अनुक्रमणिका
हिन्दू धर्म अनुसार पूजा में कर्पूर आरती के लिए कपूर का उपयोग किया जाता है । इसके अतिरिक्त कपूर के अन्य उपयोग भी हैं । उस विषय में यहां जानकारी लेंगे ।
१. आकार
भीमसेनी आयुर्वेदीय कपूर का विशिष्ट आकार नहीं होता । यह कपूर स्फटिक समान होता है । इसकी गोल अथवा चौकोनी टिकियां नहीं बनाई जा सकतीं; इसलिए कि सामान्य कपूर समान इसमें मोम नहीं रहता ।
२. भीमसेनी आयुर्वेदीय कपूर का औषधीय उपयोग
२ अ. सर्दी एवं खांसी में गुणकारी
१. सर्दी, खांसी होने पर एक पतीले में पानी गरम कर उसमें इस कपूर का चूर्ण (पाउडर) डालें और उसकी वाष्प (वाफ) लें ।
२. व्यक्ति की नाक, माथा एवं छाती, इन अवयवों पर कपूर लगाएं । छोटे बच्चों को भी कपूर लगा सकते हैं । रूमाल पर कपूर मसलकर उसे सूंघें अथवा किसी छोटी-सी डिब्बी में कपूर रखकर, वह डिब्बी अपने साथ रखें । ‘विक्स’ की आदत टालें ।
३. रूमाल में कपूर के कुछ टुकडों को डोरी से बांधकर रखने से रूमाल को सुगंध आती है और कपूर सूंघना भी सरल होता है । रूमाल वैसे ही यदि धोने के लिए चला जाए तो उसमें दाग नहीं पडते और उसमें लिपटा कपूर भी साबुन से नहीं घुलता ।
४. खांसी की औषधियां बनानेवाले आयुर्वेदीय औषधि आस्थापन, इसी कपूर का उपयोग करते हैं ।
२ आ.पर्यटन के समय बर्फीले प्रदेशों में श्वास लेने में कठिनाई हो तो…
पर्यटन के समय बर्फीले प्रदेशों में श्वास लेने में कठिनाई लगे, तो कपूर सूंघें ।
२ इ. जोडों का दर्द
तिल के तेल में कपूर का चूर्ण मिलाकर, वह तेल जोडों पर लगाएं । तिल के तेल की गंध उग्र होने से यह कपूरमिश्रित तेल लगाने पर कपडों में गंध आने लगती है । इसलिए आवश्यक सावधानी बरतें ।
२ ई. दाढ में वेदना
इस कपूर के छोटे से टुकडे को सडन हुए दांत में रखें । कपूर की लार पेट में जाने से कष्ट नहीं होता, किन्तु एक दिन में १ ग्रॅम से अधिक कपूर ग्रहण नहीं करना है ।
२ उ. केश में होनेवाली रूसी पर उपाय
नारियल के तेल में यह कपूर मिलाकर वह तेल केश की जडों में लगाएं । जिसे रूसी हो गई है, ऐसे व्यक्ति नारियल के तेल के स्थान पर तिल के तेल का उपयोग करें ।
३. धार्मिक विधि में उपयोग
अ. अन्य कपूर में मोम होती है । यह कपूर शुद्ध होने से उसका उपयोग धार्मिक कार्य में होता है । आरती करते समय यह कपूर जलाएं । चंदन घिसते समय उसमें कपूर मिलाएं ।
आ. भगवान को पान का बीडा देते समय यही कपूर डालकर देते हैं । दक्षिण भारत में तीर्थप्रसाद बनाने के लिए इलायची एवं भीमसेनी कपूर का उपयोग करते हैं । तिरुपति के श्री बालाजी देवस्थान के सुप्रसिद्ध लड्डुओं में भी इसका उपयोग किया जाता है ।
४. दृष्टि (नजर) उतारना
इस कपूर के दो छोटे टुकडे हाथों में लेकर शाम को घर की दृष्टि (नजर) उतारें । तदुपरांत घर के बाहर किसी पुराने दीप अथवा पुराने बर्तन में यह कपूर जलाएं ।
५. अन्य उपयोग
अ. प्रवासी बैग अथवा कपडे रखने के बैग में यह कपूर रखने से दुर्गंध नहीं आती । बैग में सुगंध के साथ-साथ उनमें कीडे और कॉकरोच भी नहीं होते ।
आ. वर्षा में कपडे ठीक से नहीं सूखते । उनमें नमी रहती है । ऐसे कपडे बैग में रखने से दुर्गंध आती है । बैग में कपूर रखने से दुर्गंध नहीं आती ।
इ. कपूर मोजों में रखने से मोजों और पैरों में दुर्गंध नहीं आती । कुछ लोगों को मोजे पहनने पर पैरों में खाज आती है । तब मोजों में कपूर डालने से पैरों में खुजली नहीं आती ।
ई. रात में अपने आसपास कपूर जलाने से मच्छर नहीं आते । इसके साथ ही अन्य कीडे, चूहे इत्यादि भी दूर रहते हैं ।
उ. घर में मच्छर हों, तो हम ‘गुड नाईट’ यंत्र पर मैट (मच्छरों का कष्ट दूर करने के लिए टिकिया) लगाते हैं । उस यंत्र पर मच्छरों को दूर करने के लिए टिकिया) लगाते हैं । उस यंत्र पर मैट न रखते हुए कपूर रखकर यंत्र चला दें । कपूर घुलने से हवा में उसकी सुगंध फैलेगी, जिससे मच्छर भी भाग जाएंगे । यह मैट से अधिक सुरक्षित है ।
ऊ. कभी अंगीठी अथवा चूल्हा जलाना कष्टदायक लगे, तो कुछ कपूर की टिकियां काम आसान कर देती हैं ।
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रमात
भीमसेनी कपूर गठिया (संधिवात) पर भी उपयुक्त !
‘पुदिना के फूल, अजवायन के फूल एवं भीमसेनी कपूर, तीनों को सम मात्रा में एकत्र करने पर कुछ समय पश्चात उसका तेल में रूपांतर होता है । इस तेल को ‘अमृतधारा तेल’ कहते हैं । यह तेल गठिया पर अत्यंत उपयुक्त है ।’ – वैद्या (श्रीमती) प्राची दळवी-मोडक, ठाणे