३० नवंबर २०२१ को श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ने जयपुर यात्रा के समय श्री. वारिद सोनी (‘वारिद’ का अर्थ दक्ष) को संदेश दिया कि वे उनके परिजनों से मिलेंगी । दोपहर १२ बजे ‘उच्च कोटि के संत घर आएंगे’, इस विचार से सोनी परिवार ने भावभक्ति से तैयारियां कीं । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने उनके घर पहुंचने पर श्री. वारिद सोनी और उनके पिता श्री. वीरेंद्र सोनी के साथ कैलाश से लाए गए शिवलिंग की आरती की । आरती के निमित्त से छायाचित्र और चित्रीकरण आरंभ किया गया । तदुपरांत श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने श्री. वीरेंद्र सोनी दादाजी से कहा, ‘‘आज मैं आपसे वार्तालाप कर आपकी साधना के विषय में जानना चाहती हूं ।’’ कुछ भी पूर्वनियोजित न होते हुए भी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने श्री. वीरेंद्र सोनी के साधनामय जीवन के विषय में उनसे बातचीत की । अंत में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने कहा, ‘‘श्री. वीरेंद्र सोनी ने घर में रहकर भाव-भक्ति से साधना की । उन्होंने धर्मग्रंथों का वाचन किया । वाचन करने के उपरांत उन्हें भीतर से ईश्वर द्वारा जो ज्ञान प्राप्त हुआ, उसका उन्होंने इस आयु में भी लेखन किया । भगवान शिव पर उनकी अटल श्रद्धा है । घर में रहकर भी उन्होंने भाव में वृद्धि की और आज उन्होंने संतपद प्राप्त किया है । आज वे पू. वीरेंद्र सोनीजी हो गए हैं ।’’ यह सुनते ही सोनी परिवार के सभी सदस्य आनंदित हो गए !
पू. वीरेंद्र सोनीजी का परिचय !
पू. वीरेंद्र सोनीजी का जन्म ९ नवंबर १९३५ को राजस्थान के अलवर जिले के हरसौली गांव में हुआ । वर्ष १९५६ से १९९५ तक उन्होंने भारतीय रेल्वे में कार्य किया । तदुपरांत उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘वानप्रस्थी प्रचारक’ के रूप में कार्यरत होकर राष्ट्रसेवा करने का निश्चय किया । उस कालावधि में वे जयपुर संघ के ‘भारतीय भवन’ कार्यालय के प्रमुख भी थे । वर्ष २००१ से वे वृद्धावस्था के कारण अपने बेटे श्री. वारिद सोनी के पास रहने लगे । वर्ष २०१३ में उनके हृदय का शल्यकर्म (ऑपरेशन) हुआ । वर्ष २०१६ में उन्होंने अपने गुरु श्री रविनाथ महाराज और बेटे श्री. वारिद सोनी के साथ अत्यधिक कठिन कैलाश-मानसरोवर यात्रा की ।