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१. अध्यात्मशास्त्र सीखनेके लिए किए गए प्रयास और गुरुप्राप्ति
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने अनुभव किया कि सम्मोहन उपचारोंसे जो मनोरोगी ठीक नहीं होते, वे सन्तोंकी बताई हुई साधना करनेसे ठीक होते हैं । तत्पश्चात उनके ध्यानमें आया कि केवल स्वभावदोष और अहं ही सर्व मनोविकारोंका मूल कारण नहीं हैं, अपितु प्रारब्ध और अनिष्ट शक्तियोंकी पीडा ये आध्यात्मिक कारण भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । इसलिए उन्होंने वर्ष १९८३ से वर्ष १९८७ की अवधिमें अध्यात्म क्षेत्रके लगभग २५ अधिकारियोंके (सन्तोंके) पास जाकर अध्यात्मका अध्ययन किया और अध्यात्मशास्त्रकी श्रेष्ठता ज्ञात होनेपर स्वयं साधना आरम्भ की । वर्ष १९८७ में उन्हें इंदौरनिवासी महान सन्त परम पूज्य भक्तराज महाराज गुरुरूपमें प्राप्त हुए ।
२. अध्यात्मप्रसारका कार्य
जीवनमें अति उच्च आनन्द प्रदान करनेवाला अध्यात्मशास्त्र चिकित्साशास्त्रकी तुलनामें एक उच्च स्तरीय शास्त्र है, इसकी प्रतीति लेनेके उपरान्त परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने अध्यात्मशास्त्रका प्रसार आरम्भ किया । जो हम जानते हैं, वह अन्योंको बताना चाहिए, इस उक्तिके अनुसार उनके पास मानसिक उपचारके लिए आनेवाले रोगियोंको वे अध्यात्मशास्त्रका महत्त्व समझाकर साधना बताने लगे और चिकित्सकोंके लिए आयोजित व्याख्यानोंमें भी सम्मोहनशास्त्र और अध्यात्मशास्त्र विषय प्रस्तुत करने लगे । तदुपरान्त वर्ष १९९४ में पूर्णकालिक अध्यात्मप्रसारका कार्य करनेके लिए उन्होंने चिकित्सा व्यवसाय पूर्णतः बन्द कर दिया ।
२ अ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीद्वारा
सनातन भारतीय संस्कृति संस्थाके माध्यमसे स्वयं किया कार्य
२ अ १. सनातन भारतीय संस्कृति संस्थाकी स्थापना
वर्ष १९९१ में प.पू. भक्तराज महाराजजी जब नासिक आए थे उस समय उन्होंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीसे कहा कि अध्यात्मकी शिक्षा और प्रसारका कार्य सनातन भारतीय संस्कृति संस्थाके नाम से करें । तदनुसार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने १.८.१९९१ को सनातन भारतीय संस्कृति संस्थाकी स्थापना की ।
२ अ १ अ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीका मुंबई स्थित चिकित्सालय सनातन भारतीय संस्कृति संस्थाका पहला आश्रम और अध्यात्मप्रसारका मुख्य केंद्र बनना
अध्यात्ममें उन्नति करनेके लिए तन-मन-धन का त्याग करना आवश्यक होत है, यह सिद्धान्त समझमें आनेपर वर्ष १९९३ में मैंने शीव (मुंबई) स्थित अपने चिकित्सालयके ३ कक्षोंका स्थान मैंने गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजीको अर्पित किया । तबसे सनातनके कार्यके लिए पूर्ण समय देनेवाले साधक वहां निवास करने लगे । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (१३.३.२०१७)
२ अ २. सनातन भारतीय संस्कृति संस्थाके माध्यमसे किया कार्य
सनातन भारतीय संस्कृति संस्थाके माध्यमसे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक राज्योंमें अध्यात्मके अभ्यासवर्गोंका आयोजन, प.पू. भक्तराज महाराजजीकी गुरुपूर्णिमा महोत्सवका आयोजन, अध्यात्मकी शिक्षा देनेवाले ग्रन्थोंका संकलन तथा जिज्ञासु और साधकोंकी शंकाआेंका समाधान किया तथा उनकी व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति हेतु मार्गदर्शन किया ।
वर्ष १९९६ से वर्ष १९९८ की अवधिमें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक राज्योंमें साधना और क्षात्रधर्म विषयपर सैकडोंे सार्वजनिक सभाआेंको सम्बोधित किया । इन सभाआेंके कारण सहस्रों जिज्ञासु और सैकडों साधक संस्थासे जुडे ।
२ आ. सनातन संस्थाके माध्यमसे किया जा रहा कार्य
२ आ १. सनातन संस्थाकी स्थापना
अध्यात्मप्रसारके कार्यकी व्याप्ति बढनेपर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने २३.३.१९९९ को सनातन संस्थाकी स्थापना की ।
२ आ २. सनातन संस्थाका उद्देश्य
अ. भक्तियोग, ज्ञानयोग, ध्यानयोग आदि विविध योगमार्गके साधकोंको व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नतिके लिए मार्गदर्शन करना
आ. हिन्दू धर्मके अध्यात्मशास्त्रका वैज्ञानिक परिभाषामें प्रसार करना और समाजको धर्मशिक्षा देना
इ. हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनाके लिए समवैचारिक संस्थाआेंको साथ लेकर हिन्दू-संगठन और साम्प्रदायिक एकताके लिए प्रयास करना
