गौरीगद्दे (कर्नाटक) के अवधूत विनयगुरुजी की रामनाथी (गोवा) स्थित सनातन आश्रम को सदिच्छा भेंट !

रामनाथी (गोवा) – गौरीगद्दे (शृंगेरी, कर्नाटक) के अवधूत विनयगुरुजी ने हाल ही में यहां के सनातन आश्रम को सदिच्छा भेंट दी । इस समय उन्हों ने सनातन संस्था के कार्य के विषय में जानकारी ली । सनातन संस्था के संत पू. पद्माकर होनपजी ने अवधूत विनयगुरुजी का पुष्पहार, शाल, श्रीफल एवं भेंटवस्तु दे कर सम्मान किया । इस समय अवधूत विनयगुरुजी के भक्त सर्वश्री शिवकुमार, गुरुदर्शन, मौलाजी भी उपस्थित थे । तीव्र शारीरिक कष्ट होते हुए भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने अवधूत विनयगुरुजी की भेंट लेकर उनके आशीर्वाद लिए ।

अवधूत विनयगुरुजी

 

अवधूत विनयगुरुजी का परिचय

अवधूत विनयगुरुजी का गौरीगद्दे में ‘दत्ताश्रम’ है । वहां प्रतिदिन सैकडों भक्त अपनी व्यवहारिक एवं अन्य समस्याएं पूछने आते हैं । स्वामीजी उनकी समस्याएं उनको पूछने की अपेक्षा अंतर्ज्ञान से जान कर उसके बारे में उत्तर और उपाय बताते हैं । दो वर्ष पहले सनातन संस्था के साधक श्री. राम होनपजी अवधूत विनयगुरुजी के यहां गए थे । उस समय श्री. राम होनपजी ने उन्हें राष्ट्र एवं धर्म के विषय में प्रश्न पूछने से पहले ही अवधूत विनयगुरुजी ने अंतर्ज्ञान से उनके प्रश्नों के उत्तर दिए ।

अवधूत विनयगुरुजी का सम्मान करते हुए पू. पद्माकर होनपजी

 

सनातन का आश्रम अर्थात विद्यावाचस्पति (पी. एचडी.) बनानेवाला विश्वविद्यालय !

अवधूत विनयगुरुजी के सनातन आश्रम के बारे में गौरवोद्गार

सनातन का आश्रम सर्व साधकों का ‘विश्वघर’ है । यह (सनातन आश्रम) अध्यात्म का सत्-चित्-आनंदस्वरूप विश्वविद्यालय है । मेरा आश्रम आधिभौतिक पाठशाला, तो सनातन का आश्रम आध्यात्मिक पाठशाला अर्थात विद्यावाचस्पति (पी. एचडी.) बनाने वाला विश्वविद्यालय है । यह अध्यात्म की शोध-प्रयोगशाला है । यहां निवास के लिए आनेवाले व्यक्ति की स्वार्थी इच्छा साधना से दूर होकर निरिच्छ बनती है । यहां के साधक तन, मन एवं धन का त्याग कर जीवनमुक्त हो रहे हैं ।

 

अवधूत विनयगुरुजी के परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और उनके कार्य के संबंध में गौरवोद्गार

१. परात्पर गुरुदेवजी में विष्णुतत्त्व है और उनका अवतार भक्तों के कल्याण के लिए हुआ है !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी स्वयं परमात्मा हैं । उनकी सीख मौन, महामौन और ध्यान है । परात्पर गुरुदेवजी में श्रीविष्णुतत्त्व है और उन में श्रीविष्णु की शक्ति कार्यरत है । उनकी कारणदेह वैकुंठ में है एवं उनमें वैष्णवी शक्ति निरंतर कार्यरत रहती है । परात्पर गुरुदेवजी का अपना प्रारब्ध नहीं है । वे तो अपने भक्तों के (साधकों के) कल्याण के लिए अवतीर्ण हुए है । जैसे प्रभु श्रीरामजी का प्रारब्ध था; परंतु वे अपना प्रारब्ध लोककल्याण के लिए लेकर आए थे । उसी प्रकार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का है ।

२. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी अमर्याद है !

राम-कृष्ण जैसे ही परात्पर गुरुदेवजी का अवतार हुआ है और संपूर्ण विश्व को ज्ञान की सीख देने के लिए उनका जन्म हुआ है । उनका प्रत्येक कर्म निष्काम है । साथ ही उनका जन्म विश्व में हिन्दू धर्म की प्रतिष्ठापना एवं सब लोगो में धर्म की स्थापना करने के लिए हुआ है । वे दया के सागर हैं और उनमें ऊंच-नीच ऐसा भेदभाव नहीं है । उनमें मातृ-पितृ, दोनों का प्रेम है और उसी अनुसार उनकी शक्ति कार्यरत रहती है । उनमें शिव एवं शक्ति, दोनों का संगम है । परात्पर गुरुदेवजी की स्थिति परमहंस योगानंद जैसी है । माया भी परात्पर गुरुदेवजी के अधीन होने से उन पर माया का प्रभाव नहीं पडता । परात्पर गुरुदेवजी में शाश्वत आनंद है । आंखें बंद कर उनकी ओर देखने से ईश्वर के निर्गुण रूप का प्रकाश अनुभव होता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी अमर्याद (Infinite) हैं ।

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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