवं अग्निहोत्र की विभूति का अच्छा परिणाम दिखाई दिया है । इस विषय में किए गए प्रयोग में एच.आय.वी. रोग का संसर्ग हुए बच्चों ने अग्निहोत्र करना प्रारंभ किया । प्रत्येक लडका अथवा लडकी ने स्वतंत्ररूप से अग्निहोत्र किया । कुछ समय उपरांत आगे दिए परिणाम दिखाई दिए ।

१. विषाणु की मात्रा घट गई ।

२. सीडी-४, इस प्रोटीन का स्तर बढ गया ।

३. कुल मिलाकर बच्चों के आरोग्य में सुधार हुआ । उनकी प्रतिकारशक्ति में लक्षणीय मात्रा में वृद्धि हुई ।

६ आ. विषाणुओं की वृद्धि करने के लिए रखी गई ‘प्लेट्स’में
अग्निहोत्र की विभूति का पानी डालने पर विषाणुओं की मात्रा ५० प्रतिशत न्यून होना

अग्निहोत्र की विभूति का विविध विषाणुओं पर क्या परिणाम होता है, यह देखने के लिए प्रयोगशाला में एक प्रयोग किया गया । अग्निहोत्र की विभूति का पानी विषाणुओं की वृद्धि करने के लिए रखी गई ‘प्लेट्स’में डाला गया । उसे डालने के पश्चात विषाणुओं की मात्रा ५० प्रतिशत न्यून हो गई । यद्यपि यह मात्रा अधिक नहीं थी, तब भी उस कारण मंद रोग एवं तीव्र रोगग्रस्तों पर उसका परिणाम हो सकता है । जैसे इन विविध विषाणुओं पर परिणाम हुआ, वैसे वर्तमान के कोरोना विषाणुओं पर अग्निहोत्र का परिणाम हो सकता है ।

 

७. उपरोक्त संपूर्ण अभ्यास का निष्कर्ष

अग्निहोत्र का कोरोना विषाणु का संसर्ग न्यून करने के लिए उपयोग होता है । इस विषय में हमारे पास प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं । तब भी उपरोक्त सभी ब्यौरों का अभ्यास करने पर कोरोना संसर्ग की कठिन परिस्थिति में घर में अग्निहोत्र करना उपयुक्त हो सकता है । इसके लिए शास्त्रीयदृष्टि से अभ्यास किया गया ।

अ. कोरोना का संसर्ग हुए रोगियों को अग्निहोत्र करने के लिए बताकर अथवा उनके लिए अग्निहोत्र कर उसका परिणाम देखा ।

आ. अग्निहोत्र से पहले और अग्निहोत्र करने के उपरांत ‘रुग्णालय की हवा में विद्यमान कोरोना विषाणु की मात्रा कितनी है ?’, इसका अभ्यास करें, इसके साथ ही ‘रुग्णालय की वस्तुओं के पृष्ठभागों पर कोरोना विषाणुओं की मात्रा में क्या परिवर्तन होता है?’, इसका अभ्यास करें ।

इ. अग्निहोत्र एवं अग्निहोत्र की विभूति का ‘कोरोना विषाणु से युक्त पेशियों पर क्या परिणाम होता है ?’, उसका अभ्यास करें ।

ई. इस काल में आधुनिक वैद्य एवं परिचारिका की सुरक्षा भी एक प्रमुख विषय है । ‘इस वैद्यकीय कर्मचारियों के गुटों पर अग्निहोत्र का क्या परिणाम होता है ?’, इस विषय में अभ्यास कर सकते हैं ।’

– डॉ. उलरिच बर्क

भारत की समृद्ध धरोहर, अर्थात अग्निहोत्र का प्रसार डॉ. बर्क जैसे एक विदेशी शास्त्रज्ञ करते हैं, इसके साथ ही कोरोना पर अग्निहोत्र उपयुक्त होने की बात दृढता से कहते हैं । यह भारतीयों के लिए लज्जाजनक है !

डॉ. बर्क जैसे विदेशी तज्ञ अग्निहोत्र पर शोधकार्य कर उसविषय में अभ्यासपूर्वक अपना मत व्यक्त करते हैं । इसके साथ ही कोरोना पर अग्निहोत्र प्रभावी सिद्ध हो सकता है, ऐसा भी कहते हैं । अग्निहोत्र के विविध लाभ सर्वज्ञात हैं । वर्तमान में कोरोना के बढते संसर्ग को रोकने के लिए सरकार ने विविध स्थानों पर अग्निहोत्र होम आयोजित कर, उस विषय में वैज्ञानिक शोधकार्य करना जनता को अपेक्षित है !

 

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