स्नान के लिए उपयोग किए जानेवाले साबुन को हम यदि कागद में लपेट कर रखेंगे, तब भी ४-५ दिनों में ही वह कागद जीर्ण होकर फट जाता है । साबुन कुछ दिन फर्श पर रह जाए, तो फर्श पर सफेद दाग पड जाते हैं । यह सब साबुन बनाते समय उपयोग किए जानेवाले हानिकारक रसायनों के कारण होते हैं । स्नान के लिए नियमितरूप से साबुन लगाने से त्वचा की प्राकृतिक स्निग्धता निकल जाती है । त्वचा के लिए आवश्यक स्निग्धता पुन प्राप्त करने के लिए वह त्वचा के नीचे के मेद, मांस व मज्जा, इन धातुओं से स्नेहांश (तैलीय) लेती हैं । जिससे इन धातुओंं का भी स्नेहांश कम होता है । इससे हाथ-पैरों में वेदना, हड्डियां जर्जर होना, चिडचिडापन बढना जैसे विकार निर्माण होते हैं । साबुन का उपयोग बंद करने से और स्नान से पूर्व नियमितरूप से तेल लगाने से ये सभी विकार न्यून होने लगते हैं, ऐसा ध्यान में आया हैं । इसलिए निरोगी शरीर के लिए साबुन न लगाना ही श्रेयस्कर है । साबुन के स्थान पर पिसी हुई चना दाल अथवा मसूर दाल अथवा बमीठे अथवा अच्छे स्थान की छनी मिट्टी का उपयोग करना, अच्छा और सस्ता है । यदि यह संभव न हो, तो बिना कुछ लगाए भी शरीर को मल-मलकर धो सकते हैं ।
– वैद्य सुविनय दामले, कुडाळ के मार्गदर्शन से संकलित (२७.५.२०१४)
(टिप्पणी : जिन लोगों को किसी कारणवश शरीर पर साबुन लगाकर स्नान करना हो, वे आयुर्वेदीय घटकों से युक्त साबुन का अल्प प्रमाण में उपयोग कर सकते हैं । साबुन के उपयोग से तैलीयपन पूर्णरूप से निकल न जाए, इस पर ध्यान दें ।)