२ आ ३. सनातन संस्थाका कार्य
२ आ ३ अ. सत्संग : जिज्ञासुआेंको साधनाका महत्त्व बताना और जितने व्यक्ति उतनी प्रकृतियां, उतने ही साधनामार्ग, इस सिद्धान्तानुसार प्रत्येकको साधना सिखाना । इसके लिए विभिन्न स्थानों पर साप्ताहिक सत्संग आयोजित किए जाते हैं, जैसे बालसंस्कारवर्ग, धर्मशिक्षावर्ग, स्वभावदोष-निर्मूलन सत्संग, भाववृद्धि सत्संग आदि ।
२ आ ३ आ. व्याख्यान : आनन्दमय जीवन हेतु अध्यात्म, व्यक्तित्व विकास, तनावमुक्तिके लिए अध्यात्म आदि विषयों पर सनातन संस्था द्वारा निःशुल्क व्याख्यान दिए जाते हैं ।
२ आ ३ इ. गुरुपूर्णिमा : गुरु-शिष्य परम्पराका महत्त्व समझानेके लिए सनातन संस्था देशभरमें प्रतिवर्ष २०० से अधिक गुरुपूर्णिमा समारोह आयोजित करती है ।
२ आ ३ ई. कुम्भमेलोंमें अध्यात्मप्रसार : सनातन संस्थाने प्रयाग (वर्ष २००१ और वर्ष २०१३), नासिक (वर्ष २००३ और वर्ष २०१५), उज्जैन (वर्ष २००४ और वर्ष २०१६) और हरिद्वार (वर्ष २०१०) के कुम्भमेलोंमें बडी मात्रामें अध्यात्मप्रसार किया । साथ ही कुम्भक्षेत्र, मन्दिरों और तीर्थक्षेत्रों की पवित्रताकी रक्षा और पाखण्डी बाबाआेंके विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही, धर्महानि रोकना आदि विषयों पर धर्मजागृति भी की है ।
२ आ ३ उ. दूरदर्शन वाहिनियोंपर हिन्दू धर्मका पक्ष प्रस्तुत करना : सनातन संस्थाके बढते हुए अध्यात्मप्रसारके कार्यको देखकर देशभरकी विविध सामाजिक, राष्ट्रीय और धार्मिक समस्याआेंके सन्दर्भमें हिन्दू धर्मका पक्ष प्रस्तुत करनेके लिए संस्थाके प्रवक्ताआेंको दूरदर्शन वाहिनियोंद्वारा निरन्तर आमन्त्रित किया जा रहा है ।
२ आ ३ उ १. वक्ता प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित करना : दूरदर्शन वाहिनियोंके चर्चासत्रोंमें हिन्दू धर्मके प्रवक्ताआेंकी अल्प संख्याको ध्यानमें रखते हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके मार्गदर्शनानुसार सनातन संस्था वर्ष २०१५ से वक्ता प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित कर रही है । इस कार्यशालाके माध्यमसे हिन्दू धर्मका पक्ष प्रस्तुत करनेवाले ४० प्रवक्ता तैयार हुए हैं ।
२ आ ४. सनातन संस्थाका जालस्थल – sanatan.org : इस जालस्थलके प्रमुख उद्देश्य हैं – शास्त्रीय परिभाषामें अध्यात्मका प्रसार करना, धार्मिक कृत्योंका अध्यात्मशास्त्रीय आधार बताना और साधना सम्बन्धी शंकाआेंका समाधान करना । यह जालस्थल मराठी, हिन्दी, कन्नड और अंग्रेजी, इन चार भाषाआेंमें कार्यरत है तथा १८० देशोंमें देखा जाता है ।
३. ग्रंथरचना एवं प्रकाशनकार्य
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने अध्यात्मशास्त्र, देवताआें की उपासना, साधना, आचारधर्म, बालसंस्कार, राष्ट्ररक्षा, धर्मजागृति, ईश्वरप्राप्ति के लिए कला, आध्यात्मिक उपचार, आपातकालीन उपचार, सम्मोहन उपचार इत्यादि विविध विषयों पर ग्रंथसंपदा संकलित की है । ३०.४.२०१६ तक उनके द्वारा संकलित २८७ ग्रंथों की मराठी, हिन्दी, कन्नड, तेलुगु, तमिल, मलयालम, गुजराती, गुरुमुखी, ओडिया, बंगाली, असमिया आदि भारतीय तथा अंग्रेजी, नेपाली, जर्मन एवं सर्बियन आदि १५ विदेशी भाषाआें में ६५ लाख ५ सहस्र प्रतियां प्रकाशित हुई हैं । अब भी लगभग ४५०० ग्रंथ प्रकाशित हो सकेंगे, इतना ज्ञान उनके संग्रह में है ।
४. साधकों की आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से किया कार्य
जिज्ञासुआें को शीघ्र ईश्वरप्राप्ति करना संभव हो, इसलिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने गुरुकृपायोग प्रतिपादित किया; जो कर्म, भक्ति और ज्ञान इन योगमार्गों का संगम है । गुरुकृपायोग में जितने व्यक्ति उतनी प्रकृतियां, उतने साधनामार्ग, इस सिद्धांतानुसार साधना सिखाई जाती है । अतः साधक को शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करना संभव होता है । २०.५.२०१६ तक गुरुकृपायोगानुसार साधना कर ६५ साधक संतपद पर विराजमान हुए हैं, तो ८४६ साधक ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर संतत्व की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं । विदेश के जिज्ञासु भी इस साधनामार्ग का अनुसरण कर रहे हैं और और इसके द्वारा अपने जीवन का उद्धार कर रहे हैं । (विस्तृत जानकारी सनातन के गुरुकृपायोगानुसार साधना ग्रंथ में दी है ।)